01 जुलाई 2018

बलात्कारियों में डर-भय नहीं कानून का


दिल्ली गैंगरेप के बाद दिल्ली समेत देश के कई भागों में इन बलात्कारियों को फाँसी की सजा देने की माँग जोर पकड़ने लगी थी, ऐसा ही कुछ अब हो रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे बलात्कारियों के लिए फांसी की सजा के निर्धारण से देश में बलात्कारियों में डर व्याप्त हो जायेगा अथवा बलात्कार होने बन्द हो जायेंगे। याद होगा शायद सभी को कि धनञ्जय चटर्जी को बलात्कार के आरोप में ही फाँसी दी गई थी। क्या हुआ उसके बाद? क्या बदला उसके बाद? विगत कुछ माह से लगातार होती आ रही या कहें कि रोज ही होती आ रही बलात्कार की घटनाएँ चिंतित करने वाली हैं, विचलित करने वाली हैं। चिंता इसकी कि अब ऐसा लग रहा है कि समाज में महिलाएं सुरक्षित ही नहीं हैं और विचलित करने वाली घटनाएँ इसलिए क्योंकि बलात्कार की, सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में अब बच्चियों को शिकार बनाया जाने लगा है। कभी लगता है कि जनता जाग रही है तो कभी लगता है कि वह एकदम भावशून्य पड़ी हुई है। प्रशासन-शासन की विफलता के बाद उसको चेताने के लिए, जगाने के लिए जनता का जागरूक होना आवश्यक है। इस जागरण में सिर्फ और सिर्फ फाँसी की माँग करना अकेले ही इस समस्या का समाधान नहीं।


बलात्कार के लिए फांसी की सजा की मांग करने के पूर्व हमें उन तमाम सारे कानूनों की ओर भी ध्यान देना होगा जिनके द्वारा किसी अपराध के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। क्या उन तमाम अपराधों में कमी आई है अथवा वे अपराध होना बन्द हो गये है? पूर्वाग्रह दृष्टि न रखने वालों का एक ही जवाब इसके लिए होगा और वो भी न में। तमाम सारे वे अपराध आज भी तेजी से समाज में होते दिख रहे हैं, जिनके लिए सजा के रूप में फांसी की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि यदि बलात्कार की सजा के रूप में फांसी को मुख्य रूप से स्वीकार कर लिया गया तो इसके कई दुष्परिणाम महिलाओं के प्रति ही खड़े होने की आशंका है। यह सर्वविदित है कि यदि किसी भी महिला से बलात्कार हुआ तो जाहिर है कि वह महिला किसी न किसी रूप में शारीरिक दृष्टि में उस बलात्कारी पुरुष से कमजोर साबित हुई है। इसके अलावा गैंग रेप के केस में तो जाहिर है कि उस महिला के साथ दुराचार करने वालों की संख्या एक से अधिक रही होगी। ऐसे में यदि बलात्कार की सजा फांसी हो जाती है तो बहुत हद तक सम्भावना है कि सम्बन्धित महिला को दुराचारी लोग जीवित ही न छोड़ें। आखिर उन बलात्कारियों को पहचानने वाला, उनकी शिकायत करने वाला, उनके विरुद्ध गवाही देने वाला यदि कोई होगा तो सिर्फ और सिर्फ वह महिला ही। ऐसे में उन दुराचारियों के द्वारा उसको जीवित छोड़ देने की सम्भावना न्यूनतम होने की आशंका है।

जनता जागरूक होकर सरकार को, प्रशासन को घेरने का काम करे। वह इसके लिए शासन-प्रशासन को विवश कर दे कि वह चुस्त-दुरुस्त होकर काम करे। यदि शासन-प्रशासन अपनी तरफ से चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था रखने के लिए तत्पर हो जाये तो परिणाम कुछ हद तक सुखद मिलने की सम्भावना है। यदि जागरूकता लोगों को सजग रहने के लिए दिखाई जाये तो महिलाओं को इस तरह से आये दिन दुराचारियों का शिकार न होना पड़े। यदि एकजुटता की स्थिति को अपराधियों में मन में खौफ पैदा करने के लिए दिखाई जाये तो पल प्रति पल ऐसी वीभत्स घटनाओं से हमें दो-चार नहीं होना पड़ेगा। दिल्ली कांड के बाद कानून बनाया गया मगर क्या हुआ उसका? इसी काण्ड के अपराधियों को अभी तक सजा नहीं दी जा सकी है। और तो और विपक्षी दल, वे चाहे कोई भी हों सब किसी न किसी बहाने सरकार पर हमला बोलने की मंशा बनाये रहते हैं। उनके कदमों से ऐसा लगता है जैसे उन्हें न महिलाओं से मतलब है, न बच्चियों से मतलब है, न ही अपराधियों से। वे सब महज अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के लिए आग तलाशते रहते हैं। यदि वाकई कानून का, किसी तरह की सजा का कोई डर-भय होता तो दिल्ली कांड के बाद भी देश के कई भागों में गैंगरेप के और मामले सामने नहीं आये होते।



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