12 अप्रैल 2019

ग़लतफ़हमी और अविश्वास में दरकते सम्बन्ध


कतिपय सार्वभौमिक सत्यों की तरह यह भी सार्वभौमिक सत्य है कि ग़लतफ़हमी के चलते संबंधों के बिगड़ने में देर नहीं लगती है. इसके लिए किसी परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि यह अनादिकाल से सत्य होता चला आ रहा है. दो लोगों के आपसी संबंधों में बिखराव का एक कारण उनके बीच होने वाली ग़लतफ़हमी होती है. यह ग़लतफ़हमी कई तरह से संबंधों के बीच पनपने लगती है. आज के आपाधापी के दौर में, भागमभाग की स्थिति में सभी के पास सीमित समय रह गया है या कहें कि व्यक्तियों ने खुद को खुद में ही सीमित कर लिया है, इस कारण भी समय सीमित रह गया है. ऐसी स्थिति में लोगों के बीच आपसी वार्तालाप के अवसर बहुत कम आने लगे हैं. लोग जानबूझ कर भी आपस में मिलने से बचने लगे हैं. एक-एक व्यक्ति के भीतर अनेक-अनेक समाज पनप चुके हैं, वह उनको सँभालते-सँभालते ही अपने आपमें इतना परेशान हो जाता है कि किसी और जगह समय देने की स्थिति में नहीं रहता है.


ग़लतफ़हमी के साथ-साथ विश्वास-अविश्वास की स्थिति भी आपसी मनमुटाव का कारण बनता है. दो लोगों के मध्य अविश्वास का जन्म भी इसी ग़लतफ़हमी के कारण होता है. देखा जाये तो ग़लतफ़हमी और अविश्वास एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं. इन दोनों का सह-सम्बन्ध भी है. एक के होने से दूसरे का उत्पन्न होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में चाहे पहले अविश्वास जन्म ले तो वहाँ ग़लतफ़हमी भी जन्म लेती है और यदि पहले ग़लतफ़हमी हो जाये तो वहाँ अविश्वास का जन्म हो जाता है. इधर देखने में आ रहा है कि वर्षों पुराने सम्बन्ध भी अचानक से जरा-जरा सी बात पर ग़लतफ़हमी का शिकार हो रहे हैं. अचानक से वर्षों पुराने संबंधों में अविश्वास पैदा हो जा रहा है. ये समझने का विषय है कि आखिर वर्षों पुराने संबंधों में एकदम से अविश्वास कहाँ, क्यों और कैसे उत्पन्न हुआ? यहाँ यह भी समझने वाली बात है कि यदि किसी स्थिति के चलते अविश्वास जैसी स्थिति आई भी, ग़लतफ़हमी का शिकार हुआ भी गया तो क्या आपसी सूझ-बूझ से, आपसी तालमेल से, आपसी बातचीत से उसे सुलझाने की कोशिश न की गई? ग़लतफ़हमी को दूर करने की कोशिश नहीं की गई?

इस तरह की स्थितियों से हमें स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर अनेक बार दो-चार होना पड़ता है जबकि अपने करीबी मित्रों, सहयोगियों, रिश्तेदारों के बीच उत्पन्न अविश्वास, ग़लतफ़हमी को दूर करने के प्रयास करने पड़ते हैं. ऐसा देखने में आया है कि बहुत बार अकारण जन्मे अविश्वास, ग़लतफ़हमी के पीछे कभी उनका अहं, कभी उनके बीच अबोल की स्थिति, कभी किसी पुरानी घटना को लेकर बना तनाव मुख्य कारण होता है. ऐसा ही कुछ हाल के दिनों में भी हुआ जबकि हमारे दो मित्रों के बीच उत्पन्न तनाव की स्थिति को, अविश्वास की स्थिति को दूर करने का प्रयास किया गया. यहाँ हवन करते हाथ जलने वाली बात हमारे साथ सत्य बैठ गई. दोनों मित्रों की चुप्पी के बीच हँसी-हँसी के वातावरण में हमने सुलझाव लाने की कोशिश की, इसी कोशिश में पता नहीं कहाँ से अविश्वास का, किसी पुरानी बात का, तनाव का, ग़लतफ़हमी का साया आ टपका. बस, एक झटके में बात बनने के बजाय बिगड़ने की दिशा में चली गई. दोनों तरफ से बात अपने-अपने स्तर पर सही समझ आ रही थी, मगर ऐसा सिर्फ भावनात्मक तौर पर ही सत्य समझ आ रहा था. भावनात्मक आधार पर निर्मित इमारत का व्यावहारिक स्वरूप निर्मित होता दिख नहीं रहा था. ऐसी स्थिति में पता नहीं उन दोनों के बीच बात सुलझी या और उलझ गई मगर हमारा प्रयास निरर्थक ही निकला. 

इस प्रयास में एक बात और स्पष्ट हुई कि शायद अभी भी हमें अपना विश्वास जमाने की आवश्यकता है क्योंकि बिना विश्वास के ऐसे मामले हल नहीं किये जा सकते हैं. दिल से, दिमाग से यही चाहा था कि दोनों दोस्तों के बीच का मसला सुलझ जाए, दोनों के बीच की तनाव की, अबोल की स्थिति समाप्त हो जाए और उन दोनों सहित हम भी सुखद स्थिति का अनुभव कर सकें. आखिर एक जिम्मेवारी सी समझ आ रही थी, उन दोनों मित्रों के बीच कॉमन मित्र बने होने के नाते. मित्रता का एक आधार जहाँ का तहाँ है, एक आधार शायद खिसक चुका है. बस उस आधार को बचाने के पहले अभी हमें खुद का ही विश्वास बचाना है. अपने विश्वास को पहले से भी अधिक ऊँचाई पर ले जाने का, पहले से अधिक मजबूत कर लेने का विश्वास तो हमें है बस कामना उन दोनों मित्रों के लिए है. जय हो....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें