महिला सशक्तिकरण के दौर में
जहाँ कि सभी क्षेत्रों में अपनी हनकदार उपस्थिति का गर्व महिलाओं में दिखाई दे रहा
है वहाँ एक मंदिर में किसी भी तरह से प्रवेश को लेकर जद्दोजहद मची हुई है. अदालती
आदेश के बाद भी मंदिर प्रबंधकों तथा स्थानीय भक्तों द्वारा महिलाओं के प्रवेश को
लेकर बनी स्थिति ज्यों की त्यों रही. कुछ अतिशय क्रांतिकारी महिलाओं द्वारा लगातार
संघर्ष बनाये रखा गया कि कैसे भी मंदिर में प्रवेश करने को मिल जाए. अंततः खबर आई
कि अँधेरे में दो महिलाओं ने मंदिर में घुसपैठ करके महिला सशक्तिकरण का इतिहास रच
दिया. आये दिन धर्म को इसी बात के लिए कोसा जाता है कि इसने महिलाओं की स्वतंत्रता
में अवरोध पैदा किया है. महिला सशक्तिकरण के नाम पर न जाने कितनी धार्मिक, पौराणिक
कथाओं, पुस्तकों, ग्रंथों को गरियाया जाता है. इसके बाद भी ऐसी क्रांतिकारी
महिलाओं द्वारा मंदिर में प्रवेश की आतुरता देखने को मिल रही थी.
हो सकता है बहुत से लोग, तमाम
नारीवादी इसकी वकालत करें कि आखिर मंदिर में प्रतिबन्ध जैसा भेदभाव क्यों? आखिर
महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से वंचित क्यों किया जा रहा है? एक हिसाब से ऐसे
सवालों का उभरना सही भी है. आखिर जब समानता, स्वतंत्रता, अधिकारों की बात की जाती
है तो फिर भेदभाव क्यों? क्यों किसी भी स्थान पर सिर्फ पुरुष का प्रवेश हो? क्यों
महिलाओं को उनकी अपनी प्राकृतिक अवस्था के कारण मंदिर में प्रवेश से प्रतिबंधित
किया जाये? इसी बिंदु पर आकर सोचने की आवश्यकता है कि आखिर प्रतिबन्ध तोड़ने की
प्रतिबद्धता या फिर जिद सिर्फ मंदिर के सन्दर्भ में ही क्यों? ऐसा किसी मस्जिद के
लिए क्यों नहीं दिखाई देता? क्या वहाँ ऐसा करना समानता की बात करना न होगा? असल
में ऐसे मामलों में बहुत गहराई से विचार किये जाने की आवश्यकता है. सिर्फ एक मंदिर
प्रकरण से नहीं वरन तमाम सारे और प्रकरणों को भी इसी सन्दर्भ में देखा जाना आवश्यक
है जबकि ऐसे कदमों के द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुत्व पर, हिन्दू
धर्म पर, उसके रीति-रिवाजों पर चोट करने का प्रयास किया गया है. ऐसा ही कुछ मंदिर
मुद्दे पर हुआ है.
अब जबकि दो महिलाओं ने मंदिर
में अपने चरण घुसा ही दिए हैं, तब यह देखना है कि वे कहाँ-कहाँ तक अपने पैर घुसा
पाने में सफल होती हैं. सिर्फ एक मंदिर ही नहीं अनेकानेक ऐसी जगहें हैं जहाँ आज भी
महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है. महिला सशक्तिकरण के दौर में एक और सशक्त कदम का
इंतजार रहेगा.
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