22 जून 2018

वाकई शो मस्ट गो ऑन


जिस तरह एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी तरह जीवन भी दो पहलुओं में सिमटा हुआ है. दुःख और सुख का, हँसी और आँसू का, ख़ुशी और गम का सह-सम्बन्ध जीवन में सहज ही देखने को मिलता है. जीवन जितना सहज, खुशनुमा, सुरमयी दिखाई देता है उतना ही क्रूर, जटिल, दुखद भी है. दुःख-सुख के एकसाथ आने या फिर क्रमशः आने की अनिश्चितता के चलते जीवन को एक रंगमंच सरीखा माना गया है. कुछ भी हो जाये, कुछ भी होता रहे मगर जीवन-चक्र चलता ही रहता है. दुखों का साया हो या फिर खुशियों का आँचल जीवन की गति रुकती नहीं है. शो मस्ट गो ऑन की संतोषमयी अवधारणा के चलते इन्सान तमाम सारी समस्याओं, परेशानियों के सामने आने के बाद भी सतत आगे बढ़ता रहता है. इसे जीवन गति के आगे बढ़ाते जाने की मजबूरी समझी जाए या फिर इन्सान की जिजीविषा, जिसके चलते वह दुखों, कष्टों के सामने बने रहने के बाद भी सामान्य ढंग से जीवन-पथ पर आगे बढ़ता जाता है. देखने में आया है कि सहज भाव से जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता ही रहता है. दुखों, कष्टों, समस्याओं, परेशानियों के होने के बाद भी मनुष्य इस कारण से आगे बढ़ता रहता है क्योंकि उसके सामने सुखों, खुशियों के आने की सम्भावना बनी होती है.


सोचने वाली बात यह है कि कोई इन्सान जब अपनी पूरी क्षमताओं से खुशियों का आनंद उठाने में लगा हो ठीक उसी पल दुखों का साया उसे घेर ले, तब वह जीवन को किस तरह जीता है? दुखों की घड़ी आने के बाद भी उसे खुशियों भरे पल का निर्वहन करना है तब उसी मानसिकता क्या, कैसी रहती होगी? यह स्थिति विषम से भी अधिक विषम समझ आती है. एक तरफ दुःख के कारण पसरा मातम और दूसरी तरफ खुशियों के पल का निर्वहन. निश्चित ही जीवन की इसी अनिश्चितता के चलते व्यक्ति यदि कमजोर बनता है तो दूसरी तरफ यही अनिश्चितता उसे ताकत प्रदान करती है. यही अनिश्चितता उसे अतीत को विस्मृत करके वर्तमान में जीने का सन्देश देती है. सैद्धांतिक रूप से ऐसा कहना सहज होता है कि अतीत को भुलाकर वर्तमान में जीना चाहिए. यह कहना भी सरल होता है कि शो मस्ट गो ऑन, यह समझाना भी आसान होता है कि दुखों को भुलाकर खुशियों का स्वागत करना चाहिए मगर ऐसा करना तब बहुत मुश्किल होता है जबकि दुःख किसी अपने के जाने का हो. अपने मन को समझा पाना तब और भी कठिन होता है जबकि जाने वाला व्यक्ति आपका जन्मदाता हो. ऐसा करना तब और भी कठिन हो जब अतीत महज चंद घंटे पुराना हो. ऐसी स्थिति के बाद भी यदि व्यक्ति और पूरा परिवार हँसते-मुस्कुराते हुए दरवाजे खड़ी खुशियों का स्वागत कर रहा हो, सामने खड़े उल्लासित पल पर अतीत की छाया नहीं पड़ने दे रहा है तब समझ आता है कि वाकई इन्सान की जिजीविषा ही जीवन को गति प्रदान करती है. भविष्य की सुखद संकल्पना इसी की कोख से जन्म लेती है.

ऐसा कहीं और नहीं जब खुद सहना पड़ता है, अपने परिवार के साथ होना देखना पड़ता है तब शब्द मुस्कुराते हुए कहते हैं शो मस्ट गो ऑन मगर दिल अन्दर ही अन्दर आँसू बहा रहा होता है. बहुत बड़ा दिल चाहिए खुशियों भरे पल का स्वागत करने के लिए जबकि चंद घंटे पहले आपने अपने परिजन को खोया हो, किसी ने पत्नी को, किसी ने माँ को, किसी ने दादी-नानी को, किसी ने किसी और रिश्ते को. अपने परिवार में इस विषम स्थिति को, सुख-दुःख को एकसाथ सामने खड़े देखा. बहरहाल, दुःख का आना, किसी का जाना प्राकृतिक सत्य है, जीवन का क्रम है जिसे न तो भुलाया जा सकता है न ही टाला जा सकता है. इसके बाद भी वर्तमान की खुशियों का स्वागत करने की जीवटता, सामने खड़े सुखद पल को आत्मसात करने की मानसिकता, दुखों के साए पर खुशियों का आँचल ओढ़ाने की जिजीविषा जिस प्रकार देखने को मिली वह अनुकरणीय है. ऐसी जिजीविषा के लिए, ऐसी अदम्य जीवटता के लिए, वर्तमान को सुखद बनाने के साहस के लिए अपने परिवार को नमन, अपने परिजनों को नमन.

1 टिप्पणी: