मनुष्य
स्तनधारी जीवों में शामिल है. शरीर का यह अंग स्त्री और पुरुष दोनों में पाया जाता
है. इसके बाद भी दोनों में मूल अंतर यह होता है कि महिलाओं का यह अंग शिशुओं को
भोजन प्रदान कर उन्हें जीवन देता है. स्त्री और पुरुष दोनों में स्तन पाए जाने के
बाद भी सिर्फ महिलाओं को ही जीवनपर्यंत स्तनों में परिवर्तन का अनुभव होता है. यह
सिर्फ अनुभव ही नहीं होता है बल्कि ये परिवर्तन होते रहते हैं. समय के साथ महिलाओं
को इन परिवर्तनों से परिचित रहना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके स्तनों में किसी
भी तरह का असामान्य परिवर्तन किसी रोग का संकेत हो सकता है. यह रोग स्तन कैंसर या
ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है.
स्तन
कैंसर औरतों में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है. औरतों को होने वाले तमाम कैंसरों
में एक तिहाई मामले स्तन कैंसर के ही होते हैं. ऐसा नहीं है कि स्तन कैंसर सिर्फ महिलाओं
को ही होता है. यह खतरनाक बीमारी पुरुषों में भी होती है मगर माना जाता है कि चार सौ
पुरुषों में किसी एक पुरुष को यह रोग होता है. इसे इस तरह देखिये कि स्त्रियों के मुकाबले
पुरुषों में इसके होने की आशंका 150 गुना कम होती है. इसके बाद भी यदि किसी पुरुष के
स्तन में (खासकर एक ही तरफ) कोई गांठ हो, जिसमें कोई दर्द न हो
रहा हो तो यह कैंसर की गांठ हो सकती है. पुरुषों को भी इस ओर उसी गंभीरता से ध्यान
दिए जाने की आवश्यकता है जितनी कि एक महिला को है.
किसी
महिला के सम्बन्ध में स्तन कैंसर का बहुत हद तक सम्बन्ध उसको होने वाली माहवारी से
होता है. असल में माहवारी का निर्धारण या कहें कि सञ्चालन हार्मोंस पर निर्भर होता
है. इनमें एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन आदि हार्मोंस शामिल हैं.
चिकित्सकीय शोधों से ज्ञात हुआ है कि स्तन कैंसर हार्मोन आधारित कैंसर है, ऐसे में
किसी महिला की माहवारी का निर्धारण मुख्य भूमिका निभाता है. किसी महिला की माहवारी
का बहुत कम उम्र में ही, लगभग ग्यारह-बारह वर्ष की उम्र में, शुरू हो जाना स्तन कैंसर
की आशंका को बढ़ाता है. इसके उलट यदि माहवारी जल्दी बंद हो गई हो अर्थात किसी महिला
को मीनोपॉज कम उम्र में ही हो जाये तो ऐसी स्त्रियों में स्तन कैंसर होने का खतरा काफी
कम होता है. स्तन कैंसर की सही समय पर रोकथाम, उपचार के लिए महिलाओं को स्वतः ही
सजग रहने की आवश्यकता है. इसके लिए महिलाओं को स्वयं ही इसकी जाँच करते रहनी
चाहिए.
महिलाओं
को नियमित समयांतराल पर अपने स्तनों को अच्छी तरह से दबा-दबाकर, उसके चारों तरह
हथेलियों के स्पर्श से टटोलते हुए नियमित रूप से देखना चाहिए कि स्तन में कहीं कोई
गांठ तो नहीं है. ऐसा वह कम से कम प्रतिमाह करे ही. यदि किसी भी समय उसे कहीं भी,
छोटी-सी भी गांठ भी महसूस होती है तो उसे सामान्य सी गाँठ समझने की
बजाय तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. यदि महिला शिशु को स्तनपान नहीं करवा
रही है और नियमित जाँच के दौरान स्तन के निप्पल से किसी तरह का कोई द्रव निकलता
दिखाई दे तो भी उसे चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.
चिकित्सा
विज्ञान में तरक्की के बाद भी स्तन कैंसर की सर्वाधिक प्रामाणिक जाँच बायोप्सी के
द्वारा ही हो पाती है. इसके अलावा मैमोग्राफी, एमआरआई या अल्ट्रासाउंड
आदि ऐसी जांचें हैं को किसी भी डॉक्टर के लिए यह निर्धारित करने का काम करती हैं कि
बायोप्सी करवाई जाये या नहीं. इन जांचों के द्वारा अंतिम तौर पर कभी तय नहीं किया
जा सकता कि स्तन में बनी गांठ कैंसर की है या नहीं. बसे ज्यादा जरूरी बात यही है कि
स्तन कैंसर की सबसे महत्वपूर्ण जांच बायोप्सी ही है. बिना बायोप्सी के कोई भी डॉक्टर
पुख्तातौर पर नहीं बता सकता कि संबंधित गांठ कैंसर की है या नहीं. ऐसे में अगर स्तन
कैंसर सम्बन्धी किसी भी तरह की आशंका लगती है तो अपने डॉक्टर की जांच पर सीधे बायोप्सी
कराई जा सकती है. इससे स्तन कैंसर के सम्बन्ध में पुख्ता जानकारी मिल सकेगी और यदि
ऐसा पाया जाता है तो उसका इलाज भी समय से किया जा सकता है. ध्यान रखना चाहिए कि
समय का बढ़ना न केवल इलाज को, ऑपरेशन को बढ़ाता है वरन मरीज की उम्र को भी कम करता
है.
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