27 अप्रैल 2019

एकमात्र काम बस मतदाता जागरूकता कार्यक्रम


चुनाव अपने चरम पर है और सभी जगह प्रशासन भी मुस्तैदी से जुटा हुआ है. चुनाव सम्बन्धी जो तैयारियाँ चल रही हैं, उनको लेकर जितना ध्यान प्रशासन स्तर पर रखा जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा जोर इस बार मतदाता जागरूकता को लेकर दिख रहा है. दिन भर किसी न किसी रूप में मतदाताओं को जागरूक करने का काम किया जा रहा है. इस काम में प्रशासनिक मशीनरी जितना अधिक शामिल है, उससे कहीं ज्यादा उसने निजी मशीनरी को लगा रखा है. जागरूकता के नाम पर निजी संस्थानों को, सामाजिक कार्य करने वालों को लगा रखा गया है. कहीं-कहीं इनके द्वारा स्वेच्छा से काम किया जा रहा है और कहीं-कहीं प्रशासन द्वारा जबरिया तरीके से इनसे मतदाता जागरूकता के कार्य करवाए जा रहे हैं.


निश्चित ही चुनाव हमारे देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण भाग है और इसमें हर एक व्यक्ति को अपनी भागीदारी निभानी चाहिए. देखा जाये तो बहुत से भागों में ऐसा होता भी है. वे सरकारी लोग जिन पर सरकार का, प्रशासन का नियंत्रण है, चुनाव ड्यूटी में लगाये जाते हैं. यहाँ ऐसे लोगों की अपनी मजबूरी होती है और वे इस कार्य से खुद को सहजता से अलग भी नहीं कर पाते हैं. इस बार कई जगहों से प्रशासन द्वारा असंवेदनशील रवैया अपनाये जाने की खबरें भी मिली हैं. महिलाओं की निर्वाचन सम्बन्धी ड्यूटी लगाने में भी संवेदना का भाव नहीं दिखाया गया है. कई जगह बुजुर्ग कर्मियों के साथ भी भेदभावपूर्ण रवैया अपनाये जाने की बातें सामने आई हैं. इसके साथ-साथ चुनाव ड्यूटी से बचे लोगों को और चुनाव ड्यूटी में लगे लोगों को मतदाता जागरूकता के इतने काम सौंपे गए, लगा जैसे वर्तमान निर्वाचन में जागरूकता एक प्रमुख मुद्दा बनकर सामने आया हो. विद्यालयों के वे बच्चे भी इसमें शामिल किये गए जिन्हें अभी मतदान करने में समय है. कोचिंग सेंटर्स, विद्यालयों आदि को लगभग रोज ही किसी न किसी कार्यक्रम करने को, रैली निकालने को, गोष्टी आयोजित करने को मजबूर किया जाता रहा है. इस समय की भीषण गर्मी में बच्चों को धूप में रैली निकालने के लिए मजबूर करना किसी भी रूप में मानवीय तो समझ नहीं आया.

आज के दौर में मतदान करने वाला बहुत हद तक जागरूक है, इसके बाद भी यदि उसमें किसी तरह की सुसुप्तावस्था आई है तो वह जनप्रतिनिधियों के रवैये के चलते. उनके बेरुखे व्यवहार ने मतदाताओं को मतदान से दूर किया है. इसी तरह प्रशासन के तानाशाही भरे रवैये ने भी आम आदमी को प्रशासन से दूर किया है, उसके प्रति खौफ सा पैदा किया है. आज जिस तरह से शासन, प्रशासन, जनप्रतिनिधि अपने कार्य करने का तरीका बनाये हैं, उससे आमजनमानस में सिर्फ और सिर्फ भ्रष्ट तस्वीर बनी है. इसी के चलते प्रशासन के मतदाता जागरूकता कार्यक्रम आम जनता को सिर्फ धन कमाने के, सरकारी पैसे को खपाने का माध्यम मात्र नजर आता है. प्रशासन ज्यादा से ज्यादा मतदाता जागरूकता कार्यक्रम करवा कर, अधिक से अधिक मतदान करवा कर अपनी प्रोफाइल को बढ़िया कर लेने की कोशिश में रहते हैं. चुनाव संपन्न होने के बाद उनका रवैया भी जनप्रतिनिधियों जैसा हो जाता है. वे भी आम जनता की समस्याओं की तरफ से अपने आपको दूर ले जाते हैं. 


असल में आज जनप्रतिनिधियों ने, प्रशासन ने जनता के बीच से अपना विश्वास खो सा दिया है. आये दिन के कार्यों से इसकी झलक भी दिखाई देती है. यदि हालिया मतदाता जागरूकता कार्यक्रमों की चर्चा की जाये तो आये दिन निकलने वाली रैलियों से शहर की सड़कों पर जाम की स्थिति बनती है. चिलचिलाती धूप में राहगीर फँसे होते हैं, बच्चे फँसे होते हैं, मरीज तड़प रहे होते हैं मगर उस जाम को घंटों तक खुलवाने के लिए किसी तरह की प्रशासनिक मदद, सहयोग नहीं मिलता है. ऐसे भी जागरूकता से क्या फायदा जो अपने शहर के लोगों को ही कष्ट में खड़ा कर दे. असल में जागरूकता कहीं बाहर से ठेल-ठेल कर नहीं लाई जा सकती है. यह विशुद्ध अंतःप्रेरण का सुफल है. आज से दशकों पहले के चुनावों का दौर भी भली-भांति याद है जबकि लोग सुबह से ही मतदान करने के लिए हँसते-हँसते चल दिया करते थे. तब न तो आज की तरह रैलियाँ थीं, न गोष्ठियाँ, न नारेबाजी, न तख्तियाँ, न सेल्फी पॉइंट. तब लोग मतदान करना अपना कर्तव्य समझते थे और इसके लिए सजग रहते थे. जब तक एक-एक मतदाता चुनाव को, मतदान को अपनी जिम्मेवारी नहीं समझेगा,, अपना कर्तव्य नहीं मानेगा तब तक ऐसे ही मतदाता जागरूकता कार्यक्रम चलते रहेंगे. प्रशासन अपना काम करता रहेगा, मतदाता अपना काम करते रहेंगे, जनप्रतिनिधि अपना काम करते रहेंगे. इन सबके बीच देश का लोकतंत्र आगे बढ़ता ही रहेगा, लोकतान्त्रिक प्रणाली आगे बढ़ती रहेगी.

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