21 जनवरी 2019

अपनों का साथ है संजीवनी

ज़िन्दगी जितनी सहज-सरल है उतनी ही कठिन-क्लिष्ट है. एक पल में लगता है जैसे सारी सहजता, सभी कुछ आसानी से उपलब्ध हो गया है. उसी एक पल में लगने लगता है जैसे जीवन को गति प्रदान करना कठिन होता जा रहा है. सहजता और कठिनता जिंदगी के ऐसे दो पहलू हैं जो हर पल एक साथ रहते हैं मगर इन्सान को एक बार में एक ही पहलू दिखाई देता है. इधर यह भी कहा जा सकता है कि वह एक बार में एक ही पहलू देखने का आदी हो गया होता है. जीवन में सुख-दुःख का साथ सदैव से रहा है. धर्म, जाति, आर्थिक स्तर, क्षेत्र आदि कुछ भी रहा हो मगर जीवन के ये दो पहलू सदैव एकसाथ रहे हैं. सुख की स्थिति आते ही सबकुछ अच्छा-अच्छा लगने लगता है, सुखद लगने लगता है. यही कारण है कि लम्बे होने के बाद भी उन पलों का एहसास चंद पलों का लगता है. इसके उलट दुःख का, कष्टों का आना भले ही चंद पलों का हो मगर उनके साथ इतनी समस्याएं साथ आती हैं कि वे चंद पल भी सदियों से कम प्रतीत नहीं होते हैं. 


सुख और दुःख के इन्हीं पलों में साथ देने वालों के द्वारा भी इन पलों की समयावधि के एहसास को कम, ज्यादा किया जा सकता है. इसके साथ-साथ व्यक्ति की जिजीविषा भी उसके साथ आने वाले लोगों के द्वारा भी निर्धारित हो जाती है. ऐसा नहीं है कि व्यक्ति अपने आपको दुःख में ही अकेला और तन्हा महसूस करता हो. कई बार देखने में आता है कि सुखों का अतिरेक होने के बाद भी उसको अकेलापन महसूस होता है. ऐसी किसी भी स्थिति में जबकि उसे अकेलापन महसूस हो, खुद में तन्हा महसूस करे तब उसके साथ के लोगों से ही उसे ऊर्जा मिलती है. जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है. उसकी जिजीविषा को शक्ति मिलती है. प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह दुःख में रहे या फिर सुख में रहे, इसका एहसास हमेशा रहना चाहिए कि जो वक्त उसके साथ चल रहा है वह सदैव के लिए उसके साथ नहीं है. वक्त कब किस करवट बैठेगा, कब अपनी चाल को बदलेगा कहा नहीं जा सकता. ऐसे में व्यक्ति की अपनी शक्ति, अपनी ऊर्जा, अपनी जिजीविषा उसे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है.

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