कितना
हास्यास्पद लगता है, आज़ाद प्रेस के होने के दौर में भी आज, 3 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस (World Press Freedom
Day) मनाया जाना. किसी तरह के हास्य से पहले जानकारी दे दी जाये कि इसे
मनाने का निर्णय 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के जनसूचना विभाग ने मिलकर किया
था. इस निर्णय के पूर्व नामीबिया में हुए एक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया कि
प्रेस की आज़ादी को जनसंचार की आज़ादी के रूप में देखा जाना चाहिए. इसके बाद
प्रस्ताव पारित होने के बाद प्रतिवर्ष 3 मई को अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस
मनाया जाने लगा. अब बात की जाये हास्य की, आज़ादी उस देश में माँगी जा रही है जहाँ
कि आज़ादी पहले से है. किसी देश में देखा गया है कि वहाँ के प्रधानमंत्री को
हत्यारा, कातिल, खून का सौदागर कहा जाये? नहीं सुना होगा न. इसके अलावा भारत में
प्रेस का काम भाजपा-विरोधी होना, हिन्दू-विरोधी होना है. यदि ऐसा न होता तो देश की
मीडिया आज इस तरह से कम न कर रही होती. बहरहाल, आज दिन है प्रेस की स्वतंत्रता का
तो कुछ उसी पर.
यह
दिवस प्रेस की स्वतंत्रता का मूल्यांकन, उसकी स्वतंत्रता की रक्षा
तथा प्रेस में सेवारत रहते हुए दिवंगत हुए संवाददाताओं को श्रद्धांजलि देने का भी दिन
है. इसके बाद भी देखा जाये तो प्रेस अपने इसी दायित्व का निर्वहन भी सही ढंग से
नहीं कर रहा है. अपनी आज़ादी का उचित दायित्व निर्वहन तो अलग वह अपने अंग रहे लोगों
को श्रद्धांजलि देने का काम भी उचित ढंग से नहीं कर रहा है. कम से कम आज के दिन तो
खबरों में झूठ बोलने से, उनको टीआरपी के झमेले में पड़ने से परहेज करना चाहिए था.
अनावश्यक विचारों, बयानों के प्रसारण से बचा जाना चाहिए था. जनहित सम्बन्धी खबरों
के स्थान पर मिर्च-मसालेदार खबरों के प्रसारण से परहेज किया जाना चाहिए था, मगर
ऐसा होता नहीं दिखता. आज यह भले ही कहा जाये कि प्रेस जनता का आइना है, मगर असलियत यह है कि प्रेस ने जनता को गुमराह करने का काम किया है. यही
कारण है कि आज़ादी की माँग के साथ-साथ प्रेस पर नियंत्रण रखने के लिए कुछ नियम और संगठन
बने हुए हैं. ये समय-समय पर प्रेस को अपने दायरे में रहकर काम करते रहने की याद दिलाते
रहते हैं. सत्यता तो यह है कि प्रेस की आज़ादी को छीनना एक तरह से देश की आज़ादी को
छीनने जैसा ही है. वर्तमान में चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आज़ादी
नहीं है. यहां प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है. इस दृष्टि से भारत में प्रेस
की स्थिति अत्यंत सशक्त है.
इसके
बाद भी यहाँ भी प्रेस में बहुतेरे लोग अपनी हनक दिखाने के लिए प्रविष्ट होने लगे
हैं. इनका उद्देश्य जन-जागरूकता फैलाने के बजाय अपनी धाक जमाना ही अधिक होता है.
अपनी गाड़ियों में प्रेस लिखे लोग प्रत्येक शहर में मिल जायेंगे. ऐसे लोग भी मिल
जायेंगे जिनके द्वारा किसी समाचार-पत्र, पत्रिका का प्रकाशन उसी स्थिति में होता
है, उन्हीं दिनों में होता है जबकि उससे संदर्भित विज्ञापन मिलना होता है. इन्हीं
विज्ञापन के द्वारा वे न केवल प्रशासन पर अपनी हनक दिखाते हैं बल्कि अपनी
रोजी-रोटी की जुगाड़ भी करते हैं. ऐसे लोग अपने आपको स्थापित करने लिए मीडिया का रास्ता
चुनते हैं. ऐसे लोगों से प्रेस को बचने की आवश्यकता है. उसे समझना होगा कि प्रेस
की आज़ादी का अर्थ किसी सन्दर्भ में किसी भी तरह की खबर का प्रसारण कर देना नहीं
है. प्रेस को इस बात का संज्ञान लेना होगा कि किसी पूर्वाग्रह के साथ खबरों का,
विचारों का प्रसारण न हो. यदि ऐसा होता है तो यह प्रेस की अक्षमता ही है, साथ ही
समाज के लिए अहितकर भी है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें