मित्रों की सलाह पर कुछ
फेसबुकिया पोस्ट यहाँ एकसाथ...
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घड़ी-घड़ी ऑनलाइन दिख जाते हो,
हमें ताकते तो या हमें सताते हो...
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जिन्दगी भर का साथ तो जिन्दगी
भी नहीं देती,
खुद को खुद के साथ जिन्दगी बनाकर
जियो...
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जितना दिखते थे तुम
उससे ज्यादा ज़ालिम निकले,
सबने सुनी आवाज़ मेरी
बस एक तुम ही न पलटे.
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लगता है उन तक
मेरी आवाज पहुँचती नहीं,
पुकारता रहता हूँ उन्हें,
वो पलट कर देखते भी नहीं.
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उन्हें ज़िन्दगी की कद्र ही नहीं,
जिन्हें ज़िन्दगी बना बैठे.
दिल हमने उन्हें अपना दिया,
वे उसे किसी और पर लुटा बैठे.
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