29 अप्रैल 2019

ज़िन्दगी तू थक जाएगी इम्तिहान लेते-लेते - 1550वीं पोस्ट

ऐ ज़िन्दगी, कितनी बार इम्तिहान लेगी तू हमारा? हो सकता है कि कल को तू इम्तिहान लेती-लेती थक जाए मगर हम नहीं थकेंगे. तुम्हारा काम इन्तिहान लेना है, हमारा इम्तिहान देना. तुम थक जाओगी मगर हम नहीं. यहाँ तो एक उम्र बीत गई इसी में. ज़िन्दगी, तुमने अपने रंग-ढंग बदले मगर हम न बदले. तुम अपनी कोशिश करो, हम अपनी करते हैं. तुम जीत जाओ तो हमें ले जाना, हम जीतें तो बिना हमारी आज्ञा के न जाना. कहो, है मंजूर? ये कोई दर्शन नहीं, ये कोई फ़िल्मी डायलॉग नहीं वरन ज़िन्दगी के प्रति एक नजरिया होना चाहिए किसी भी आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति है. हमारा तो यही विचार है. हमारा मानना है कि ज़िन्दगी जिस परमसत्ता द्वारा दी गई है, जिस प्रकृति द्वारा दी गई है, जिस विज्ञान द्वारा दी गई है वह महज उम्र काटने के लिए नहीं दी गई है. यदि उसका उद्देश्य किसी भी जीव को, विशेष रूप से इन्सान को ज़िन्दगी देना है तो उसके पीछे अनेक अर्थ छिपे हुए हैं. यदि उसे महज जीवन देना होता, मात्र जीवित रखना होता तो वह ज़िन्दगी के साथ अनिश्चितता नहीं जोड़ता. सबकुछ निर्धारित होने के बाद भी इन्सान उससे अनभिज्ञ है, ऐसा महज इसलिए कि वह ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मकता अपनाता हुआ आगे बढ़ता रहे.


जैसा कि प्रकृति का सिद्धांत है कि यहाँ सब कुछ परिवर्तनीय है. एक पल में ही यहाँ सबकुछ उलट-पुलट हो जाता है. प्रकृति की गोद में एक दिन में ही जाने कितना परिवर्तन होता रहता है. पूरे चौबीस घंटों की समयावधि देखें तो पल-पल में ही परिवर्तन देखने को मिलते हैं. ऐसे में कैसे स्वीकार कर लिया जाये कि उसी प्रकृति की गोद में रहने वाले व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन नहीं होगा? कैसे मान लिया जाये कि जो पल आज है वह अगले पल बदलेगा नहीं? यह सत्य है कि जैसे दुःख आया है वैसे जाएगा भी उसी के साथ सुख भी आएगा और वह भी दुःख के जाने की तरह कुछ पल बाद चला जायेगा. इन्सान से अपने आपको इसी बदलाव के द्वारा, इस परिवर्तन के द्वारा आने वाली किसी भी घटना के लिए तैयार रहने के लिए, खुद में संतोष का भाव जागृत करने के लिए मान लिया है कि ऐसा करना ज़िन्दगी का लक्षण है. ऐसा होता है से ज्यादा वह इस पर विश्वास करता है कि ज़िन्दगी ऐसा करती है. इस विचारधारा से वे व्यक्ति सहज रूप में बाहर निकल आते हैं जो विश्वास के साथ किसी भी परिवर्तन का सामना करते हैं. इसके ठीक उलट वे लोग परेशान हो जाते हैं जो ज़िन्दगी के ऐसे परिवर्तनों के वशीभूत होकर अपना संतुलन खो देते हैं, अपने विश्वास को डगमगा देते हैं. 

ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति को अगले पल की जानकारी नहीं, सभी व्यक्तियों को चौबीस घंटे ही मिले हैं, हाँ बस संसाधनों का, माध्यमों का अंतर अवश्य हो सकता है. इस अंतर को कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास के द्वारा भले न मिटा सके मगर कम तो कर ही सकता है. जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अपने कार्यों से अपने सामने आने वाली विसंगतियों को दूर करता जाता है, अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करता जाता है वैसे-वैसे उस व्यक्ति के अन्दर विश्वास का लेवल बढ़ता चला जाता है. किसी भी व्यक्ति को यही विश्वास विजयी बनाता है, यही विश्वास आगे बढ़ाता है. ऐसे में ज़िन्दगी में मिलने वाली चुनौतियों को, ज़िन्दगी से मिलने वाली चुनौतियों को वह सिर्फ और सिर्फ अपने विश्वास से ही जीत सकता है. ऐसे में कोई भी व्यक्ति अपने विश्वास को बनाये रखे और ज़िन्दगी की चुनौतियों से जीतते हुए उसे ही चुनौती देता रहे.


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इस ब्लॉग की 1550वीं पोस्ट 

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