11 अप्रैल 2019

चित्रों और शब्दों के संयोजन से उभरे शब्द-चित्र

कुछ समय पहले हमारे एक मित्र ने हमारी कविताओं, ग़ज़लों आदि को पढ़कर सुझाव दिया था कि मंच पर भी पढ़ा करो. इसके अलावा और भी बहुत कुछ हमारी रचनाओं की तारीफ के भी कहा गया. साफ़ सी बात है, मित्र है, बचपन का मित्र है तो स्वाभाविक है कि कोई लाग-लपेट तो होनी नहीं है. ऐसा भी नहीं कि कोई स्वार्थ रहा हो तभी उसने ऐसा कहा हो. वो हमारी आदत को जानता भी है कि हम किस कारण मंच से बचते रहे हैं. पहले रोजगार की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं को ही मंच बना रखा था, ऐसे में मंच पर जाना समय की बर्बादी समझ आती थी. ऐसा था भी क्योंकि उरई और आसपास के कवि-सम्मेलनों का देर रात तक चलना हुआ करता था, ऐसा आज भी होता है. यहाँ बहुत शुरू से पढ़ने का समय रात में ही निर्धारित कर रखा था, जिसके चलते रात का समय हम कहीं और खर्चने के मूड में नहीं रहते थे. वैसे ऐसा आज भी है. सिवाय घुमक्कड़ी के रात का समय कहीं और बिताना समय की, रात की बर्बादी समझ आती है. 


बहरहाल, अब न तो प्रतियोगी परीक्षाओं का चक्कर रहा और न ही रोजगार की तलाश में भटकने का सिलसिला और न ही किसी और तरह की भागदौड़. ऐसे में उस दोस्त ने कहना उसकी दृष्टि से सही भी था मगर पता नहीं क्यों इस तरह रुझान बना ही नहीं पाए. ऐसा नहीं कि मंच पर रचनाओं का पाठ नहीं किया या मंच से किसी तरह का भय लगता है मगर पता नहीं क्यों आज भी मन होने के बाद भी अन्दर से इच्छा नहीं होती कि मंच पर पढ़ने का सिलसिला आरम्भ किया जाये. ये भी मालूम है कि मंच अत्यंत सहजता से मिल भी जायेगा क्योंकि बहुत सारे मित्र मंचों पर स्थापित हो चुके हैं. उनमें से बहुत से ऐसे हैं जो इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते रहते हैं. इसके बाद भी अनिच्छा बनी ही रही, बनी ही हुई है.

जब उसने इस बार भी अपना प्रयास असफल होते देखा तो उसने एक और सुझाव दिया कि अपनी काव्य रचनाओं को छोटे-छोटे हिस्सों में अपनी फोटो के साथ शेयर करना शुरू करो. इसके लिए उसने आजकल सोशल मीडिया पर छोटे-बड़े कवियों, शायरों, साहित्यकारों के प्रसारित-प्रचारित होते काव्यांशों, गद्यांशों को चित्र सहित दिखाया भी. ऐसे चित्र हमारे पास भी सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों से दिन भर किसी न किसी रूप में आते ही रहते हैं. किसी में प्रेम भरी शायरी, किसी में टूटे दिल का दर्द, किसी में दर्शन, किसी में भावनात्मक अपील जैसी, किसी में रिश्तों के निर्वहन की बातें, किसी में दोस्ती की चर्चा. लगा कि ये सुझाव अपनाया जा सकता है. आखिर कौन ऐसा होगा जिसे अपना ही प्रचार अच्छा न लगता हो. उसके द्वारा कई माह पहले दिया गया सुझाव ठंडे बस्ते में चला गया था. इधर दो-चार दिन से अपनी रचनाओं को, स्वयं के द्वारा खींचे गए चित्रों की, खुद बनाये रेखाचित्रों की रखरखाव, उनका संयोजन, व्यवस्थित करने का काम चल रहा था. इसी में कुछ चित्र बनाये हैं. हालाँकि इनको सोशल मीडिया पर भी शेयर किया गया है तथापि आप सबके लिए ब्लॉग पर पुनः इनको लगा रहे हैं. बताइयेगा कि हमारे दोस्त का सुझाया यह प्रस्ताव कैसा रहा?




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