विश्व
हास्य दिवस के दिन ये सोचना ही हास्य पैदा करता है कि अब हँसने के लिए भी एक दिन
विशेष की आवश्यकता है. ये भी हँसने वाली बात है कि हँसने-हँसाने के लिए भी किसी
शिक्षक की, प्रशिक्षक की आवश्यकता है. ये भी हास्यास्पद स्थिति है कि एक-दो देशों
में नहीं वरन आज भारत समेत दुनिया के 108 देशों में छह हजार से भी अधिक हास्य क्लब
या लाफ्टर क्लब खुल चुके हैं, जिनमें 25 हजार से ज्यादा विद्यार्थी हँसने का
प्रशिक्षण लेते हैं, हँसते हैं. डॉ० मदन कटारिया के ये लाफ्टर क्लब या कक्षाएँ बिना
फीस के चलती हैं. डॉ० मदन कटारिया को विश्व हास्य योग आंदोलन की स्थापना का जनक
माना जाता है. इनके द्वारा ही विश्व हास्य दिवस का पहला आयोजन 11 जनवरी 1998 को मुंबई में किया गया था. उसके बाद से प्रतिवर्ष मई के पहले रविवार को विश्व हास्य दिवस मनाया जाने
लगा.
इस
बारे में कोई दोराय नहीं कि हँसना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है. हँसने से ऑक्सीजन का
संचार अधिक होता है व दूषित वायु बाहर निकलती है. हँसने से ही शरीर के अंदरूनी
अवयवों की कसरत स्वतः हो जाती है. इन्सान के शरीर में पेट और छाती के बीच में एक डायफ्राम
होता है जो हँसने के दौरान क्रिया करता हुआ पेट, फेफड़े और यकृत
की मालिश कर देता है. इससे इन सभी अवयवों को ताकत तो मिलती ही है, शरीर में रक्त संचार
की गति बढ़ जाती है. इससे व्यक्ति का पाचन तंत्र और अधिक सक्रियता, कुशलता से कार्य
करने लगता है. असल में हँसना अपने आपमें ही एक तरह की सकारात्मक को समेटे होता है.
साफ़ सी बात है कि कोई व्यक्ति दुःख में हँस नहीं रहा होगा. कोई व्यक्ति तमाम सारे
कष्टों को सहता हुआ हँसता नहीं है. हँसने का कारण ही व्यक्ति को मिलने वाली ख़ुशी,
उसे मिलने वाला सुख है. इसका सीधा सा सम्बन्ध व्यक्ति की मानसिकता से है. हँसता
हुआ व्यक्ति अपने आप ही ऊर्जावान बना रहता है. अपनी इसी ऊर्जा और जोश से वह अपने
आसपास के माहौल को भी सक्रिय, ऊर्जावान बनाये रखता है.
इन
सब बातों को जानने-समझने के बाद भी खुलकर हँसना, ठहाके लगाकर हँसना फूहड़ता की
निशानी माना जाने लगा है. ठहाकों या खिलखिला कर हँसने की बात छोड़ दें तो अब हँसना ही
जाहिल, गँवार होने की निशानी माना जाने लगा है. ऐसा अक्सर वहाँ महसूस किया जाने
लगा है जहाँ कथित तौर पर बौद्धिकता का प्रदर्शन किया जाता है. ऐसे में व्यक्ति
अपने कार्यालय में, किसी आयोजन में, बाजार में, बीच सड़क पर, अपने मोहल्ले में
खुलकर हँसने से परहेज करने लगा है. अपनी कथित बौद्धिकता के चक्कर में वह अझेल
तरीके की चुप्पी धारण करने लगा है. इसी के चलते वह अब सुबह-सुबह, भोर के अँधेरे
में पार्कों के कोने में, कहीं खुले मैदानों में अकेले जोर-जोर से हँसने की कोशिश
करने लगा है. इस बात का भान खुद में रखने के लिए कि वह हँसना नहीं भूला है, लाफ्टर
क्लब में, हँसने की पाठशालाओं में हँसने की नौटंकी करने लगा है. बड़े-बड़े शहरों की
बात ही कौन करे अब तो छोटे-छोटे शहरों, कस्बों में भी सुबह-सुबह हँसने के नाम पर
पेट फुलाने का, हाथ हवा में तैराने का काम होने लगा है.
समझना
चाहिए कि हँसी एक नैसर्गिक क्रिया है जो मन के, दिल के, दिमाग के, शरीर के
प्रफुल्ल्ति होने की दशा में स्वतः उत्पन्न होती है. क्या किसी ने किसी बच्चे को हँसने
के लिए धन, भौतिकतावादी सामानों, संसाधनों
की मदद लेते देखा है? असल में हँसने के लिए किसी भौतिक वस्तु
की आवश्यकता नहीं. किसी धन की आवश्यकता नहीं. किसी संसाधन की जरूरत नहीं. ये
व्यक्ति के भीतर से उत्पन्न होने वाली स्व-स्फूर्त ऊर्जा है जो उसे हँसने को
प्रेरित करती है. अब ये तो व्यक्ति को स्वतः ही निर्धारित करना पड़ेगा कि उसे किस
बात से, किस कार्य से, किस स्थिति से सुख की, आनंद की प्राप्ति होती है. ये उसी
व्यक्ति को तय करना होगा कि क्या-क्या उसके मन को, दिल को दिमाग को संतुष्टि देता
है, उल्लास देता है, तरंगित करता है. कोई लाफ्टर क्लब, कोई कक्षा, कोई योग, हँसने
सम्बन्धी कोई भी जबरन की जाने वाली क्रिया किसी भी व्यक्ति को पल दो पल को हँसने
का, हँसाने का आभास तो करवा देगी मगर उसे वाकई हँसा नहीं सकती. इसके साथ-साथ एक
बात और याद रखनी होगी कि यदि हँसने के लिए व्यक्ति को किसी लाफ्टर क्लब, किसी
कक्षा, किसी योग-क्रिया की, किसी दिवस विशेष की आवश्यकता पड़ती है तो वह व्यक्ति
बुरी तरह से बीमार है, शारीरिक रूप से भी, मानसिक रूप से भी. हँसने के लिए किसी
बहाने की नहीं, अपने आसपास के माहौल को सकारात्मक बनाने की, सहज बनाने की,
प्राकृतिक बनाने की आवश्यकता है.
इसके
बाद भी औपचारिकता में ही सही आज मई के पहले रविवार, 5 मई 2019
को विश्व हास्य दिवस पर शुभकामना कि आप सभी हँसते रहें, हँसते ही
रहें.
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