बिटिया
रानी की वार्षिक परीक्षा चल रही है. इस समय कक्षा पाँच में है. कल अपना पेपर देने
के बाद घर आना हुआ. इधर-उधर की बातों के बाद, पेपर से सम्बंधित चर्चा के बाद उसने
बताया कि सुबह परीक्षा के लिए जाते समय सीढ़ियों से उतरते समय बच्चों की भीड़ थी.
जल्दी उतरने के चक्कर में किसी ने मुझे धक्का दे दिया. मैंने जल्दी से सामने काम
कर रही स्वीपर आंटी को पकड़ लिया नहीं तो मुँह के बल गिर पड़ती.
उसको समझाया
कि संभल कर, आसपास देख कर चला करो. जब भीड़ कम हो जाये तब सीढ़ियाँ चढ़ा-उतरा करो.
इस
पर उसने कहा कि हाँ, ये बात तो है पर हम आपको कुछ और बताना चाह रहे. हमारे पूछने
पर उसने बताया कि उसके कुछ दोस्तों ने कहा कि अपने हाथ धोकर आओ क्योंकि तुमने
स्वीपर आंटी को छू लिया है.
हमने
पूछा कि फिर तुमने क्या किया?
इस पर वो
बोली कि हमने अपने दोस्तों से कहा कि हमारे हाथ गंदे नहीं हुए हैं और हम इसलिए
अपने हाथ नहीं धोने जायेंगे कि हमने स्वीपर आंटी को पकड़ लिया.
इसमें
सबसे बड़ी बात जो हमें लगी वह यह कि बिटिया के दोस्तों ने इस कारण उससे बात नहीं की
मगर इसके बाद भी उसने अपने हाथ नहीं धोये, जबकि किसी तरह की गन्दगी नहीं लगी थी
हाथों में. हम कुछ कहते इससे पहले वो फिर बोली कि पापा स्वीपर आंटी भी तो हमारी
तरह इन्सान हैं. उनको जो काम मिला है, वो कर रही हैं. उनको छूने से कोई गन्दगी तो
लग नहीं गई थी हमें.
उसकी बातों
से लगा कि हम लोग अपने घर में अपने बच्चों को जो शिक्षा देने जा रहे हैं, देना
चाहते हैं वह गलत दिशा में नहीं जा रही. असल में हम सभी ने घर में कभी भी उसके ऊपर
नंबर गेम हावी नहीं किया गया, न ही होने दिया गया. पढ़ाई को कक्षा के पाठ्यक्रम की
समाप्ति अथवा उसके रटवाने से ज्यादा विषय की व्यापक समझ विकसित करने पर ध्यान दिया
गया. हरदम एक और कोशिश रही कि पढ़ाई के साथ-साथ, स्कूली शिक्षा के साथ-साथ अभी से
सामाजिक, सांस्कृतिक क्रियाकलापों में भी उसकी सहभागिता होती रहे. इसके चलते अधिक
से अधिक प्रयास यही होता है कि उसे भी सामाजिक कार्यक्रमों में, सांस्कृतिक
समारोहों में शामिल होने दिया जाये. अनेक तरह के सामाजिक कार्यों में उसको भी
सक्रिय रूप से शामिल किया जाता है. कभी वृक्षारोपण में, कभी नेत्रहीन बच्चों के
बीच सहभागिता करवाने में, कभी कहीं कुछ वितरण करवाने में. ऐसा करवाने के पीछे
हमारी सोच यही है कि वह कम से कम अभी से जीवन के इस पक्ष को भी ध्यान दे.
इसके
साथ-साथ प्रयास यह भी रहता है कि देश के इतिहास के बारे में, यहाँ के वीरों के
बारे में, संस्कृति के बारे में, लोक-पर्वों आयोजनों आदि के बारे में भी उसे जानकारी
रहे. समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर घूमने जाना तो होता ही रहता है इसके अलावा
कोशिश रहती है कि एकबारगी भले ही किसी बड़े मॉल या किसी अत्याधुनिक स्थानों की सैर
उसे न करवा पायें पर कम से कम अपनी लोक-संस्कृति से उसका परिचय आवश्यक करवा दिया
जाये. इसी में उसे समय-समय पर लगने वाली प्रदर्शनियों, मेलों आदि की सैर करवा देते
हैं. अभी तक तो उसकी जीवन-गाड़ी सही दिशा में, सही पटरी पर जा रही है. कामना है कि
आगे भी ऐसे ही सकारात्मकता बनी रहे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें