जीतने की कोई उम्र नहीं होती, सम्मान पाने की कोई उम्र नहीं होती. हाँ यदि इसके लिए कुछ होता है तो वो है काम करने का जज्बा. सम्मान, पुरस्कार, इज्जत, नाम आदि पाने के लिए काम पहली शर्त है और इस शर्त में भी कई तरह की अन्य शर्तें भी लागू होती हैं. उनमें आत्मानुशासन, आत्मबल, स्वाभिमान, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा आदि भी आवश्यक है. कुछ इसी के सहारे चरित्र का ही नहीं वरन व्यक्तित्व का भी निर्माण होता है. चरित्र-निर्माण का कार्य अथवा व्यक्तित्व-निर्माण का कार्य कोई एक दिन का नहीं, एक पल का नहीं, एक कार्य का नहीं, एक व्यक्ति का नहीं वरन कई-कई पलों की, कई-कई कामों की, कई-कई निगाहों की परीक्षण प्रक्रिया से गुजरने के बाद सामने आने वाली स्थिति है. इस प्रक्रिया से गुजरे बिना कोई भी अपने आपका विकास नहीं कर पाता है. अक्सर देखने में आता है कि सामाजिक क्षेत्र में कार्य कर रहे लोग आशानुरूप परिणाम न मिलने के कारण निराश होने लगते हैं. ऐसे लोगों में अपने कार्य के प्रति तुरंत ही परिणाम पाने की लालसा छिपी होती है. ये सही है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा कहीं न कहीं अपने नाम के प्रति गंभीरता दिखाई देती है. और ऐसा होना भी चाहिए. यदि कोई व्यक्ति अपने नाम के प्रति, अपनी इज्जत के प्रति, अपने सम्मान के प्रति सचेत नहीं है तो संभव है कि वह सामाजिक हित में काम उतनी मेहनत या ईमानदारी से न करे. यहाँ एक बात इसके ऊपर भी लागू होती है कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को अपने कार्य के प्रति ईमानदारी बरतने की आवश्यकता है. यदि वह अपने काम क प्रति, अपनी जिम्मेवारी के प्रति ईमानदार नहीं है तो संभव है कि वह अपनी जिम्मेवारी से दगाबाजी कर रहा हो. ऐसा करना कहीं न कहीं समाज के विरूद्ध कार्य करना ही कहा जायेगा. ऐसे में फिर काहे का सम्मान, काहे का नाम.
आज से नहीं बल्कि लगभग डेढ़-दो दशकों से अपने कार्य के प्रति समर्पण भाव लिए, समाजहित में खुद को चौबीस घंटे समर्पित किये, काम के प्रति एक जुनूनी हद तक जाकर वास्तविक काम करने वाले बहुत कम लोग देखने को मिलते हैं. बहुतेरे तो प्रचार की चकाचौंध में सिमट जाते हैं और अपने काम से ज्यादा अपने नाम के प्रचार में लग जाते हैं. इन सबसे बहुत अलग दिव्या ने न केवल खुद को सामाजिक कार्यों में लगा रखा है बल्कि जमीनी स्तर पर खड़ा कर रखा है. देश में तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं में दिव्या उन सबके बीच खड़ी मिली, जिन्हें उसकी जरूरत थी. बाढ़ हो, भूकंप हो, आगजनी हो या फिर किसी और तरह की दुर्घटना दिव्या सब जगह बिना कुछ सोचे-बिचारे, बिना किसी आदेश की प्रतीक्षा के खड़ी मिली. न केवल वह वहां उपस्थित रही वरन खुद को काम के प्रति समर्पित करती रही. उसका काम हर बार बिना किसी अपेक्षा के आगे बढ़ता रहा. बिना किसी अपेक्षा के वह लगातार आगे चलती रही. उसके कार्य की निस्वार्थ भावना को जानने-समझने का दिन आखिर आ ही गया. उन सभी लोगों को, जो अपने काम के मूल्यांकन न होने की भावना से निराश होने लगते हैं, एक बात जान लेनी चाहिए कि ये समाज सबका मूल्यांकन करता है. आज नहीं तो कल, सभी को उसके कार्यों का प्रतिफल मिलता ही मिलता है. दिव्या को भी उसके कार्य का सुफल मिला.
गुजरात में यूनिसेफ के साथ सलाहकार के रूप में काम करने वाली दिव्या विगत कई वर्षों से जमीनी काम चुपचाप करने में लगी हुई है. विगत दो-तीन वर्षों से उसके द्वारा Volunteer Indians नाम से एक सार्थक प्रयास भी आरम्भ किया गया है. (फेसबुक पेज के लिए यहाँ क्लिक करें) कई वर्षों के समर्पित कार्य का प्रतिफल आज ये मिला कि उसे गांधीनगर (गुजरात) में UDGAM Women's Achiever's Award से सम्मानित किया गया. दिव्या को बधाई. साथ में उन सभी को भी बधाई जो बिना किसी प्रचार पाने की भावना के सत्यनिष्ठा से, पूरी ईमानदारी से अपना काम करने में लगे हैं. आज नहीं तो कल वे भी दिव्या की तरह प्रकाशित होंगे. सभी को शुभकामनायें.
आज से नहीं बल्कि लगभग डेढ़-दो दशकों से अपने कार्य के प्रति समर्पण भाव लिए, समाजहित में खुद को चौबीस घंटे समर्पित किये, काम के प्रति एक जुनूनी हद तक जाकर वास्तविक काम करने वाले बहुत कम लोग देखने को मिलते हैं. बहुतेरे तो प्रचार की चकाचौंध में सिमट जाते हैं और अपने काम से ज्यादा अपने नाम के प्रचार में लग जाते हैं. इन सबसे बहुत अलग दिव्या ने न केवल खुद को सामाजिक कार्यों में लगा रखा है बल्कि जमीनी स्तर पर खड़ा कर रखा है. देश में तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं में दिव्या उन सबके बीच खड़ी मिली, जिन्हें उसकी जरूरत थी. बाढ़ हो, भूकंप हो, आगजनी हो या फिर किसी और तरह की दुर्घटना दिव्या सब जगह बिना कुछ सोचे-बिचारे, बिना किसी आदेश की प्रतीक्षा के खड़ी मिली. न केवल वह वहां उपस्थित रही वरन खुद को काम के प्रति समर्पित करती रही. उसका काम हर बार बिना किसी अपेक्षा के आगे बढ़ता रहा. बिना किसी अपेक्षा के वह लगातार आगे चलती रही. उसके कार्य की निस्वार्थ भावना को जानने-समझने का दिन आखिर आ ही गया. उन सभी लोगों को, जो अपने काम के मूल्यांकन न होने की भावना से निराश होने लगते हैं, एक बात जान लेनी चाहिए कि ये समाज सबका मूल्यांकन करता है. आज नहीं तो कल, सभी को उसके कार्यों का प्रतिफल मिलता ही मिलता है. दिव्या को भी उसके कार्य का सुफल मिला.
गुजरात में यूनिसेफ के साथ सलाहकार के रूप में काम करने वाली दिव्या विगत कई वर्षों से जमीनी काम चुपचाप करने में लगी हुई है. विगत दो-तीन वर्षों से उसके द्वारा Volunteer Indians नाम से एक सार्थक प्रयास भी आरम्भ किया गया है. (फेसबुक पेज के लिए यहाँ क्लिक करें) कई वर्षों के समर्पित कार्य का प्रतिफल आज ये मिला कि उसे गांधीनगर (गुजरात) में UDGAM Women's Achiever's Award से सम्मानित किया गया. दिव्या को बधाई. साथ में उन सभी को भी बधाई जो बिना किसी प्रचार पाने की भावना के सत्यनिष्ठा से, पूरी ईमानदारी से अपना काम करने में लगे हैं. आज नहीं तो कल वे भी दिव्या की तरह प्रकाशित होंगे. सभी को शुभकामनायें.
सहमत हूं । दिव्याजी को बधाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत खुशी हुई दिव्या। अभी तुम्हें बहुत आगे जाना है।
जवाब देंहटाएंAwesome ... Happy for you Divya
जवाब देंहटाएंWow, happy to hear this great news! Congratulations Divya!
जवाब देंहटाएंExcellent Achievements. God bless you.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं बहिन जी को
जवाब देंहटाएंMay God bless u wd mny mor sch recognition...u hv to go a long way...blessings!!!
जवाब देंहटाएंAlka...
May God bless u wd mny mor sch recognition...u hv to go a long way...blessings!!!
जवाब देंहटाएंAlka...
Divya ...we all love you.. It is a just beginning ..
जवाब देंहटाएंYou deserve the best
Wish you a meaningful life ahead
Fondest regards
Congratulations!!
जवाब देंहटाएंCongrats! keep it up go ahead
जवाब देंहटाएं