मुद्दतों से जिन्हें सीने में दबाए हैं,
बदली ने बरस वो दर्द जगाए हैं।
देखने की, न दिखने की अदा उनकी,
और ख़ुद को चिलमन में छिपाए हैं।
ख़ामोश मुहब्बत जब भी उनके लबों पे सजी,
पूछने पर उसे वो ग़ज़ल बताए हैं।
बेधड़क लिख मेरा नाम मिटाते भी नहीं,
उँगली क़लम पानी को काग़ज़ बनाए हैं।
दिल मेरा तबसे दिल जैसा नहीं रहा,
जबसे उनके दिल से दिल लगाए हैं।
आँखों की शोख़ी, गालों की सुर्खी बताती है,
ख़ामोश लबों के पीछे अफ़साना छिपाए हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें