पुलवामा
में आतंकी हमले के बाद से पूरे देश में सेना के प्रति, सैनिकों के प्रति
संवेदनात्मक माहौल बना हुआ है. युद्ध की बात भी हो रही है मगर उसके साथ-साथ
सैनिकों के हितार्थ बात भी हो रही है. शहीद सैनिकों के सम्मान में नागरिकों में जागरूकता
दिख रही है. देश में भले ही लोगों में आपस में कितने भी विभेद क्यों न रहे हों,
लोगों में आपस में कितने भी राजनैतिक विरोधाभास भले ही दिखाई देते हों किन्तु सेना
के नाम पर, सैनिकों के नाम पर एकजुटता देखने को मिलती है. इसी एकजुटता, सम्मान की
भावना का ही परिणाम है कि सैनिकों की मदद के लिए सरकार द्वारा संचालित एक वेबसाइट
लगातार हैंग कर जा रही है.
ये
संवेदना, ये एकजुटता, सैनिकों के प्रति सम्मान भाव ऐसे समय और तेजी से उभर कर
सामने आता है जबकि उनके साथ कोई न कोई हादसा हो जाता है. इस हादसे में हमारे वीर
सैनिकों के शहीद होने के बाद उनके परिजनों की तरफ मीडिया का, राजनीतिज्ञों का,
समाज सेवा करने वालों का, आम नागरिकों का ध्यान भी जाता है. ऐसा होना अच्छा है मगर
यह अच्छा काम लगातार बना नहीं रह पाता है. इन वीर शहीदों के परिजनों के प्रति चंद
दिनों तक तो लोगों की संवेदना बनी रहती है और कुछ दिनों, महीनों बाद उस शहीद के
परिजन अकेले से पड़ जाते हैं. चंद दिनों के बाद वे जीवन की वास्तविक कठिनाइयों से
जूझने लगते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बहुतायत सैनिकों के परिवार मध्यम अथवा निम्न
मध्यम आय वर्ग से आते हैं. किसी-किसी परिवार में वही सैनिक एकमात्र कमाऊ पूत होता
है. कहीं-कहीं वही एक सैनिक समूचे परिवार का आधार होता है. किसी-किसी घर में वही
एक सैनिक अपने छोटे भाई-बहिन के भविष्य का ख्याल रखने वाला होता है. किसी-किसी
परिवार में कोई शहीद सैनिक नव-विवाहित होते हैं, कहीं-कहीं वे नवजात शिशु के पिता
बने होते हैं. ऐसे में स्पष्ट है कि शहीद हुए उस जवान के घर पर चंद दिनों के बाद
वास्तविक कठिनाइयाँ सिर उठाना शुरू कर देती हैं. वर्ष भर के पर्व-त्यौहार, आस-पड़ोस के आयोजन
आदि के समय भी उन परिवारों को अपने खोये हुए सदस्य की याद बहुत गहराई से आती होगी.
यही वह
बिंदु होता है, यही वो स्थिति होती है जहाँ शहीद जवानों के परिजनों को वास्तविक
रूप से हमारे साथ की आवश्यकता होती है. हम नागरिक जो किसी जवान की शहादत के समय
संवेदित होकर एकजुट होना शुरू कर देते हैं उनको सतत एकजुट और संवेदित बने रहने की
आवश्यकता है. हमें याद रखना चाहिए कि कोई सैनिक जो सेना में भर्ती होकर देश-सेवा
कर रहा है, कोई सैनिक शहीद हो जाता है वे सभी किसी न किसी रूप में हमारे लिए ही
सुखद माहौल बना रहे होते हैं. ऐसे में हमें उनका भी ख्याल रखने की आवश्यकता है.
उनके परिजनों के अकेले होने की स्थिति में, जबकि सैनिक सेना में अपनी ड्यूटी निभा
रहा है, या फिर कोई जवान शहीद हो गया होता है, हमें उनकी भावनाओं का सम्मान करते
हुए उनका साथ देने की आवश्यकता होती है. इसके लिए हम पूरे देश भर में ऐसा करने के
बजाय अपने-अपने जिले में, अपने-अपने क्षेत्र के सैनिकों की जानकारी कर सकते हैं और
उनके परिजनों से समय-समय पर मिल सकते हैं. उनके साथ पर्व-त्यौहार को मना सकते हैं.
उनकी किसी भी तरह की समस्या का समाधान बन सकते हैं. शहीद सैनिकों के बच्चों की
शिक्षा से सम्बंधित, उनके माता-पिता के स्वास्थ्य, चिकित्सा से सम्बंधित समस्याओं
का निराकरण कर सकते हैं. उनके अन्य परिजनों की परेशानियों का समाधान भी कर सकते
हैं. हमारे एक कदम इस तरह से उठाने पर उन परिजनों को भी गर्व की अनुभूति होगी और
वे अपने आपको कभी भी अकेला महसूस नहीं करेंगे. ये आवश्यक नहीं कि हर मदद आर्थिक
रूप से हो, यह भी जरूरी नहीं कि हर शहादत के बाद ही संवेदित हुआ जाये, हम सभी ऐसा
कभी भी, कहीं भी कर सकते हैं और अपने वीर सैनिकों के परिजनों का हिस्सा बन सकते
हैं.
सही विचार!!!
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