01 मई 2019

मोदी की कूटनीतिक वैश्विक सोच को दर्शाती है ये विजय


इस बार विचार किया था कि अपने संसदीय क्षेत्र के निर्वाचन होने तक राजनैतिक पोस्ट लिखने से बचा जायेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में सभी लोग, उसमें हम भी शामिल हैं, पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं. सभी का किसी न किसी दल, विचारधारा के प्रति एक तरह का पूर्वाग्रह बना हुआ है. इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो खुद को निरपेक्ष मानते, बताते हैं. कहने को ऐसे लोग खुद को भले ही निरपेक्ष कहते हों, भले ही वे किसी दल के समर्थक न होते हों मगर विरोधी अवश्य होते हैं. ऐसे लोगों का विरोध सिर्फ और सिर्फ भाजपा से होता है. भाजपा के विरोध में वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, किसी के साथ भी जा सकते हैं. ऐसा इस चुनाव में होते दिख भी रहा है. टुकड़े गैंग का सदस्य खड़ा हुआ है तो भाजपा विरोधी तत्त्व उसके समर्थन में उपस्थित हो गए. देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दम मारने वाले भी ऐसे गैंग का सहारा अपने वरिष्ठ सदस्य के प्रचार के लिए ले रहे हैं. ऐसे लोगों के लिए आतंकवादियों को मारने के सबूत चाहिए होते हैं. ऐसे लोगों के लिए एक आतंकी के पक्ष में अदालत खुलवाने की कोशिश होती है. ऐसे लोगों द्वारा ही हिन्दू आतंकवाद की कहानी गढ़ी जाती है. 


फ़िलहाल, कहने को बहुत कुछ है मगर लिखना इसलिए नहीं क्योंकि आज की पोस्ट का सन्दर्भ उससे कतई नहीं है. आज, एक मई को दो घटनाएँ अपने आपमें अभूतपूर्व कही जा सकती हैं, वे घटित हुईं. इनमें एक घटना आतंकी मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने सम्बन्धी रही. चीन की तरफ से विगत कई मौकों पर वीटो लगाकर ऐसा करने में अड़ंगा लगाया जाता रहा मगर इस बार उसके द्वारा ऐसा नहीं किया गया. पिछले लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र की तरफ से उसे वैश्विक आतंकी घोषित करवाने सम्बन्धी भारत के कूटनीतिक प्रयासों को उस समय सफलता मिली जबकि चीन ने अपना वीटो पावर हटा कर इसका समर्थन कर दिया. इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा संसद, पठानकोट और पुलवामा जैसे हमलों को अंजाम देने वाले आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया गया है. यह भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत है. इस जीत के कुछ दिनों पूर्व पाकिस्तान से हमारे जांबाज अभिनंदन का सुरक्षित वापस आना भी एक कूटनीतिक सफलता थी. दोनों मामलों में विश्व समुदाय ने भारत का खुलकर साथ दिया और उसी का परिणाम रहा कि पाकिस्तान और चीन दवाब में आये. इस घटना पर वर्तमान केंद्र सरकार को जिस तरह से उसके अन्य राजनैतिक साथी दलों की तरफ से बधाई, शुभकामनायें मिलनी चाहए थीं वे नहीं मिली हैं.

इस घटना के अलावा आज की एक घटना वाराणसी से बीएसएफ के बर्खास्त जवान का नामांकन पत्र का खारिज होना है. यह सामान्य अर्थों में बहुत बड़ी घटना समझ न आ रही हो मगर इसके सन्दर्भ बहुत गहरे हैं. संदर्भित व्यक्ति बीएसएफ से बर्खास्त जवान है, जिसका विगत महीनों में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें उसके द्वारा सेना में भोजन सम्बन्धी समस्या को उठाया गया था. फिलहाल, मुद्दा यहाँ यह नहीं वरन यह है कि उस व्यक्ति के द्वारा पहले निर्दलीय नामांकन किया गया, बाद में उसे गठबंधन ने अपना प्रत्याशी बनाया. दोनों नामांकन पत्रों में जानकारियों में अंतर होने के साथ-साथ जो सबसे बड़ी बात है वह उसका बर्खास्त होना. क्या कोई बर्खास्त जवान चुनाव लड़ सकता है? वाराणसी से किसी बर्खास्त जवान का चुनाव क्षेत्र में उतारना, वो भी मोदी के खिलाफ एक सोची-समझी योजना थी. यदि वाकई वह जवान अथवा बीएसएफ के बहुत सारे जवान सेना के सम्मान में ही मैदान में उतर रहे थे तो उनको उस व्यक्ति के खिलाफ चुनाव में उतरना चाहिए था, जिसने खुलेआम सेना को रेपिस्ट कहा था. मगर ऐसा नहीं हुआ, न ऐसा होने जा रहा है क्योंकि इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ भाजपा का विरोध, मोदी का विरोध है.

फिलहाल तो भाजपा विरोधी और मोदी विरोधी संज्ञाशून्य जैसी स्थिति में होंगे. वे किसी भी रूप में रहें, खुश रहें क्योंकि अभी सम्पूर्ण देश वर्तमान केंद्र सरकार की वैश्विक कूटनीतिक विजय की ख़ुशी मना रहा है. मोदी जी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर यात्राओं का यह सुफल निकला है.



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