कोचिंग सेंटर्स की बढ़ती
संख्या और उसमें आने वाले बच्चों का सैलाब. कोचिंग क्लास छूटते ही सैकड़ों की
संख्या में बच्चों का सडकों पर निकल आना किसी भी छोटे-बड़े शहर का आम नजारा हो गया
है. वर्तमान दौर में अंकों की मारा-मारी, प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता का अथक
दबाव, सबसे आगे रहने की गलाकाट प्रतिद्वंद्विता के चलते लगभग प्रत्येक बच्चा आज
विद्यालयों में जाने की बजाय कोचिंग में जाता दिखाई दे रहा है. किसी बच्चे का
कोचिंग जाना, अतिरिक्त रूप से पढ़ना किसी भी रूप में बुरा या गलत नहीं है. जिस तरह
से वैश्वीकरण के दौर में समूचा विश्व एक जगह सिमटता दिखाई देने लगा है उसमें अधिक
से अधिक जानकारी, ज्ञान किसी के लिए भी अपेक्षित है. समस्या कोचिंग सेंटर्स की
बढ़ती संख्या से भी नहीं होनी चाहिए क्योंकि विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या के चलते
इनका बढ़ना स्वाभाविक है. असल समस्या वह है जो दिखाई देने के बाद भी किसी को दिखाई
नहीं दे रही है. आये दिन इन्हीं बातों पर शासन-प्रशासन द्वारा जागरूकता कार्यक्रम
चलाये जाते हैं. इसके बाद भी खुद प्रशासन इस तरफ से आँखें मूँदे बैठा है.
कोचिंग क्लासेज के छूटते ही
वहां से निकले बच्चों का बाइक रेस में शामिल हो जाना एक अनिवार्य सा कदम हो गया
है. कोचिंग सेंटर्स में आते समय तो वे अलग-अलग होते हैं लेकिन वहाँ से एकसाथ बड़ी
संख्या में निकलने के बाद उन नाबालिग बच्चों की बाइक, स्कूटी का सडकों पर अंधाधुंध
तरीके से दौड़ना खतरे का ही सूचक है. बेतरतीब दौड़ती बाइक, एक-एक बाइक पर तीन-तीन
लोगों का बैठे होना, बिना अपनी जान की परवाह किये दूसरे व्यक्ति की जान के लिए आफत
बने इन बच्चों को अंदाजा भी नहीं होता कि कैसे एक चूक उनकी जान पर भारी पड़ जाएगी.
अपने घर-परिवार, अपने माता-पिता की चिंता से बेफिक्र वे बस अपनी बाइक दौड़ाने में तत्पर
रहते हैं. वैसे चिंता जैसा शब्द शायद यहाँ उचित नहीं क्योंकि यदि उनके घर-परिवार
या माता-पिता को उन बच्चों की चिंता होती तो वे कम उम्र में उनके लिए तेज रफ़्तार
बाइक, स्कूटी की व्यवस्था ही नहीं करते. यदि किसी मजबूरी या समय की बचत के लिए उनको
ऐसा करवाया भी जाता तो वे अपने बच्चों को इसके लाभ-हानि के बारे में भी समझाते.
ऐसा शायद बिलकुल नहीं हो रहा है क्योंकि किसी एक पल में लगता नहीं कि बाइक दौड़ाते
इन बच्चों को उनके माता-पिता ने कोई सीख दे रखी है.
यहाँ प्रशासन को भी सजग होने
की आवश्यकता है. उनके द्वारा ऐसे बच्चों के बाइक चलाने पर कठोर कदम उठाये जाने
चाहिए. कोचिंग सेंटर्स के द्वारा किसी तरह की हिदायत ने देना, कोई सख्ती न करने के
पीछे उनकी अपनी मजबूरी होती है, उनके अपने व्यावसायिक हित होते हैं मगर प्रशासन के
सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती है. ऐसा तब जबकि आये दिन प्रशासन द्वारा यातायात
जागरूकता कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं. इस बारे में प्रशासन के साथ-साथ अभिभावकों
को भी जागने की, सचेत होने की जरूरत है. भविष्य के खतरों को कुछ आवश्यक कदम उठाकर
टालना हम सबके हाथ में है और उन पर अमल करना चाहिए.
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