इस
बार निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव को देश का महापर्व घोषित कर दिया गया है.
शासन-प्रशासन अपने-अपने स्तर पर पूरा दम लगाकर अधिक से अधिक मतदान करवाने की कोशिश
में लगा हुआ है. ऐसे में मतदान कितना होगा ये बाद की बात है मगर जैसा कि पहले भी
कहा था कि मतदाता जागरूकता किसी के कहने से नहीं होती वरन यह स्व-स्फूर्त
प्रक्रिया है जो अंतःकरण से उपजती है. जिसे भी जरा सा भी भान है अपनी जिम्मेवारी
का, अपने कर्तव्य का, देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली के प्रति विश्वास का, देश की
सरकार के कार्यों के प्रति सकारात्मकता का वह अपने आपको मतदान के लिए प्रेरित कर
ही लेता है. मतदान के लिए खुद को तैयार कर ही लेता है. उसे न तो प्रशासन की
गोष्ठियों की आवश्यकता होती है, न रैलियों की, न नारे लिखी तख्तियों की, न आदर्श
बूथ की. ऐसे लोग अपने आप मतदान के लिए सतर्क रहते हैं, जागरूक रहते हैं.
ऐसा
उदाहरण आज विश्व के पहले अनाज बैंक के बुन्देलखण्ड स्थित क्षेत्रीय कार्यालय की
उरई शाखा में देखने को मिला जबकि वहाँ की लाभार्थी खाताधारक महिलाएँ जनपद जालौन
में 29 अप्रैल को होने वाले मतदान में हिस्सा लेने के प्रति उत्साहित
दिखीं. अनाज बैंक उरई शाखा प्रतिमाह दो बार एक महिला को पांच किलो अनाज प्रदान
करता है, इस उद्देश्य के साथ कि कोई भी भूखा न सोये. सभी महिलाएं ऐसी हैं जो अकेली
हैं, वृद्ध हैं, अत्यंत गरीब हैं, मजबूर हैं, निराश्रित हैं. इनमें से ज्यादातर
महिलाएं ऐसी हैं जो शिक्षित नहीं हैं. सामान्य अक्षर-ज्ञान से भी वंचित हैं, अपने
नाम को लिखना भी नहीं जानती हैं. बहुत सी महिलाएं अत्यंत वृद्ध हैं. इसके बाद भी
ख़ुशी की बात यह है कि दो-चार महिलाओं को छोड़कर सभी महिलाएं अभी तक मतदान करती रही
हैं. अबकी बार कुछ महिलाओं के वोट कट गए हैं; कैसे, क्यों इसकी जानकारी उनको भी
नहीं है और अनाज बैंक शाखा को भी समय से नहीं हो सकी.
अप्रैल
माह के दूसरे वितरण के दौरान आज सभी महिलाओं से मतदान करने सम्बन्धी चर्चा हुई.
सभी महिलाओं ने पूर्व में अपने मतदान करने की बात कही. कुछ महिलाओं ने अपने वोट के
इस बार कट जाने की समस्या बताई. उनकी बातों से लग रहा था, जैसे कि उनका वोट कट
जाना गलत हुआ. उन्हीं महिलाओं में से अत्यंत वृद्ध महिला ने यहाँ तक कहा कि वह कल
मतदान दिवस पर अपना आधार कार्ड लेकर अपने बूथ जाएगी. वहां किसी अधिकारी से बात
करके वोट डलवाने के लिए कहेगी क्योंकि वह पहले वोट डालती रही है. सोचिये, जिस देश
के नागरिकों में इस तरह का ज़ज्बा होगा, वहां का लोकतंत्र खतरे में कैसे आ सकता है?
ये ऐसी महिलाएं हैं जिनको सीधे-सीधे अपने किसी जनप्रतिनिधि से काम नहीं पड़ना है.
इनको किसी सरकार में बालू, शराब के ठेके नहीं चाहिए हैं. ये ऐसी महिलाएं हैं जिनके
किसी परिजन को कोई सिफारिश भी नहीं करवानी है. ये सभी महिलाएं बस इतना समझ सकी हैं
कि देश में सरकार के बनाने-गिराने में वोट का महत्त्व है. इसी कारण वे अपना वोट
देना चाहती हैं. उनके ये जानने का प्रयास नहीं किया कि वे किसे अपना वोट देना
चाहती हैं और न ही उन्होंने ये बताने-पूछने की चेष्टा की.
सुखद
ये लगा जानकर कि जहाँ आज के दौर में जनप्रतिनिधियों के क्रियाकलापों से रुष्ट होकर
पढ़ा-लिखा मतदाता वोट डालने से विरक्त होने लगा है वहीं ऐसी महिलाएं अपने मतदान को
लेकर सजग हैं. मतदान को छुट्टी का दिन मानकर पढ़ा-लिखा मतदाता कहीं सपरिवार पिकनिक
पर निकल जाता है वहीं ये महिलाएं सबह-सुबह मतदान करने के प्रति जागरूक दिखीं.
शिक्षित मतदाताओं के लिए शासन-प्रशासन द्वारा आये दिन तमाम तरह की नौटंकी करते हुए
उनको जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं ये महिलाएं स्व-प्रेरण से मतदान
के लिए जागरूक हैं. ऐसी महिलाओं, ऐसे मतदाताओं के कारण ही इस देश का लोकतंत्र जिन्दा
है, इस देश की लोकतान्त्रिक प्रणाली सक्रिय है. नमन है ऐसी महिलाओं को, ऐसे जागरूक
मतदाताओं को.
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