विरोध और
विरोधी विचारधारा का होना किसी भी प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्द्धा के लिए आवश्यक होता
है. बिना इसके कोई प्रतियोगिता अथवा प्रतिस्पर्द्धा सफलता से संचालित नहीं हो सकती
है. कुछ इसी तरह की स्थिति लोकतान्त्रिक व्यवस्था में, राजनीति में भी होती है.
लोकतंत्र की सफलता के लिए, व्यवस्थित और सशक्त लोकतंत्र के लिए विरोधियों का होना
आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि या तो
लोकतंत्र बीमार हो गया है अथवा जनता में, लोकतंत्र के सञ्चालन करने वालों में
वैचारिकी का अभाव हो गया है. किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था के सञ्चालन के लिए
राजनीति उसका प्रमुख अंग है. बिना राजनीति के किसी भी संस्था का, किसी भी
लोकतान्त्रिक व्यवस्था का एक कदम आगे बढ़ना संभव नहीं हो सकता है. आज के दौर में
जबकि सम्पूर्ण विश्व एक क्लिक पर सबके साथ जुड़ा हुआ है तब बिना राजनीति के न तो
व्यक्तियों का विकास संभव है, न समाज का और न ही देश का. विकास की इस प्रक्रिया के
लिए आवश्यक है कि लोकतंत्र के सभी घटकों में वैचारिक विभेद बना रहे. इस विभेद के
चलते ही नए विचारों की उत्पत्ति होती है, नए-नए सूत्रों का उदय होता है, विकास की
नवीन प्रक्रिया का रास्ता सुलभ होता है.
इधर कुछ
समय से देखने में आ रहा है कि देश में राजनैतिक रूप से विरोध की स्थिति नकारात्मक
होती चली जा रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष का विरोध तो सदैव से रहा है. यहाँ किसी
एक दल को संदर्भित किया जाना उद्देश्य नहीं है. आज जो दल सत्ता में है जब वह
विपक्ष में था तो उसके द्वारा तमाम सारे बिन्दुओं का विरोध किया गया था, किया जाता
था मगर सत्ता में आने के बाद उन्हीं सारी प्रक्रियाओं का सञ्चालन उसे भी करना पड़ा.
सत्ता में आने के बाद उसे भी उन्हीं समस्याओं से जूझना पड़ा जिनसे कि तत्कालीन
सत्ता पक्ष जूझ रहा था. बहरहाल, राजनीति में यह संघर्ष सदैव से चलता रहा है, चलता
रहेगा किन्तु अब देखने में आ रहा है कि इस वैचारिक विरोध के बीच से स्वस्थ
मानसिकता समाप्त होती जा रही है. वर्तमान में देश के लगभग सभी सत्ता-विरोधी दलों
का एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता पक्ष को बदनाम करना है. इसके लिए विरोधी
किसी भी स्तर तक जाने को तैयार हैं. विद्रूपता तो तब हो गई जबकि राजनैतिक रूप से
विरोधी माने जाने वाले दल केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का
विरोध करते-करते देश का, सेना का, सैनिकों का विरोध करने लगे. यह स्थिति तब भी सहन
करने वाली होती यदि इसे महज राजनैतिक विरोध के रूप में देखा-समझा जाता मगर ऐसा
नहीं हुआ. राजनीति में सबकुछ अपने पक्ष में करने की मंशा से, सिर्फ और सिर्फ सत्ता
पाने की लालसा में इन लोगों ने सेना पर, सैनिकों पर ही सवाल खड़ा कर दिया.
बहुत
पुरानी बातें न करके अभी हाल की घटनाओं पर नजर डालें तो लगता है कि यदि देश का
सञ्चालन वाकई इनके हाथों में चला गया तो ये क्या-क्या न कर गुजरेंगे. पुलवामा आतंकी
हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर उसके आतंकी ठिकानों को
ध्वस्त किया. इस कार्यवाही से बौखलाए पाकिस्तान ने दूसरे दिन भारत की तरफ अपने
विमान दौड़ाए मगर हमारी चौकन्नी सेना के चलते वह किसी तरह की वारदात को, हमले को
अंजाम नहीं दे सका. पाकिस्तान का एक विमान मार गिराया गया वहीं हमारा एक जांबाज़
विंग कमांडर उनकी गिरफ्त में आ गया. इधर सम्पूर्ण देश उस वीर की सुरक्षित वापसी के
लिए मनोकामना कर रहा था वहीं विरोधी दल एक महिला को उसी वीर विंग कमांडर की पत्नी
बताते हुए वीडियो ज़ारी करवा रहे थे. इसके साथ-साथ ऐसी ही विकृत सोच वालों की तरफ से एक वीडियो और वायरल किया गया जिसमें
दिखाया गया कि कैसे भारत वापसी के ठीक पहले विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तानी
सैनिकों के साथ डांस कर रहे हैं, खुश हैं. इन दो वीडियो को न केवल विरोधी दलों के
कार्यकर्ताओं, समर्थकों द्वारा शेयर किया गया बल्कि कई दलों के बड़े-बड़े
राजनीतिज्ञों द्वारा भी शेयर किया गया. बिना इस शर्म-लिहाज के कि एकदम झूठे वीडियो
भारतीय जनता के बीच शेयर किये गए. यह दिखाया गया कि कैसे सरकार गलत बातें कर रही
है, दिखाने की कोशिश की गई कि कैसे दुश्मन देश में बंद हमारा सैनिक प्रसन्न है,
नाच रहा है.
ये समझने
वाली बात है कि पड़ोसी देशों से मित्रता अच्छी बात है. यह भी सभी लोग मानते हैं कि
युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं मगर जब देश में इस तरह का संकट बना हो तब विरोधी
दलों द्वारा बजाय सरकार का साथ देने के इस तरह की घिनौनी हरकत की जा रही है. सेना द्वारा
की गई एयरस्ट्राइक के सबूत मांगे जा रहे हैं. आतंकियों के मारे जाने पर भी सन्देश
व्यक्त किया जा रहा है. पुलवामा हमले को आतंकी घटना समझने के बजाय इसे चुनावी लाभ
के लिए सत्ता पक्ष द्वारा करवाया गया हमला साबित करने के प्रयास किये जा रहे हैं. देखा
जाये तो देश बहुत ही गहरे संकट से गुजर रहा है, जहाँ एक तरफ सीमा पार दुश्मन हैं
वहीं देश की सीमा के अन्दर ही ऐसे न जाने कितने दुश्मन हैं जो आपातकाल में दुश्मन
से भी ज्यादा घातक सिद्ध हो सकते हैं. विरोध की इतनी निकृष्ट मानसिकता के द्वारा,
इतनी क्षुद्र सोच के द्वारा सबकुछ किया जा सकता है, मगर न तो राजनीति की जा सकती
है, न देश का भला किया जा सकता है, न सेना का, सैनिकों का, नागरिकों का सम्मान
किया जा सकता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें