घूमना-फिरना सदैव से
ही सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता रहा है. इसी कारण से लोगों में सुबह-सुबह घूमने
की, शाम को घूमने की ललक देखी जाती है. बहुतायत में लोग सूर्योदय के पहले से ही
घूमना शुरू कर देते हैं. बहुत से लोग ऐसे हैं जो देर रात भोजन करने के बाद घूमने
का काम करते हैं. आम बोलचाल की भाषा में इसे टहलना कहा जाता है. हम भी इस घूमने को
टहलने के रूप में ही देखते हैं और अपने वाले घूमने पर आते हैं. यहाँ हमारा मंतव्य
उस घूमने-फिरने से है जिसे पर्यटन से सम्बंधित माना जाता है. कई-कई दिन की सैर,
कई-कई जगहों की घुमक्कड़ी, कई-कई नई जानकारियों से खुद को समृद्ध कर लेना. आज चूँकि
विश्व पर्यटन दिवस है, इसलिए भी घूमना बहुत याद आ रहा है. वैसे भी हमारा
घुमक्कड़ी का मूड हमेशा से बना रहा है. मौका निकालकर घूमा-फिरी हो जाया करती है.
यदि इतना समय नहीं है कि बहुत दूर जाया जाये तो अपने जनपद के आसपास के ऐसे स्थानों
पर घूमा-फिरी कर ली जाती है तो बीहड़ क्षेत्र हैं या फिर नदी किनारे हैं. इन जगहों
पर जाने से भले ही कुछ ख़ास न मिलता हो मगर एक तो घूमने की खुराक मिल जाती है, साथ
ही फोटोग्राफी की बीमारी का इलाज हो जाता है.
बहरहाल, जबकि विश्व
पर्यटन दिवस मनाये जाने की कवायद आज से नहीं वरन सन 1980 से शुरू हो चुकी है तो लगा कि थोड़ा इसे भी देख लिया जाये
कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किसलिए इस दिवस को मनाया जाना शुरू किया गया. संयुक्त
राष्ट्र संघ द्वारा विश्व में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इसकी शुरुआत 27 सितंबर
को की थी. विश्व पर्यटन दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यटन और उसके सामाजिक,
सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक मूल्यों के प्रति
विश्व समुदाय को जागरूक करना है. पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यटन के द्वारा
अपने देश की आय को बढ़ाना भी एक उद्देश्य होता है. अब हमारी घुमक्कड़ी पर्यटन की
श्रेणी में आती है या नहीं ये तो संयुक्त राष्ट्र संघ वाले ही जानें किन्तु
घूमने-फिरने की अपनी आदत के चलते कई जगहों पर जाना हुआ, कई ऐसी जगहों पर भी जाना
हुआ जो न तो पर्यटन की दृष्टि से सामने हैं और न ही उन जगहों को घूमने लायक माना
जाता है. ऐसी जगहों पर जाने का एक लाभ यह होता है कि वहाँ बहुत भीड़भाड़ नहीं होती
है और प्राकृतिक सुन्दरता का अवलोकन पूरे मन से हो जाता है. ऐसी जगहों पर घुमक्कड़ी
के बाद एहसास हुआ कि अपने देश का नैसर्गिक सौन्दर्य, यहाँ की विलक्षणता, यहाँ की
मोहकता, यहाँ का वातावरण विविधताओं से भरा हुआ है. पर्यटन के लिए विदेश की तरफ
भागने वालों को पहले अपने देश के कोने-कोने से परिचित होने की आवश्यकता है. यहाँ के
सौन्दर्य-रस का स्वाद लेने की आवश्यकता है.
ऐसी जगहों पर
घुमक्कड़ी का कोई और लाभ हुआ हो या न हुआ हो पर भारतीय पर्यटन विभाग के अतुल्य
भारत नामक अभियान की जरूर कुछ न कुछ पूर्ति हो जाया करती है क्योंकि उन जगहों
की फोटो, वीडियो सबके सामने आ जाते हैं जहाँ आमतौर पर लोग जाते ही नहीं अथवा जा
नहीं पाते. भारतीय पर्यटन विभाग ने सितंबर 2002 में अतुल्य भारत नाम से एक नया
अभियान शुरू किया था. इस अभियान का उद्देश्य भारतीय पर्यटन को वैश्विक मंच पर बढ़ावा
देना था. इस अभियान के तहत हिमालय, वन्य जीव, योग और आयुर्वेद पर अंतर्राष्ट्रीय
समूह का ध्यान खींचा गया. देश के पर्यटन क्षेत्र के लिए इस अभियान से संभावनाओं के
नए द्वार खुले हैं. देश की प्रसिद्द जगहों, स्थानों, शहरों को देखने, उनको वैश्विक
मंच प्रदान करने के अलावा भी सुदूर ग्रामीण अंचलों में ऐसी-ऐसी जगहें हैं जो न
केवल प्राकृतिक सुन्दरता से ओतप्रोत हैं बल्कि उनमें स्थानीय इतिहास की समृद्ध
विरासत छिपी हुई है. ऐसी जगहों पर आज भी भारतीय पर्यटन विभाग बहुत कम पहुँच पा रहा
है या फिर जानबूझ कर नहीं पहुँचना चाहता है. हम और हमारे मित्र अपनी घुमक्कड़ी के
द्वारा ऐसी जगहों की निरन्तर न केवल सैर करते रहते हैं वरन वहाँ की फोटो, वीडियो,
लेख आदि के द्वारा उनको अतुल्य भारत अभियान से जोड़ने का काम भी कर रहे हैं.
बहरहाल, इस साल कई
जगहों पर घूमना हुआ. इनमें से कुछ जगहें एकदम नई रहीं और कुछ पुरानी जगहों पर जाना
हुआ. कुछ ऐसी जगहों पर भी घूमना हुआ जहाँ पहुँचकर लगा कि इन क्षेत्रों के विकास
हेतु अभी सरकारों को बहुत काम करने की आवश्यकता है. ऐसी जगहों को देखकर लगा कि
यहाँ भी पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. एकबारगी भले ही यहाँ विदेशी पर्यटक न आयें
मगर जैसे-जैसे स्थानीय निवासी, देशवासी यहाँ आना शुरू करेंगे, अपनी विरासत को
समझने की कोशिश करेंगे, अपनी प्राकृतिक सुन्दरता को वैश्विक मंच तक ले जाने का काम
करेंगे तब सैलानियों की संख्या में भी वृद्धि होगी. पर्यटन, घूमने, सैर करने को
लेकर अपनी इतनी सोच है कि घूमते रहो, घुमक्कड़ी करते रहो पर्यटन का विकास स्वतः
होता रहेगा, अतुल्य भारत स्वतः सामने आता रहेगा.
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