आज
खबर पढ़ने को मिली कि कानपुर में चार नाबालिगों ने चार साल की एक बच्ची के साथ
सामूहिक दुराचार किया. इन चारों नाबालिगों में से एक की उम्र बारह वर्ष बताई गई है
जबकि अन्य तीन की उम्र छह वर्ष से दस वर्ष के बीच है. बच्ची के पिता द्वारा की गई
रिपोर्ट के बाद उन चारों बच्चों को गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने बताया कि एक
पोर्न फिल्म देखने के बाद उन्होंने उसी का कृत्य उस बच्ची पर आजमाया. बच्चे सुधार
गृह में भेज दिए गए हैं, ऐसी खबर है.
वैसे
देखा जाये तो ये कोई पहली घटना नहीं है, इतने छोटी उम्र के बच्चों का सेक्स जैसे
मामले में शामिल होना. इससे पहले भी सहमति वाली और रेप वाली कई घटनाएँ सामने आईं
हैं. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया पर आये दिन इस तरह की फोटो, वीडियो सामने आते रहे
हैं जिनमें छोटी कक्षाओं के बच्चे अपने गुप्तांग एक-दूसरे को दिखाते पकड़े गए हैं.
ऐसी भी खबरें आपस में इधर से उधर होती रही हैं जिनमें लड़के-लड़कियाँ आपस में
मम्मी-पापा का खेल खेलते पाए गए. इस खेल में उनके द्वारा सेक्स क्रियाएं भी
संचालित करते हुए देखी गईं हैं. देखा जाये तो ये अकस्मात् नहीं होता है. इसके पीछे
पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तंत्र काम करता है. संभव है कि संस्कृति के
ठेकेदार इसे नकारने का काम करें मगर यदि गौर से देखा जाये तो सेक्स सम्बन्धी
हरकतें बच्चों द्वारा बहुत छोटी वय से करते देखी जाती हैं. हमारे समाज में सेक्स
का सन्दर्भ आज भी दो वयस्कों द्वारा शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने से लगाया जाता है.
आज, इक्कीसवीं सदी के देश दशक से अधिक समय निकल जाने के बाद भी यौन शिक्षा का अर्थ
दो विषमलिंगियों द्वारा शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने से लगाया जाता है. इसी तरह की
संकुचित मानसिकता के चलते ही सेक्स को लेकर बहुत गलत, भ्रामक धारणाएँ समाज में
फैली हुई हैं. बच्चों की कम उम्र की गतिविधियों को यदि गौर किया जाये तो विषमलिंगी
बच्चे आपस में एक-दूसरे के गुप्तांगों को लेकर अचंभित होते हैं. लड़के-लड़कियों के
गुप्तांगों में बचपन से ही जबरदस्त अंतर दिखाई देता है और बच्चों के लिए यह कौतूहल
की स्थिति होती है. उस कम उम्र में उनके लिए यह अंतर सेक्स का पर्याय नहीं होता
वरन आश्चर्य का विषय होता है. उनके द्वारा इस अंतर का कारण पूछे जाने पर अभिभावकों
द्वारा सही उत्तर न दिया जाना भी आगे चलकर हानिकारक होता है.
बच्चों
की बढ़ती उम्र और घर में उनका अकेलापन उन्हें विषमलिंगियों के शरीर के प्रति
आकर्षित करता है. उस अंतर का भेद जानने को प्रेरित करता है, जिसे वे बचपन में नहीं
जान सके थे. ऐसी स्थिति में उनको मदद पोर्न फिल्मों, उनके अभिभावकों द्वारा या
परिवार के बड़े युगलों द्वारा असावधानीपूर्ण बनाये जा रहे शारीरिक संबंधों द्वारा मिलती
है. देह के अंतर को वे ऐसे में देख-समझ लेते हैं और किसी दिन इसे खुद आजमाने के
प्रयास में रहते हैं. इसके अलावा हम लोग अपने परिवारों में तीन-चार साल के बच्चों को
उनके क्लास में पढ़ने वाले लड़के/लड़कियों के नाम पर चिढ़ाते हैं. उनके बॉयफ्रेंड का,
गर्ल फ्रेंड का नाम पूछते हैं. और तो और उनकी शादी तक की बात भी करके
उन्हें चिढ़ाते हैं. माता-पिता अपने छोटे बच्चों के सामने रोमांटिक मूड में बने रहते
हैं. अक्सर बेपरवाह होकर बेपर्दा भी हो जाते हैं. बच्चे मासूमियत में भले होते हैं
मगर ऐसे कृत्य के बारे में जानना चाहते हैं. ऐसा उनके लिए इसलिए भी गलत नहीं होता क्योंकि
उनके मम्मी-पापा ऐसा कर रहे होते हैं. ऐसे में बच्चों द्वारा इस तरह का कृत्य मनोरंजन
के स्थान पर अपनी जिज्ञासा का शमन करने जैसा होता है.
इसके
अलावा एक बात और, आज जिस पोर्न साइट्स का, इंटरनेट के दुरुपयोग का हम सब रोना रो
रहे हैं, यदि याद हो तो मोदी सरकार ने आने के कुछ समय बाद पोर्न साइट्स पर
प्रतिबन्ध लगाने का निर्णय लिया था. उस समय समाज के कथित आधुनिकतावादी इस निर्णय
के विरोध में उतर आये थे. उनका कुतर्क था कि अब सरकार निर्णय करेगी कि लोग क्या
देखें क्या नहीं. सोचिये, आप क्या देख रहे और आपके बच्चे क्या देख रहे. आज हर हाथ
में मोबाइल है, हर हाथ में इंटरनेट है तो हर हाथ में पोर्न है. बच्चों के
माता-पिता जिस गोपन को पलंग के एक छोर पर संचालित करते हैं, बच्चे उसी गोपन का
ज्ञान अपने हाथों में सहेजे मोबाइल के माध्यम से करने में लगे हैं. बस वे इसके
प्रयोग के इंतजार में रहते हैं. जैसे ही वे इसे पाते हैं किसी न किसी रूप में उसका
निदान कर लेते हैं. ऐसी एक-दो नहीं अनेक घटनाएँ हैं जहाँ नाबालिगों ने नाबालिग
लड़की से सम्बन्ध बनाये हैं, रेप किया है. ये और बात है कि कानपुर की ये घटना पकड़
में आ गई और समाज के लिए आश्चर्यजनक बन गई है. हाथ में पकड़े मोबाइल से लेकर बेडरूम
में सजे टीवी तक किसी न किसी रूप में आज के बच्चे सिर्फ और सिर्फ सेक्स देख रहे
हैं, अश्लीलता देख रहे हैं. ऐसे में उन्हें समझाना कठिन है कि यह उनकी उम्र के लिए
नहीं है. आइये, बस आधुनिकता का यह तमाशा देखिये क्योंकि हम सब भौतिकतावादी दौड़ में
सबकुछ भुलाकर लगे हुए हैं.
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