लेखन
बहुत छोटे से ही शुरू हो गया था. उस समय लगभग दस साल की उम्र रही होगी जबकि एक
कविता महज तुकबंदी करते हुए लिखी गई थी. पिताजी ने वह कविता प्रकाशन हेतु भेजी और
शायद हमारे लेखन को पिताजी का आशीर्वाद मिलना था, प्रोत्साहन मिलना था कि वो कविता
प्रकाशित भी हुई. दो-दो समाचार पत्रों के बच्चों से सम्बंधित पृष्ठ पर. उसके बाद
लेखन उस तरीके से नहीं चला जैसा कि चलना चाहिए था. इसका कारण यह रहा कि तब समझ ही
नहीं थी कि लेखन भी लगातार, नियमित रूप से किया जा सकता है. बहरहाल, बाद में फुटकर
लेखन तो होता रहा मगर उसे कैरियर के रूप में, किसी तरह की आजीविका के रूप में न
सोच सके, न ही अपना सके. कॉलेज में पहुँचने के बाद भी यही स्थिति बनी रही. घर के
माहौल के चलते पढ़ने का, लिखने का शौक बना रहा. इस शौक में पढ़ना हमेशा लिखने के ऊपर
आता रहा, सो कॉलेज में भी बस मौज-मस्ती के लिए लिखा जाता रहा.
बाद
में सम्पादक के नाम पत्र लिखना, छपना शुरू हुआ. उसी क्रम में आलेखों का प्रकाशन
समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में होने लगा. लिखने, छपने का दौर एक बार शुरू हुआ तो फिर
लगातार बना रहा. लोगों का प्रोत्साहन मिलता रहा. लेखन में विविधता आती रही. लगभग
सभी विधाओं में लिखने का प्रयास किया जाता रहा. लेख, शोध-आलेख, कहानी, लघुकथा,
निबंध, आलोचना, समीक्षा, व्यंग्य, ग़ज़ल, कविता, हाइकु आदि के साथ-साथ संस्मरण,
रेखाचित्र, यात्रा-वृतांत आदि का भी लेखन हुआ. उरई की सांस्कृतिक संस्थाओं के
सहयोग से नाटक, नुक्कड़ नाटकों का लेखन भी किया गया. इसके बाद भी दिमाग में लेखन को
पूर्णकालिक रूप से अपनाने का विचार कभी भी न आया. कागज, कलम का लेखन समय के साथ
चलता रहा. इस बीच कंप्यूटर तकनीक ने अपनी हनक दिखानी शुरू की किन्तु हमसे उसका
परिचय काफी देर बाद हुआ.
कंप्यूटर
से परिचय होने के क्रम में ही इंटरनेट से भी परिचय किया गया. दोनों से बहुत देर बाद
मुलाकात हुई मगर उस मुलाकात ने भी प्रोत्साहित किया. लेखन को वैश्विक आयाम देने का
विचार मन में आने लगा. काफी जद्दोजहद के बाद अंततः ‘मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नंदन’
को चरितार्थ किया. एक ब्लॉग बनाने की मंशा को पूरा करने के चक्कर में कई सारे
ब्लॉग बना गए मगर हर तरफ से जाँच-परख कर, जानकारी लेने-देने के बाद एक ब्लॉग पर
जुट गए. पहली पोस्ट आज की तारीख में आज से ठीक ग्यारह साल पहले आई. चार मई दो हजार
आठ से चलती हुई ब्लॉग पोस्ट यात्रा आज चार मई दो हजार उन्नीस तक आ पहुँची. इस सम्बन्ध
में एक सुखद संयोग हमारे साथ यह जुड़ा कि ब्लॉग पोस्ट के जन्म के ठीक दो दिन बाद यानि
कि सात मई दो हजार आठ को हमारी बिटिया रानी का जन्म हुआ. वो भी दो दिन बाद अपने
ग्यारह वर्ष पूरे करेगी.
इस
दौरान आज की इस पोस्ट को मिलाकर 1555 पोस्ट एक इस ब्लॉग पर
ही लिखी गईं. ब्लॉग लेखन की यात्रा शुरू हुई तो अनेक ब्लॉग अलग-अलग विषयों पर
बनाये जाते रहे. अनेक सामूहिक ब्लॉग से जुड़ना होता रहा. अनेक वेबसाइट पर लिखना
हुआ. बहुत से दोस्तों के, परिचितों के, अपरिचितों के ब्लॉग बनाये, बनवाए जाते रहे.
ब्लॉग की लोकप्रियता के दौर में बहुत से मित्रों से संपर्क हुआ. अनेक मित्रों से
घनिष्ठ सम्बन्ध बने. वैचारिक आदान-प्रदान होता रहा. मिलना जुलना होता रहा. लग रहा
था जैसे कि ब्लॉग संसार ने एक अलग तरह की ही दुनिया का निर्माण कर दिया है. ब्लॉग
संसार के मित्रों की तरफ से सुझाव दिए गए ब्लॉग के द्वारा धनोपार्जन की. इस तरफ
प्रयास किया गया मगर मन न लगा क्योंकि तकनीकी रूप से जितनी साक्षरता उसके लिए
चाहिए थी, उतनी हममें दिखाई न दी. सच तो ये है कि तकनीकी से निकटता बनाये रखने के
बाद भी इस मामले में हम अशिक्षित ही रह गए. बहरहाल, लेखन में एक लम्बा समय व्यतीत
करने के बाद भी साहित्यिक क्षेत्र में, लेखन के क्षेत्र में किसी तरह की स्थापना न
होने का एहसास होता है.
एक
लम्बी समयावधि के लेखन के बाद भी कई बार लगता है कि अभी बहुत कुछ लिखना बाकी है.
अभी ऐसा कुछ लिखा ही नहीं जा सका है जो समाज में किसी तरह की स्थापना कर सके. इंटरनेट
पर ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल मीडिया आदि के द्वारा लेखन की व्यापकता बनाये रखने के बाद
भी साहित्यिक गुटबाजी से खुद को दूर बनाये रखने में सफल रहे हैं. इसके अपने फायदे
भी मिले तो इसके नुकसान भी देखने को मिल रहे हैं. फ़िलहाल तो आज का दिन अपने ब्लॉग
लेखन के ग्यारह साल पूरे करने के उत्सव का दिन है. अपने इसी एक ब्लॉग पर 1555वीं पोस्ट पूरा किये जाने के उल्लास का दिन है. कथित साहित्यिक शोशेबाजी पर
किसी और दिन नजर मारी जाएगी.
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को विश्व हास्य दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/05/2019 की बुलेटिन, " विश्व हास्य दिवस की हार्दिक शुभकामनायें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !