14 अप्रैल 2019

सच्चे दिल से नफरत नहीं हो सकती


लोग कहते हैं कि इस एक जीवन में प्रेम करने के लिए ही पर्याप्त समय नहीं, लोग कहाँ से आपस में दुश्मनी पाल लेते हैं. यहाँ समझना होगा कि प्रेम किससे, दुश्मनी किससे? प्यार किससे, नफरत किससे? जिन दो दिलों में प्यार होगा उनमें आपस में नफरत नहीं होगी, आपस में उनमें दुश्मनी नहीं होगी. ऐसा किसी का मानना हो या न हो पर हमारा मानना है कि जिनके बीच भी सच्चा स्नेह है, सच्चा प्रेम है उनके बीच कभी भी दुश्मनी जैसा शब्द नहीं आ सकता है. भले ही ऐसे उदाहरण देखने को मिलते रहे हों जहाँ कि दो प्यार करने वालों में आपस में नफरत हुई, उनमें आपस में प्रेम न रहा, उनमें किसी तरह से अलगाव हो गया तो यहाँ स्पष्ट है कि उनके बीच प्रेम नहीं रहा होगा. प्रेम की सम्पूर्णता के लिए पहले प्रेम और आकर्षण का अंतर समझना होगा. प्रेम और आकर्षण में जमीन आसमान जैसा अंतर है. प्रेम का सम्बन्ध किसी भी रूप में नफरत से नहीं है, दुश्मनी से नहीं है. यहाँ आवश्यक नहीं कि प्रेम दो विपरीतलिंगियों के बीच हो. प्रेम का तात्पर्य यहाँ दो व्यक्तियों के बीच दिलों से दिलों के जुड़ने का मसला है. वे चाहें दो मित्र हों, चाहे दो सम्बन्धी हों, दो सहयोगी हों या फिर दो कोई भी व्यक्ति. 


असल में प्रेम विशुद्ध दिली मामला है और दुश्मनी दिल से नहीं दिमाग से की जाती है. ऐसे में कई बार भले ही दो प्रेम करने वाले दिलों में आपस में किसी कारण से तनाव आ जाये, उनके बीच अबोलपन की स्थिति बन जाए मगर यदि उनके बीच सच्चा प्रेम है तो यह तनाव बहुत लम्बे समय तक नहीं ठहर सकता है. दोनों ही किसी न किसी रूप में अपने दूसरे साथी का हालचाल जानने के लिए बेचैन रहता है. हाँ यदि दोनों में से किसी एक में भी प्रेम का दिखावटी स्वरूप मौजूद है, दोनों में से किसी एक के प्रेम में प्रेम के स्थान पर आकर्षण है तो वहाँ भी इस तनाव के साथ-साथ एक तरह का अहं स्थान घेर लेता है. ऐसी स्थिति में प्रेम की जगह एक-दूसरे के लिए नफरत दिखाई देने लगती है. ऐसी स्थिति में ही वहाँ दो लोगों के बीच प्रेम की जगह नफरत दिखाई पड़ती है.

प्रेम को नफरत से बचाए रखने के लिए आवश्यक है कि दो दिलों में एक-दूसरे के प्रति समर्पण रहे, एक-दूसरे के प्रति विश्वास रहे. ऐसा न होना ही दिलों के बीच दूरियां पैदा करता है और आपस में तनाव, नफरत, दुश्मनी जैसे भाव को जन्म देता है.

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