28 जून 2018

मगहर की टोपी और मुस्लिमों के कबीरदास


गुजरात के टोपी विवाद के बाद उत्तर प्रदेश में भी टोपी को विवाद बनाया जा रहा है. कबीरदास की पाँच सौवीं पुण्यतिथि के अवसर पर प्रधानमंत्री के मगहर भ्रमण को लेकर होने वाली तैयारियों एवं अन्य स्थितियों का जायजा लेने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वहाँ पहुँचे. मगहर में बनी कबीरदास की मजार में पहुँचने पर योगी जी को टोपी पहनाने की कोशिश की गई. योगी जी ने टोपी पहनने से इंकार कर दिया. इसके बाद भी उस टोपी को उनको पकड़ाने का प्रयास किया जाता रहा. मीडिया को जैसे इसी मौके की तलाश थी. अब उसके लिए देश भर से, उत्तर प्रदेश से सारे मुद्दे समाप्त हो गए हैं. सभी जगह एकमात्र मुद्दा योगी जी का टोपी न पहनना बना हुआ है.

मगहर में कबीरदास प्रतिमा 

मगहर में जिन कबीरदास जी के अंतिम संस्कार को लेकर हिन्दू-मुस्लिम विवाद हुआ था और कहते हैं कि इस विवाद के बाद कबीरदास जी के पार्थिव शव के स्थान पर फूल ही मिले, जिन्हें हिन्दू-मुस्लिम ने आपस में बाँट कर अपने-अपने धार्मिक तरीके से उनका अंतिम संस्कार किया. मगहर में आज भी दोनों धर्मों के प्रतीक एक स्थल पर बने हुए हैं. 27 एकड़ में फैले इस समाधि स्थल में कबीरदास की आदमकद प्रतिमा ने बरबस ध्यान आकर्षित करती है. एक तरफ मजार कबीर साहब की इबारत लिखी इमारत थी, जो अपने आपमें स्पष्ट संकेत दे रही थी इस्लामिक मजहबी होने का. इस इमारत के भीतर दो मजारें, एक कबीरदास की तथा दूसरी उनके बेटे की बताई जाती है. इसी इमारत के दूसरी तरफ एक छोटी सी दीवार पार करने पर बनी इमारत के प्रवेशद्वार पर सदगुरु कबीर समाधि का लिखा होना और भीतर कबीर की मूर्ति का होना उसके स्वतः ही हिन्दू धर्मावलम्बियों के होने के संकेत देती है. इस विस्तृत समाधि प्रांगण के एक तरफ पुस्तकालय, दूसरी तरफ कबीर साहित्य विक्रय हेतु उपलब्ध है.

लेखक ने स्वयं मगहर में इस स्थान का भ्रमण किया है. एक प्रांगण में दो धर्मों, मजहबों की इमारतों को अलग-अलग रूपों में देखने के बाद जहाँ एक तरफ ख़ुशी का एहसास हुआ वहीं मन में एक खटका सा भी लगा कि क्या मुसलमानों ने कबीर को वर्तमान में अपने मजहब का नहीं माना है? क्या मुसलमानों में कबीर-साहित्य के प्रति अनुराग नहीं है? हिन्दू धर्म के साथ-साथ इस्लाम की आलोचना करने वाले कबीर को क्या वर्तमान मुसलमानों ने विस्मृत कर दिया है? दोनों इमारतों की स्थिति, वहाँ आने वाले लोगों की स्थिति, दोनों तरफ की व्यवस्थाओं को देखकर, दोनों इमारतों में सेवाभाव से कार्य करने वालों को देखकर लगा कि आज के समय में कबीर भी धार्मिक विभेद का शिकार हो गए हैं. वो और बात रही होगी जबकि उनके अंतिम संस्कार के लिए आपस में हिन्दू-मुस्लिम में विवाद पैदा हुआ होगा किन्तु मगहर में स्थिति कुछ और ही दिखाई पड़ी. इस्लामिक इमारत के नीचे मजार के रूप में कबीर नितांत अकेलेपन से जूझते दिखाई दिए. जहाँ बस एक इमारत, एक सेवादार, नाममात्र को रौशनी और चंद हरे-भरे पेड़-पौधे उनके आसपास हैं. किसी समय में तत्कालीन सामाजिक विसंगतियों पर बेख़ौफ़ होकर बोलने वाले कबीर आज इस विभेद पर गहन ख़ामोशी ओढ़े लेटे दिखे. उस स्थल को और बेहतर बनाने, कबीरदास की स्वीकार्यता मुस्लिमों में भी बनाने, कबीरदास के साहित्य का प्रचार-प्रसार मुस्लिमों के बीच करने के बजाय वहाँ के सेवादार आने वाले को टोपी पहनाने को आतुर दिखे.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें