ज़िंदगी भर ज़िंदगी के लिए परेशान होने वाले बहुतेरे मिल जाते हैं. सुबह उठने से लेकर रात सोने तक, पढ़ने से लेकर नौकरी करने तक, काम के दिनों से लेकर मनोरंजन के दौर तक व्यक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़िंदगी के गुणा-भाग में व्यस्त रहता है. अगले एक पल का कोई भरोसा नहीं और जाने कितने पलों तक की व्यवस्था वह करने में संलिप्त रहता है. उसकी यह संलिप्तता अपने लिए कम, अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए अधिक होती है. इस चिंता के बाद भी उसे ख़ुद भरोसा नहीं होता है कि आने वाले दिनों में अपनी इस व्यवस्था को देखने, उसका लाभ लेने को वह होगा भी या नहीं. उसे इसकी जानकारी नहीं होती है कि जिस पीढ़ी के लिए वो ये सब दाँव-पेंच करने में लगा है, वह पीढ़ी उसके हितों का संरक्षण करेगी. ज़िंदगी भर की चिंता में परेशान व्यक्ति इस सत्य को जानकर भी अनजान बना रहता है कि ज़िंदगी बस उतनी ही है जो सुबह आँख खोलने से शुरू होती है और रात सोने के समय ख़त्म हो जाती है. इस अत्यल्प ज़िंदगी को आनंद के साथ जीना चाहिए न कि परेशानियों के साथ. इस सत्य को समझने वाला ही ज़िंदगी का असली सुख उठाता है, उसका एहसास करता है.
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