20 जून 2018

एक जंग तेजाब की खुली बिक्री के विरोध में

पिछले दिनों तेजाबी हमले की पीड़ित प्रियंका मिश्रा जिंदगी की लड़ाई हार गई. उस पर तेजाबी हमला किसी बाहरी ने नहीं बल्कि उसके पति ने उस समय किया जबकि वह सो रही थी. ऐसी एक-दो नहीं बल्कि अनेक घटनाएँ हमारे समाज में हैं जहाँ किसी महिला से, लड़की से बदला लेने की नीयत से उसके चेहरे पर तेजाब से हमला किया गया. कभी एकतरफा प्यार के इंकार के परिणामस्वरूप, कभी दो प्यार करने वालों से बदला लेने की मनोवृत्ति में, कभी किसी तरह की रंजिश के चलते इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. एसिड अटैक एक तरह की वह मनोवृत्ति या कहें कि मानसिक क्रूरता है जो पीड़ित पक्ष को मानसिक और शारीरिक रूप से हताहत करना चाहती है. इधर देखने में आया है कि विगत कुछ समय से तेजाबी हमलों के बढ़ने का मुख्य कारण बाजार में खुलेआम बिक्री के लिए तेजाब की उपलब्धता है.

बाजार में खुलेआम बिकता तेजाब और समाज में बदला लेने की नीयत से बढ़ती जा रही एसिड हमले की घटनाओं को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सार्थक निर्णय दिया गया. उच्चतम न्यायालय ने सन 2013 में एसिड अटैक को गंभीर अपराध मानते हुए सरकार, एसिड बेचनवाले दुकानदारों और एसिड अटैक पीड़ितों के लिए दिशा-निर्देश दिए थे. अदालत के अनुसार तेजाब केवल उन्हीं दुकानों पर बिक सकता है जिनको इसके लिए पंजीकृत किया गया हो. एसिड 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों द्वारा नहीं बेचा जाएगा और जो भी इसे खरीदने आएगा दुकानदार द्वारा उसके घर का पता, टेलीफोन नंबर तथा एसिड खरीदने का उद्देश्य सहित अन्य जानकारी लेनी होगी और इसका पूरा लेखा-जोखा लिखित में अपने पास रखना होगा. जो दुकानदार एसिड बेच रहे हैं उनके पास इसका कितना स्टॉक है इसकी जानकारी जिला प्रशासन को देनी होगी. अदालत ने यह भी प्रावधान किया है कि यदि किसी दुकानदार द्वारा इन नियमों की अनदेखी की जाती है तो पकड़ने जाने पर  उस पर पचास हजार रुपये जुर्माना लगाया जाएगा. ऐसी स्थिति के बाद भी तेजाब की बिक्री खुलेआम हो रही है.

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी प्रशासन द्वारा सख्ती नहीं बरती जा रही है. आज भी कहीं घरों में प्रयोग करने के नाम पर, कहीं बैटरी में उपयोग के नाम पर कहीं अन्य छोटे उद्योगों में उपयोग के नाम पर तेजाब की खुलेआम बिक्री हो रही है. यह एक तरह से सिरफिरे और आपराधिक मानसिकता वालों को सहज हथियार उपलब्ध करवाने जैसा ही है. बाजार में खुलेआम तेजाब की बिक्री को रोकने और जन-जागरूकता लाने के लिए तेजाबी हमले की पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल द्वारा वर्तमान में ‘स्टॉप सेल एसिड’ अभियान को चलाया जा रहा है. लक्ष्मी अग्रवाल वर्ष 2005 में महज पंद्रह वर्ष की उम्र में एसिड अटैक का शिकार हुई थी. लम्बे और दर्दनाक समय में इलाज के बाद अपने आपको कमजोर न पड़ने देने वाली लक्ष्मी ने देश भर में एसिड अटैक के विरुद्ध आवाज़ उठानी शुरू की. वर्तमान में उनके द्वारा चलाये जा रहे अभियान का मूल उद्देश्य खुलेआम एसिड की बिक्री को रुकवाना है. ये हमारे समाज की विद्रूपता है कि इस तरह की कई-कई घटनाओं को देखने-सुनने के बाद भी जनसामान्य इस बारे में जागरूक या सचेत नहीं है.

यह सही है कि आज बहुतेरे काम ऐसे हैं जिसके लिए तेजाब की आवश्यकता होती है. ऐसे में तेजाब को हमेशा-हमेशा के लिए बिक्री से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है मगर इसके साथ एक पहलू ये भी है कि यह अत्यंत घातक पदार्थ है. जब उच्चतम न्यायालय द्वारा इसकी बिक्री के लिए नियम बना दिए गए हैं तो प्रशासन द्वारा उन्हें सख्ती से लागू करने के कदम क्यों नहीं उठाये जा रहे हैं? उपयोगी कार्यों के अलावा तमाम सिरफिरे हैं जो तेजाब का दुरुपयोग करते हुए हमारी-आपकी बेटियों के भविष्य से, उनकी जान से खिलवाड़ करते हैं. न केवल प्रशासन को बल्कि नागरिकों को भी इसके लिए जागरूक होने की आवश्यकता है. हम लोग सजग हों और बिना ये सोचे कि इससे हमारा व्यक्तिगत क्या लेना-देना है हर उस व्यक्ति की, हर उस दुकानदार की शिकायत प्रशासन से करनी चाहिए जो खुलेआम तेजाब बेचने में लगा है. उन दुकानों को भी चिन्हित करने की आवश्यकता है जो गैर-पंजीकरण के तेजाब बेचने का काम कर रहे हैं.

सन 2016 में मुम्बई के प्रीति राठी तेजाब कांड में अदालत ने उस मामले को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट मानते हुए आरोपी को फांसी की सजा सुनाई थी. यह अपने आपमें पहला मामला था जबकि एसिड अटैक मामले में किसी आरोपी को फाँसी की सजा सुनाई गई हो. इसके बाद भी एसिड हमलों में कमी आती नहीं दिखी है. देखा जाये तो महज सजा ही एकमात्र समाधान नहीं है. इससे बेहतर समाज को जागरूक होने की जरूरत है. दरअसल यह इंसानी दिमाग में कहीं गहरे बैठी पशुता, क्रूरता है, जो कब, किस रूप में सामने आये कहा नहीं जा सकता. किसी भी इन्सान की मूल प्रवृत्ति हिंसक ही होती है जो  अनेकानेक सोपान तय करने के बाद भी दूर नहीं हुई है न ही कम हुई है. यही कारण है कि आज भी उसे प्रेम, स्नेह, भाईचारे, शांति का पाठ नियमित रूप से पढ़ाया जाता है. उसकी मानसिक क्रूरता का ही दुष्परिणाम है कि समाज में रोज ही किसी न किसी तरह की आपराधिक घटनाएँ सुनाई देती हैं. तेजाबी हमले का शिकार सिर्फ और सिर्फ बेटियाँ हो रही हैं. किसी मनचले के एकतरफा प्रेम का इंकार और तेजाबी हमला, किसी अन्य इंकार के सुनाई देने पर महिला के चहरे पर एसिड अटैक कर देना. एक पल को सिर्फ विचार करने पर ही पूरा दिमाग झनझना जाता है कि कैसे कॉलेज में प्रैक्टिकल के दौरान दो-चार बूँद एसिड उँगलियों पर गिर जाने भर से घंटों जलन मचती रहती थी. किस तरह घर में, किसी व्यवसाय के दौरान एसिड से कार्य करने के दौरान असावधानीवश शरीर पर छिटक कर गिरा तेजाब कभी-कभी शरीर के उस हिस्से में खाल का, मांस को जला दिया करता है. घंटों, दिनों के हिसाब से न केवल जलन बल्कि अप्रत्याशित दर्द बना रहता है. जब दो-चार बूंदे पूरे दिल-दिमाग को हिलाकर रख देती हैं तो सोचिये क्या स्थिति होती होगी जबकि कोई दिमागी क्रूर इन्सान किसी के पूरे चेहरे पर तेजाब फेंक देता है.

हम सभी को आज ही सख्त कदम उठाने की जरूरत है. यह समय की माँग भी है और हमारी बेटियों के लिए सुरक्षात्मक भी है. आइये, हम सब एकजुट होकर तेजाब रुपी खतरनाक पदार्थ की खुलेआम बिक्री के खिलाफ खड़े हों. इसके साथ ही उस मानसिकता के खिलाफ भी खड़े हों जो महज अपनी पसंदगी के नकारने पर एसिड अटैक जैसे खतरनाक कदम उठाकर हमारी बेटियों की जान से, भविष्य से खेल रही है. आखिर किसी एक व्यक्ति की दिमागी क्रूरता का शिकार हम अपनी बच्चियों को कब तक होने देंगे? आज नहीं तो कल हमें जागना ही होगा, एकजुट होना ही होगा. और जब ऐसा करना ही है तो फिर कल का इंतजार क्यों?



उक्त आलेख जनसंदेश टाइम्स, दिनांक 20-06-2018 के सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया है.

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