22 जुलाई 2018

अपनी ही क्षमता नापने के लिए अ(र्द्ध)विश्वास

चारों तरफ से गूंजते गठबंधन, महागठबंधन के स्वर सरकार से ज्यादा विपक्ष को परेशान किये थे. जिन्हें गठबंधन से कोई सरोकार नहीं था वे उसकी चर्चा करने में लगे थे और जिन्हें गठबंधन को अमली जामा पहनाना था वे अपने लबों पर चुप्पी साधे थे. शायद वे लोग उस सिद्धांत का पालन करने में लगे थे जिसमें कहा गया है कि जोड़ियाँ ऊपर वाला बनाता है. दसों दिशाओं से तमाम सूरमा एकसाथ होने को आतुरता दिखाने के बाद भी आतुर नहीं लग रहे थे. प्रत्यक्ष में दिखने वाली तूफानी ख़ामोशी के पीछे बहुत कुछ ऐसा था जो सामने नहीं आ रहा था. ये ख़ामोशी उस महासमर के ठीक पहले की थी जो निकट भविष्य में होने वाला है. यद्यपि महासमर का दिन अभी तय नहीं किया जा सका है किन्तु सभी सूरमा अपने-अपने हथियारों को खंगालने में लगे हैं. कुछ चोरी-छिपे अपने दाँव आजमाने के लिए इधर से उधर करने में लगे हैं. महासमर के पहले का ये खेल बहुत ही रोमांचक दिख रहा है.


गठबंधन की आधारशिला के पूर्व वे सूरमा आगे-आगे नजर आ रहे हैं, जिनके पास कुछ संख्याबल है. इसके आगे और भी हास्यास्पद स्थिति है कि वे और भी आगे-आगे या कहें कि आगे में भी सबसे आगे हैं जिनके पास संख्याबल के नाम पर आर्यभट्ट की खोज है. ऐसे सभी लोग मिलकर महासमर के लिए एक नई सेना गठित करने का विचार बना चुके हैं. इस नई सेना में सबकी अपनी-अपनी सहभागिता कैसी और कितनी होगी, इस पर अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई. बस सबके दिमाग में गठबंधन, महागठबंधन जैसी शब्दावली ही है और उसके आधार पर आने वाले महासमर में मजबूत विरोधी से लड़ना है.

कौन किस आधार पर, कितनी क्षमता से मैदान में उतरेगा. कौन किस-किस अस्त्र-शस्त्र का उपयोग करके विरोधी को परस्त करने की स्थिति में है. किस दल की स्थिति किस रणक्षेत्र से ज्यादा सशक्त है अभी इस पर चर्चा नहीं हुई. सब आपस-आपस में ही मेल-मिलाप करके खुद को सशक्त बताने में लगे हैं. महासमर में अधिक से अधिक शक्ति अपने पास रखने का संकेत कर चुके हैं. अधिक से अधिक संख्याबल का निर्धारण अपने पक्ष में करने की वकालत करते दिख रहे हैं. संभावित गठबंधन के सूरमाओं का रणनीति से अधिक ध्यान इस पर है कि महासमर में यदि विजय प्राप्त होती है तो ताज किसके सिर पर सजेगा. तमाम सारी कपोल-कल्पनाओं से इतर वे सब मिलकर न तो अपना सेनापति बना पाए हैं और न ही गठबंधन सुसज्जित कर पाए हैं.

इन सबकी उधेड़बुन में लगे ही थे कि मानसून आ गया. संभावित गठबंधन की आशा में बैठे तमाम सूरमाओं को जैसे कोई मनचाहा मौसम मिल गया. वे सब चहक पड़े. विरोधी से ज्यादा अपनी क्षमताओं का आकलन करने को बेताब दिखने लगे. आनन-फानन समस्त सूरमाओं को एकत्र किया गया. मानसून में ही विरोधी को पस्त करने के मंसूबे बांधे जाने लगे. महासमर से पहले ही एक रणक्षेत्र तैयार किया जाने लगा. शाब्दिक मल्लयुद्ध के द्वारा विरोधी को उसी में दाँव में लेने के प्रयास किये जाने लगे. शून्य संख्याबल को अपने पीछे जोड़कर संख्याबल को कई-कई गुना बनाये जाने के दावे किये जाने लगे. सारी रणनीति गोपन से अगोपन न हो जाये सो गुपचुप मानसून का इंतजार किया जाने लगा.

बंद कमरे के खुलेपन में बैठकर समस्त योद्धाओं ने बजाय गठबंधन निर्मित करने के, बजाय अपना सेनापति घोषित करने के, बजाय रणक्षेत्र का निर्धारण करने के विरोधी को मात देने की योजना बनाई. आपस में कानाफूसी करके, एक-दूसरे के विश्वास को अविश्वास, अर्द्धविश्वास से नापते हुए एक निर्णय पर सहमति बनाई गई. विरोधी की ताकत का आकलन करने के बाद भी दिवास्वप्न देखने की हिम्मत की गई. आम सहमति होने के बाद सबने मिलकर एकदूसरे के हाथों में हाथ भर लिए.

संख्याबल की स्थिति जानने के कारण सभी सूरमा जानते थे कि इस कदम से विरोधी परास्त होने वाला नहीं. इस कदम से मानसून का मजा लेने से विरोधी को रोका जा सकता है. बिल रोके जा सकते हैं. विरोधी पर आरोप-प्रत्यारोप लगाये जा सकते हैं. विरोधी को मानसून का आनंद लेने के बजाय लटके-झटके में अटकाये रहना है. जैसे ही आपस में यह तय हुआ कि विरोधी की ताकत का, उसके विश्वास का आकलन वे सब कर चुके हैं अब बस अपनी ही ताकत का, अपने ही विश्वास का आकलन करना है. विरोधी को परस्त करने से रहे पर खुद को भी पराजित होने से बचाना है. गठबंधन की संभावित स्थिति को इसी मानसून में निर्धारित करना है.

बस, सभी ख़ुशी से चिल्ला उठे. एकदूसरे के गले लगते हुए गठबंधन, महागठबंधन के शोर के बीच एक शोर और तैर गया कि अब विरोधी को हमारे अविश्वास का सामना करना पड़ेगा. यह शोर भले ही मानसून में गूंज गया हो मगर सभी गठबंधित सूरमाओं के मन में, दिमाग में, दिल में शोर चल रहा था कि ये अविश्वास विरोधी के लिए नहीं वरन आपस में एकदूसरे के अविश्वास, अर्द्धविश्वास को मापने के लिए लाया जा रहा है.


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