23 जनवरी 2019

सुभाष भवन बनेगा समतामूलक समाज का आधार

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन, उनके कृत्यों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जाता. यदि कतिपय लोगों के पूर्वग्रहों को, जो कि कथित राजनीति का परिणाम कहा जाएगा को छोड़ दिया जाए तो देश में शायद ही कोई व्यक्ति निकले जो नेताजी से प्रभावित न होगा. इसमें किसी तरह की अतिशयोक्ति नहीं है कि उनके बारे में प्रचलित कथित दुर्घटना और उनके निधन की ख़बर की आधी सदी बीत जाने के बाद भी बहुसंख्यक नागरिक उस ख़बर पर विश्वास नहीं करते हैं तो यह नेताजी की जीवंतता को ही सिद्ध करता है. उनके होने या न होने के तमाम दावों और तर्कों के बीच देश-विदेश में अनगिनत लोग ऐसे हैं जो नेताजी को अपना आदर्श, अपना नेता मानकर उनका अनुसरण कर रहे हैं, उनके सपनों को साकार करने के लिए कृतसंकल्पित हैं. ऐसे लोगों में बहुत से लोग साहित्य के द्वारा, समाजसेवा के द्वारा, वैचारिकी द्वारा क्रांति का सूत्रपात किए हुए हैं, क्रांति का जयघोष किए हुए हैं. देश की आज़ादी के बाद भी ऐसे लोग देश को एक अनजान सी ताक़त, अजब सोच के बंधन में बँधा पाते हैं. ऐसे लोग अपने कृत्यों से देश को वास्तविक आज़ादी पाने की चाहत लिए सशक्त, समतामूलक, भेदभाव रहित, निर्भीक, सत्यशील समाज का निर्माण करने में तत्पर हैं. ऐसे लोग अपनी परवाह किए बिना निस्वार्थ भाव से बस कार्यशील बने हैं, समाज को जगाने का कार्य कर रहे हैं. ऐसे ही लोगों में वाराणसी के विशाल भारत संस्थान को देखा जा सकता है. 


विशाल भारत संस्थान की गतिविधियाँ क्या हैं, इस बारे में फिर कभी, आज चर्चा इस बात की कि कैसे अपने आपको सुभाषवंशी कहने वाले संस्थान के सभी सदस्य वास्तविक रूप में सुभाष बाबू के सपनों को साकार करने में लगे हुए हैं. नेताजी के आदर्शों को अपनाने वाले, उनके बताए रास्ते को अपनाने वाले, क्रांतिकारी क़दम उठाने का दावा करने वाले संस्थान से सभी सदस्य बातें करने के बजाय काम करने पर विश्वास करते हैं. ऐसा ही कुछ आज, 23 जनवरी को नेताजी के जन्मोत्सव पर देखने को मिला. नेताजी के नाम पर संस्थान द्वारा निर्मित सुभाष भवन का उद्घाटन पूज्य इंद्रेश कुमार जी द्वारा किया गया. यह भवन न केवल बच्चों के घर के रूप में अपनी पहचान बना रहा है वरन अभी से यह बहुतेरे लोगों की आशाओं का केंद्र बन गया है. इसके कार्य भी समय के साथ अपनी कहानी लिखेंगे पर आज जो बात सबसे ख़ास दिखाई दी उसने संस्थान की, उनके सदस्यों की, परिजनों की विश्वसनीयता को और बढ़ा दिया. विश्वास हुआ कि नेताजी जहाँ भी, जिस रूप में होंगे अवश्य ही अपनी नज़रों में बसे भारत को बनता देख रहे होंगे.


उद्घाटन के क्रम में सुभाष भवन में सहभोज का आयोजन किया गया था. वाराणसी के निकट लमही में इंद्रेश नगर में बने इस भवन के सहभोज में सम्मिलित होने के लिए लमही सहित आसपास के कई गाँवों में संस्थान के सदस्यों ने स्वयं जाकर लोगों को ससम्मान आमंत्रित किया था. लोग उनके प्यार और नेताजी के सम्मान में उपस्थित भी हुए. सहभोज के समय उपस्थित एक दृश्य को देख जहाँ आँखें भर आईं वहीं गर्व भी हुआ कि आज भी मानवीयता को जीवित रखने वाले लोग, समानता को व्यवहार में अपनाने वाले लोग हैं. सहभोज में बड़े, बुज़ुर्ग, स्त्री, पुरुष सभी आमंत्रित थे, सहभोज का आनंद ले रहे थे. इसी में बच्चे भी शामिल थे. नज़र उन बच्चों की तरफ़ गई जो उसी पंक्ति में बैठे भोजन कर रहे थे जहाँ अन्य अतिथि बैठे थे. कोई जातिगत बात नहीं, किसी धर्म का भेद नहीं, कोई ऊँच-नीच की भावना नहीं. यह सामान्य बात हो सकती है पर कुछ अलग करने वाले अलग ही करते हैं सो संस्थान परिवार के छोटे, बड़े सदस्य पूरी ज़िम्मेवारी से वही कर रहे थे. अत्यंत निर्धन परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे भोजन पंक्ति में बैठे हुए थे. वेशभूषा ऐसी कि लोग उनके पास आना पसंद न करें पर ऐसे बच्चों को न केवल भोजन करवाया जा रहा था बल्कि अपने हाथ से भोजन करने में सक्षम न होने वाले छोटे-छोटे बच्चों को संस्थान के बच्चे अपने हाथों से भोजन करवा रहे थे. भोजन करते बच्चों की मुस्कान, उनके चेहरे की संतुष्टि का भाव दर्शा रहा था कि वे भले ही ऐसा भोजन कभी-कभी पा जाते हों पर इस तरह सम्मान से बैठकर भोजन शायद ही कभी कर पाए हों. हँसते, खेलते, मज़ाक़ करते ये बच्चे भोजन का आनंद ले रहे थे. लगा कि सुभाष बाबू की कल्पना में भेदभाव रहित जिस समाज की संकल्पना रही होगी वह कुछ ऐसा ही होगा. जहाँ व्यक्ति को बस व्यक्ति माना जाए. उसे उसकी वेशभूषा, रहन-सहन, धर्म, जाति, आर्थिक स्तर से न पहचानते हुए सिर्फ़ इंसान समझा, माना जाए. आज ऐसा सुभाष भवन में होते देखा और आगे भी यही सुभाष भवन समतामूलक समाज का आधार बनेगा, इसका विश्वास है.

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