भारतीय थल सेना आज यानि कि 15 जनवरी को
प्रतिवर्ष सेना दिवस मनाती है. इसी दिन सन 1949 में फील्ड मार्शल के०एम०
करियप्पा ने ब्रिटिश राज के समय की भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर
जनरल फ्रांसिस बुचर से भारतीय सेना की कमान ली थी. उन्होंने भारतीय सेना के पहले कमांडर
इन चीफ़ के रूप मे कार्यभार संभाला था. तब से ले कर आज तक हर साल इस दिन भारतीय
सेना का हर एक जवान राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण की कसम को दोहराता है. इसके साथ
ही वह एक बार फिर और मुस्तैदी से देश सेवा के लिए, राष्ट्र की रक्षा के लिए तैनात हो
जाता है. सेना दिवस का आरम्भ दिल्ली के अमर जवान ज्योति पर शहीदों को सलामी के साथ
किया जाता है.
वर्तमान दौर में सेना का
कार्य, दायित्व सिर्फ सीमा पर तैनात रहकर दुश्मन से निपटना भर नहीं है. अब उसे न
केवल देश के बाहरी दुश्मनों से सामना करना पड़ता है बल्कि देश के अंदरूनी दुश्मनों
से भी निपटना पड़ता है. इसके अलावा अनेक तरह के सामाजिक कार्यों में भी सेना की मदद
ली जाती है. सेना निस्वार्थ भाव से सभी तरह के कार्यों में अपना अमूल्य योगदान
देती है. बाढ़ हो, भूकंप हो या फिर कोई भी प्राकृतिक आपदा, इसके साथ-साथ किसी भी तरह
की मानवजनित आपदा हो, किसी भी व्यक्ति को बचाने का कार्य हो, किसी अति-विशिष्ट की
सुरक्षा का दायित्व हो, देश के किसी भाग में होने वाली हिंसक गतिविधि से निपटना हो
या अन्य किसी तरह का जनहित सम्बन्धी सहायतार्थ कार्य सभी में सेना को, सेना के
जवानों को तत्परता से जुटे देखा जा सकता है.
इसके बाद भी देश में अब एक
वर्ग ऐसा उत्पन्न हो गया है जो कथित राजनैतिक चालबंदी के चलते, गुटबंदी के चलते,
तुष्टिकरण के चलते सेना का विरोध करने में लगा है. भारतीय सेना के वीर जवान की
हिम्मत, उसके कार्यों, समर्पण पर उँगली उठा रहा है. वो प्रत्येक भारतीय नागरिक जो
सेना के प्रति, वीर सैनिक के प्रति सम्मान का भाव रखता है, ऐसी मानसिकता वालों को
मुंहतोड़ जवाब देने का जज्बा रखता है.
गर्व से कहो कि हम सब
भारतीय सेना के साथ हैं, वीर सैनिकों के साथ हैं. जय हिन्द...
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