03 अक्तूबर 2018

भारत में टेस्ट ट्यूब बेबी की यात्रा

आज तकनीकी के साथ चिकित्सा विज्ञान इस कदर बढ़ गई है कि इसकी मदद से हमने हर नामुमकिन सवालों के जवाब ढूंढ लिए जा रहे हैं. ये हमारी तकनीक का ही वरदान है कि कल तक जिसे किस्मत का खेल माना जाता था, आज उसे तकनीक के सहारे हासिल कर लिया जा रहा है. कुछ साल पहले तक माता-पिता बनना या न बनना स्वास्थ्य पर निर्भर हुआ करता था किन्तु आज इसके लिए भी चिकित्सा विज्ञान ने अवसर उपलब्ध करवा दिए हैं. आज ऐसे माता-पिता के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी नामक तकनीक है विज्ञान में जिसके माध्यम से बच्चा पैदा किया जाता है. इस तकनीक को IVF यानि कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन या टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से जाना जाता है. इस तकनीक का सहारा उस स्थिति में लिया जा रहा है जबकि दंपत्ति संतान-सुख न ले पा रहे हों. महिला गर्भ धारण न कर पा रही हो. सामान्य तौर पर गर्भधारण प्रक्रिया में पुरुष का स्पर्म महिला के अंडाशय (ओवरी) में मौजूद अंडे से संपर्क करके उसके अन्दर जाकर उसे फर्टिलाइज करता है. अंडे के उत्सर्जन के बाद यह अंडा फर्टिलाइज होकर अंडाशय से निकलकर महिला के गर्भाशय में चला जाता है. यहीं भ्रूण के द्वारा शिशु का रूप उसे प्राप्त होता है.ऐसी किसी भी महिला को सामान्य रूप से गर्भधारण नहीं कर पा रही है, उसके लिए टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक वरदान के समान है. 


किसी महिला के लिए गर्भधारण न कर पाने के पीछे कई कारण होते हैं. इनमें पुरुषों में इनफर्टिलिटी की समस्या, महिलाओं में अण्डों के निर्माण सम्बन्धी अस्थिरता, फलोपियन ट्यूब, अंडाशय की समस्या, महिलाओं की अधिक उम्र को मुख्य जिम्मेवार माना जाता है. इनफर्टिलिटी की समस्या पुरुषों में पाई जाती है. इसके चलते पुरुष में पर्याप्त मात्रा में स्पर्म्स का न बनना होता है. इसके चलते किसी महिला लिए गर्भ धारण करना मुश्किल हो जाता है. महिलाओं से सम्बंधित समस्याओं में अण्डों के निर्माण सम्बन्धी चक्र का अनियमित अथवा अस्थिर होना है. इस गड़बड़ी के कारण महिला में आवश्यक अण्डों का निर्माण नहीं होता या फिर अण्डों की निर्माण-प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी आना हो सकता है. गर्भधारण न कर पाने की समस्या महिलाओं के अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब से भी जुडी हो सकती है.

आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण कई चरणों में संपन्न होता है. इसमें सबसे पहले उस महिला के मासिक धर्म को को रोका जाता है, जिसे गर्भधारण करना होता है. इसके लिए योग्य चिकित्सक इंजेक्शन के माध्यम से दवाई देकर सम्बंधित महिला के मासिक धर्म को रोकता है. ऐसा इसलिए किया जाना आवश्यक होता है क्योंकि मासिक धर्म चलते रहने पर गर्भधारण नहीं किया जा सकता है. इसके बाद के चरण में महिला के अंडाशय में उस समय, जबकि अण्डों का बनना आरम्भ होता है, उसे फर्टिलिटी दवा दी जाती है. ऐसा होने पर महिला के अंडाशय में सामान्य से अधिक अण्डों का उत्सर्जन होता है.  इसके बाद अंडाशय में उत्सर्जित अण्डों को एक छोटे, सामान्य से ऑपरेशन के द्वारा बाहर निकाला जाता है. बाहर निकाले गए अंडो को पुरुष के स्पर्म के साथ रखा जाता है. कुछ समय बाद स्पर्म अंडे के अंदर जाना शुरू कर देते हैं. ऐसी स्थिति के अलावा कई बार बाहर निकाले गए अंडो में स्पर्म को इंजेक्शन के द्वारा भी अन्दर डाला जाता है. यह प्रक्रिया बीजारोपण (Insemination) कहलाती है. इस प्रक्रिया के द्वारा स्पर्म जब अंडे के अंदर चला जाता है तो उसे फर्टिलाइज करना शुरू कर देता है. अंडे के पूरी तरह से फर्टिलाइज हो जाने के बाद वह भ्रूण के रूप में विकास करना शुरू कर देता है. ऐसा महिला के अंडाशय से निकाले गए सभी अंडो के साथ होता है. इसके बाद का चरण प्रभावी चरण कहा जा सकता है. इसमें सभी भ्रूणों की जाँच की जाती है और उनमें से सबसे बेहतर भ्रूण का चयन किया जाता है. इस चयन के बाद सम्बंधित भ्रूण महिला के गर्भाशय में भेजा जाता है. यह प्रक्रिया एक पतली सी ट्यूब द्वारा पूरी की जाती है. इसके बाद महिला के गर्भ में उस भ्रूण का विकास होने लगता है. एक निश्चित अवधि के पश्चात् शिशु का जन्म होता है, जिसे इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के चलते टेस्ट ट्यूब बेबी नाम दिया जाता है.

दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन 

दुनिया की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी लुईस ब्राउन अपने बच्चों के साथ 

लुईस ब्राउन नामक बच्ची विश्व की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी बनी, जिसका जन्म 25 जुलाई 1978 को हुआ था. इसके कुछ दिन बाद ही देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ. देश की पहली और दुनिया की दूसरी टेस्ट ट्यूब बेबी दुर्गा उर्फ़ कनुप्रिया अग्रवाल का जन्म 03 अक्टूबर 1978 को हुआ था. यह सफलता कोलकाता के डॉ० सुभाष मुखोपाध्याय के प्रयासों से प्राप्त हुई. उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ भारत में IVF प्रणाली से पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म कराया. यह बच्ची दुर्गा पूजा के दिन पैदा हुई थी इसलिए उसे सब दुर्गा कहने लगे, बाद में उसका नाम कनुप्रिया अग्रवाल रखा गया. आज कनुप्रिया विवाहित हैं और फिलहाल वे एक कंप्यूटर कंसल्टेंसी कंपनी में बतौर मैनेजर कार्यरत हैं.


देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी - कनुप्रिया 

इसे तत्कालीन समाज की विडम्बना ही कहा जायेगा जहाँ एक ओर टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक की खोज करने वाले राबर्ट एडवर्ड्‍स को दुनिया ने नोबेल पुरस्कार देकर सम्मान और इज्ज़त दी वहीं भारत के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी का सफल प्रयोग करने वाले डॉक्टर सुभाष को सरकार और समाज के विरोध के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा. उनको सरकार के विरोध के साथ-साथ समाज के नैतिक विवाद का भी सामना करना पड़ा. कोई स्वीकारने को तैयार नहीं था कि इस चिकित्सक के परीक्षणों के चलते देश ने चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत बड़ी छलांग लगा ली है. उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें सम्मान मिलने की बजाय सामाजिक बहिष्कार, सरकार की नजरअंदाजी और धमकियां मिलीं. उन पर केस भी चलाया गया. इन सबसे तंग आकर उन्होंने 19 जून 1981 को आत्महत्या कर ली.

देश में टेस्ट ट्यूब बेबी के जनक डॉ० सुभाष मुखोपाध्याय 

उनकी मौत के पांच साल बाद यानि सन 1986 में मुंबई एक टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ, जिसे भारत का पहला आधिकारिक टेस्ट ट्यूब बेबी माना गया. यह प्रसव मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में संपन्न हुआ था. चिकित्सकों की टीम में हॉस्पिटल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ० कुसुम झावेरी, डॉ० इंदिरा हिंदूजा और आईसीएमआर के डायरेक्टर डॉ० टी०सी० आनंद कुमार शामिल थे. इनकी देखरेख में 6 अगस्त 1986 को जन्मी इस बच्ची का नाम हर्षा चावड़ा रखा गया. इस टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा ने 29 साल की उम्र में जसलोक अस्पताल की डॉ० इंदिरा हिंदूजा और डॉ० कुसुम झावेरी की देखरेख में एक बच्चे को जन्म दिया. ये दोनों वही चिकित्सक हैं जिन्होंने सन 1986 में हर्षा का जन्म करवाया था.

देश की आधिकारिक पहली टेस्ट ट्यूब बेबी हर्षा अपने नवजात शिशु के साथ 


डॉ० सुभाष की डायरी और शोध कार्य से संबंधित कागजात डॉ० आनंद कुमार के हाथ लगे और हर्षा का जन्म हुआ. उन्होंने माना कि जो श्रेय उन्हें मिल रहा है उसके असली हकदार तो डॉ० सुभाष मुखोपाध्याय हैं. उनके हाथ कुछ दस्तावेज लगे हैं जिससे ये साबित हुआ कि डॉ० सुभाष ने 1978 में आइवीएफ तकनीक से जिस बच्ची दुर्गा का जन्म होने का दावा किया था वह बिल्कुल सही था. लम्बी जद्दोजहद के बाद 2001 आते-आते आखिरकार डॉ० सुभाष के दावे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली. इसको स्वीकार किया गया कि उनका दावा सही था और वे ही भारत में टेस्ट ट्यूट बेबी के जनक थे. दुर्गा ही पहली टेस्ट ट्यूब बेबी थी, हर्षा नहीं. सन 2007 में डॉ० सुभाष की उपलब्धियों को डिक्शनरी ऑफ़ मेडिकल बायोग्राफी में शामिल भी किया गया. इसमें पूरी दुनिया के सौ देशों के 1100 प्रमुख चिकित्सकों के योगदान को शामिल किया जाता है.



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