15 फ़रवरी 2019

सेना की कार्यवाही आपकी सोच से अधिक कठोर होगी, विश्वास रखिये

पुलवामा आतंकी हमले के बाद देशवासियों में आक्रोश उफान पर है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि एकसाथ चालीस से अधिक जवान शहीद हो गए हैं. यह बहुत बड़ा हमला है. सोशल मीडिया पर देशवासियों के द्वारा सिर्फ और सिर्फ युद्ध के द्वारा अंतिम समाधान चाहा जा रहा है. पाकिस्तान को नक़्शे से मिटाने की बात की जा रही है. एक पल को अपनी संवेदनात्मक व्यग्रता को एक किनारे रखकर विचार किया जाये तो क्या ऐसा संभव है? क्या इस हमले के तुरंत बाद बिना किसी रणनीति के ऐसा करना उचित कदम कहलायेगा? क्या किसी भी देश को नक़्शे से मिटा देना संभव है? ये सब इसलिए नहीं लिखा जा रहा कि युद्ध से समाधान नहीं निकल सकता. संभव है बातचीत की लम्बी और निरर्थक यात्रा के बाद एकमात्र विकल्प युद्ध ही बचा हो मगर इस आतंकी हमले के तुरंत बाद सिर्फ भावनात्मक उफान के चलते युद्ध खतरे को आमंत्रित करना ही होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि देश के दुश्मन सिर्फ देश से बाहर ही नहीं बैठे हैं, वे देश के अन्दर भी पूरी सक्रियता से छिपे हुए हैं. इसी हमले के तुरंत बाद वे किसी न किसी रूप में सक्रिय दिखाई देने लगे हैं. किसी ने चेतावनी सी दे दी है कि इस हमले के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं होनी चाहिए. किसी गले मिलने वाले का कहना है कि आतंकवाद का कोई देश नहीं होता है. किसी को यह राष्ट्रभक्ति का परिणाम समझ आ रहा है. कोई इस हमले के मूल में सर्जिकल स्ट्राइक का होना बता रहा है. स्पष्ट है कि ऐसे लोग ही इस समय में किसी भी तरह की कार्यवाही के समय देश के लिए ही घातक सिद्ध होंगे.



इसके अलावा याद कीजिये वह दौर जबकि मुंबई में आतंकियों ने होटल पर कब्ज़ा करके लगातार हमारे सुरक्षा बलों से मोर्चा लिया हुआ था. वे आतंकी बिना सोये, बिना खाए-पिए लगातार लगभग सत्तर घंटे तक सुरक्षा जवानों से लड़ते रहे. इसे याद दिलाने के पीछे महज इतना कहना है कि जब आतंकियों ने हमला किया है, जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेवारी ली है तो वे संभव है कि हमारी सेना की जवाबी कार्यवाही के लिए तैयार बैठे हों. ये भी संभव है कि देश के भीतर उनके स्लीपर सेल के रूप में काम कर रहे उनके लोग भी इसी ताक में बैठे हों कि कब सेना आक्रोशित होकर जवाबी कार्यवाही करे और वे देश के भीतर उत्पात करना शुरू कर दें. सोचिये कि आज, अभी बिना किसी रणनीति के भावना में बहकर सेना जवाबी कार्यवाही कर दे और देश के अन्दर आतंकियों के स्लीपर सेल मुंबई हमले जैसी कार्यवाही देश के कई हिस्सों में कर दें तो सेना किस मोर्चे को संभालेगी? हमारे वीर सैनिक देश के बाहर के दुश्मनों से निपटेंगे या फिर देश के भीतर के दुश्मनों से? 

इसके साथ-साथ वह दिन भी याद करिए जबकि हमारे देश का विमान अपहरण करके कंधार ले जाया गया था. सैकड़ों सवारियों के बदले में एक आतंकी माँगा गया था. तब क्या किसी एक सवारी के परिजन ने सरकार से कहा था कि हमारे परिजन शहीद हो जाने दो मगर आतंकी रिहा नहीं होना चाहिए? इसके उलट परिजनों ने हंगामा काटना शुरू कर दिया था. सरकार पर दवाब बनाना शुरू कर दिया था. वे जल्द से जल्द आतंकी को रिहा करके अपने परिजनों की रिहाई चाह रहे थे. सोचिये, ऐसे ही नागरिक आज तुरंत युद्ध करने की, पाकिस्तान समाप्त करने की बात कर रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सेना में उनके घर का कोई नहीं है. सीमा पर उनको लड़ने नहीं जाना है. दुश्मन की गोलियाँ खाकर उनको शहीद नहीं होना है. यहाँ धैर्य की नहीं बल्कि रणनीति की आवश्यकता है. यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि जो सैनिक इस हमले में शहीद हुए हैं, उनके साथी भी उनके साथ सेना का हिस्सा हैं. उनके मन में हमसे कहीं अधिक आक्रोश, कहीं अधिक गुस्सा आतंकियों के लिए होगा. इसके बाद भी वे संयत हैं, धैर्य धारण किये हुए हैं क्योंकि वे स्थिति की वास्तविकता को समझते हैं. वे हम सामान्य नागरिकों से ज्यादा अनुशासित हैं. हम सामान्य नागरिकों से ज्यादा संयमित हैं. उनको एहसास है कि कब, किस स्थिति में, किस रणनीति के साथ दुश्मन पर हमला करना है. याद कीजिये उरी आतंकी हमले के बाद की सर्जिकल स्ट्राइक. 



अंत में उनके लिए कुछ पंक्तियाँ जो नोटबंदी को आतंकी हमले से जोड़कर बार-बार एक आरोप सा अपनी ही सरकार पर लगा रहे हैं. वे ध्यान रखें कि नोटबंदी हुए दो साल से अधिक हो चुके हैं. इस समयावधि में आतंकी संगठनों ने हमारे देश के भीतर पनप चुके उनके एजेंटों द्वारा, स्लीपर सेल द्वारा, विभिन्न सफेदपोशों द्वारा इतना धन तो जमा कर ही लिया होगा कि दो साल में एक हमला कर सके. नोटबंदी के बाद से अभी तक कितने आतंकी हमले हुए, इसका आकलन खुद करना चाहिए ऐसे लोगों को. याद रखना होगा कि जिस देश में सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे जाते हों, जहाँ पड़ोसी दुश्मन देश से अपने देश की सरकार गिराने की मदद माँगी जाती हो वे कब आतंकियों के पक्ष में झुक जाएँ कहा नहीं जा सकता. देशवासी जितने आक्रोश में हैं, उससे कहीं अधिक आक्रोश में हमारी सेना है, हमारे वीर सैनिक हैं. हमें बस उनकी रणनीति का, उनके कदम का, उनकी कार्यवाही का इंतजार करना होगा ऐसे समय में. वह हमारी सोच से कहीं अधिक होगा, भले ही वह युद्ध के रूप में न हो मगर किसी युद्ध से कम न होगा.

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