आये दिन किसी न किसी
तरह का घटनाक्रम बहुत तेजी से सबके बीच चलने लगता है. अफवाह फैलने लगती है. बिना
किसी तरह की जाँच किये मैसेज इधर से उधर होने लगते हैं. ऐसी अफवाहों में कई बार लोगों
को बताया-समझाया जाता है कि विशेष अंकों के मोबाइल नंबर से फोन आएगा और उसे रिसीव करते
ही मोबाइल फट जायेगा. कभी कॉस्मिक किरणें रात को बारह बजे पृथ्वी के पास से निकलने
लगती हैं. कभी कोई उल्का पिंड धरती पर गिरने की तैयारी करने लगता है. कभी नमक की कमी
होने लगती है. कभी कोई नामधारी व्यक्ति का निधन हो जाता है. कुछ दिनों पहले EVM के ब्लूटूथ से हैक किये
जाने की अफवाह उड़ी. उसके भी पहले नोटबंदी के समय नए नोट को लेकर अनेक तरह की अफवाह
फैलाई गईं. फोटोशॉप करके भी फोटो के द्वारा अफवाह फ़ैलाने का काम पढ़े-लिखे लोगों का
ही होता है. ऐसे मैसेज सोशल मीडिया की शान
में चार चाँद तो लगाते ही हैं देशवासियों के सामान्य से ज्ञान पर भी रौशनी डालते हैं.
ऐसे में याद आता है सन 1980 के आसपास का समय जबकि स्काईलैब के गिरने की अफवाह बहुत
तेजी से फैली थी. उस समय लोगों में मरने के डर से, सब खो जाने
के भय से अफरातफरी मच गई थी. समझा जा सकता है कि उस समय तकनीक का, संचार साधनों का अभाव था किन्तु अब तो प्रत्येक व्यक्ति तकनीकी संपन्न है,
संचार साधनों के सहारे समूचे विश्व से जुड़ा है. ऐसे में किसी भी तरह
की अफवाह पर समाज के बहुत बड़े वर्ग का चिंताग्रस्त हो जाना अंग्रेजों और देशी-अंग्रेजों
द्वारा यहाँ के बहुतायत नागरिकों के लिए कहे गए वचनों को सिद्ध करता है.
उस समय जबकि लोगों के
पास शिक्षा के साधन कम थे, लोगों का परिचय तकनीक से दूर-दूर तक नहीं था तब उनका दिग्भ्रमित हो जाना स्वाभाविक
था. तब उनके पास संचार के साधन भी नहीं थे, जो थे भी वे इतने
उन्नत नहीं थे कि पल में सुदूर क्षेत्र की खबर का आदान-प्रदान कर सकें. ऐसी विषम स्थितियों
में नागरिकों का अफवाहों के चंगुल में फँस जाना समझ आता है. आज जबकि तकनीकी दुनिया
बहुत समर्थ है; आज जबकि लगभग हर हाथ में संचार साधन की उन्नत
तकनीक है; आज जबकि एक पल में देश की ही नहीं वरन विदेश की किसी
भी खबर को सामने खड़ा देख सकते हैं तब भी समाज का बहुत बड़ा वर्ग अफवाहों का शिकार बन
जाता है, जालसाजी का शिकार बन जाता है. ऐसे समय में ये समझ से
परे है कि आखिर ऐसा क्यों हो जाता है? आखिर ऐसा होने में दोषी
कौन होता है? जो अफवाह फैलाकर, जालसाजी
करके अपना उल्लू सीधा करता है या फिर वो जो इसका शिकार बन जाता है? आज की ही घटना को देखें तो सुबह से दो चैनल पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल
बिहारी वाजपेयी के निधन की खबर प्रसारित की जा चुकी हैं. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया
पर सबसे पहले हम की होड़ में दो-चार मिनट में कोई न कोई अटल जी के निधन की घोषणा
करते हुए उनको श्रद्धांजलि देने में लगा हुआ है. ऐसा आज सिर्फ अटल जी को लेकर नहीं
हो रहा है, इससे पहले भी किसी न किसी प्रसिद्द व्यक्ति को लेकर ऐसी अफवाह उड़ती रही
है. समझ से परे है कि पढ़े लिखे लोग कैसे ऐसे संदेशों पर विश्वास करके उनको
प्रसारित करने लग जाते हैं. कम से कम पूर्व प्रधानमंत्री की गरिमा को देखते हुए
सरकारी चैनल से, आधिकारिक बयान से ऐसे संदेशों की पुष्टि तो कर ही सकते हैं ऐसे
लोग.
असल में आज जिस तेजी
से तकनीक का विकास हुआ है, उसी तेजी से इसका दुरुपयोग करने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. खुद
को सोशल मीडिया पर सबसे अधिक सक्रिय दिखाने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग ही
अफवाहों का बाजार गर्म करते हैं. आवश्यकता सजग रहने की है, सचेत
रहने की है. तकनीकी रूप से सक्षम होने का अर्थ सोशल मीडिया में हस्तक्षेप बढ़ जाना नहीं
है; तकनीकी ज्ञान का अर्थ किसी भी रूप में मोबाइल पर समूची दुनिया
को कैद समझ लेना नहीं है वरन तकनीकी रूप से साक्षर होने का अर्थ है कि अपने आसपास होने
वाले किसी भी घटनाक्रम के बारे में सही-सही जानकारी रखना. किसी भी अफवाह, घटनाक्रम के सामने आने टार उसकी सत्यता, उसकी प्रामाणिकता
को पता करना. यदि ऐसा हम नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम सभी पढ़े-लिखे
निरक्षर हैं. यदि हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि हम खुद को,
अपने वर्तमान को, भविष्य को खतरे में डाल रहे हैं.
खुद को, परिवार को, समाज को, देश को खतरों से बचाने के लिए अफवाहों से बचने, उनके
प्रचार-प्रसार से बचने, उनकी सत्यता प्रमाणित करने की आवश्यकता
है.
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