पुलवामा
आतंकी हमले के बाद लगातार लोगों का सक्रिय होना दिखाई दे रहा है. कोई बुद्धिजीवी
बनकर सक्रिय है, कोई राजनीतिज्ञ बनकर सक्रिय है. किसी को नागरिक-बोध जाग गया है,
किसी को सेना से एकदम से आत्मीयता जाग गई है. इन सबके बीच लोगों में राजनीति के
कीड़े भी कुलबुलाने लगे हैं. किसी को इस मामले में पाकिस्तान एकदम से बेगुनाह सा,
मासूम सा दिखाई देने लगा है. किसी को वह आत्मघाती आतंकवादी भी शांतिदूत दिखाई देने
लगा है. किसी को उसके आतंकवादी बनने में सेना का दोष दिखाई देने लगा है. किसी को
इस हमले में चुनावी साजिश दिखाई देने लगी है. साजिश दिखनी भाई चाहिए, आखिर पढ़-लिख
कर दिमाग इस काबिल इसीलिए तो बनाया गया है कि साजिशों का भंडाफोड़ कर सकें. इसके
बाद भी देखने में आ रहा है कि लोग सैनिकों की मौत से ज्यादा इस हमले को राजनैतिक
रंग देने में जुटे हुए हैं. लोगों के दिमाग अभी भी पूर्वाग्रह से भरे हुए हैं.
उन्हें ये हमला नहीं मुठभेड़ समझ आ रही है. आखिर इसे मुठभेड़ कैसे कह सकते हैं?
शर्म आती
है ऐसे लोगों की सोच पर जो इस आत्मघाती हमले को मुठभेड़ बता रहे हैं. इसके लिए
पाकिस्तान को निर्दोष बता रहे हैं. इसमें भी वर्तमान केंद्र सरकार की साजिश देख
रहे हैं. ऐसे लोगों के विचार देखकर लगता है कि इनके परिजनों ने इनके पढ़ाने-लिखाने
में अनावश्यक ही अपना धन बर्बाद किया है. ये वे लोग हैं जो वर्तमान सरकार से,
भाजपा से, मोदी से पूर्वाग्रह रखते हैं. भले रखें, कोई समस्या नहीं मगर कम से कम
अपना दिमाग तो चलाकर देखें कि सत्य क्या हो सकता है? पुलवामा हमले में जिन लोगों को
ये हमला चुनावों के चलते भाजपा-संघ की साजिश नजर आता है, वे एक बार अपना गोबर भरा हुआ
दिमाग इस पर भी दौड़ाएं कि पाकिस्तान जाकर यहाँ की सरकार गिराने के लिए मदद कौन माँग
रहा था? कांग्रेस तो वैसे ही कई कदम पीछे है. सत्ता में आने का लालच किसे है?
ऐसे में इस तरह के कृत्य करने का कदम कौन उठाएगा? बाकी रही बात साजिश की तो इस देश में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत से लेकर बेटे संजय गाँधी तक की
दुर्घटना के लिए किस दल को जिम्मेवार ठहराया जाता है, किस परिवार/खानदान
को दोषी ठहराया जाता है. इस पर निगाह दौड़ा लें तो उनके पूर्वाग्रह इस हमले के सम्बन्ध
में दूर हो जायेंगे.
चुनावों
का हाल में होना और आतंकी हमले का होना कोई सह-सम्बन्ध नहीं. और यदि है भी तो कम
से कम उसके लिए होगा जो खुलेआम पड़ोसी से अपने ही देश की सरकार गिराने की मदद माँग
रहा है. ऐसे में बजाय अपने दिमाग बजाय भाजपा, कांग्रेस में फँसाने के सम्पूर्ण
घटनाक्रम पर निगाह डालते हुए उसका आकलन करें. आखिर आपको भी पढ़ाया गया है, दिमाग को
इस काबिल बनाया गया है कि आप खुद सही-गलत का आकलन कर सकें. ऐसा नहीं कर सकते तो
आपमें और उस राष्ट्रीय पप्पू में क्या अंतर?
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