16 फ़रवरी 2019

छोटी-छोटी समस्याओं के निपटने में बड़ी समस्या का निदान


उन दिनों छत्रपति शिवाजी मुगल सल्तनत के खिलाफ जंग छेड़े हुए थे. उनकी छापामार गुरिल्ला युद्ध नीति से मुग़लों में भय-परेशानी का भाव बना हुआ था. इसके बाद भी छत्रपति शिवाजी को बड़ी विजय नहीं मिल पा रही थी. कई जगहों पर शिवाजी को सफलता मिल जाती तो कई जगह से उन्हें निराश होकर लौटना पड़ता. युद्ध के ऐसे ही दिनों में एक बार वे किसी गाँव से गुजर रहे थे. रात का समय था, भोजन की इच्छा से वे एक घर के सामने रुके. 


उस घर में एक वृद्धा रहती थी. उन्होंने खुद को छत्रपति शिवाजी का सैनिक बताते हुए उस वृद्धा को से भोजन करवाने का निवेदन किया. शिवाजी महाराज के प्रति श्रद्धा-सम्मान भाव होने के कारण उस वृद्धा ने उनके लिए जल्द से जल्द खिचड़ी बनाई. कुछ ही देर मे उस वृद्धा ने गरमा-गरम खिचड़ी छत्रपति शिवाजी के सामने परोसी. शिवाजी बहुत जल्दी मे थे, सो उन्होंने थाली सामने आते ही एकदम से उसे खाने की कोशिश की. खिचड़ी के गरम होने के कारण उन्हें अपना हाथ खींच लेना पड़ा. यह देखते ही वृद्धा बोली तू भी अपने महाराज की तरह बावला है. एकदम से बीच के राज्यों पर हमला करते हैं वे भी और तूने भी खिचड़ी को बीच में से खाना शुरु करके अपना हाथ जलवा लिया.

शिवाजी महाराज समझ नहीं पाए कि वह वृद्धा क्या कहना चाहती है. उन्होंने उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखा तो उसने सैनिक समझ उन्हें समझाया, तू खिचड़ी को किनारे से खाना शुरु कर, इससे खाना ठंड़ा भी हो जायेगा और तू आराम से खा भी पायेगा. इसी तरह अपने महाराज को चाहिये कि वे पहले छोटी-छोटी जगहों पर विजय प्राप्त करें. राजधानी के रास्ते में आने वाली जगहों पर विजय प्राप्त करें ताकि पीछे से हमला होने की आशंका समाप्त हो जाये. इसके बाद पूरी ताकत से राजधानी पर टूट पड़ें.

छत्रपति शिवाजी अपने इस नये गुरु का मुंह देखते रह गये. खिचड़ी समाप्त कर उन्होंने वृद्धा के चरण स्पर्श किये और आगे बढ़ गये. इतिहास गवाह है कि इसके बाद युद्ध में फिर कभी उन्हें पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

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ये महज एक कथा नहीं अपने आपमें एक सीख है दुश्मनों से निपटने की. इससे सीख लेने की आवश्यकता है. अक्सर हम सभी लोग जल्दबाजी में गलत निर्णय ले लेते हैं और बाद में उनके गलत परिणाम सामने आने पर बस पछताते रहते हैं. किसी भी स्थिति का, किसी भी समस्या का दीर्घकालिक समाधान चाहने वालों को धैर्य, संयम से काम लेने की आवश्यकता होती है. दुश्मनों से निपटने के पहले छिपे हुए दुश्मनों को पहचानने, समाप्त करने की जरूरत होती है. ये दुश्मन देश के भी हो सकते हैं, आपके भविष्य के भी हो सकते हैं, आपके कैरियर के भी हो सकते हैं, आपके परिवार के भी हो सकते हैं, आपके विकास के भी हो सकते हैं. ये आप पर निर्भर है, हम पर निर्भर है कि इन दुश्मनों से कैसे और किस तरह निपटना है.



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