09 मार्च 2018

हमारी नजर में ये सिर्फ महिलायें नहीं


कल और आज महिला दिवस को लेकर कई कार्यक्रमों में सहभागिता रही. बिना किसी अपनी सहभागिता के बस उपस्थिति ही बनाये रखी. इसके पीछे कारण उन कार्यक्रमों का बजाय सामाजिक होने के प्रशासनिक हो जाना रहा. प्रशासनिक कार्यक्रमों का एक तरीके का आयोजन रहता है. उनका जो मुखिया हो उसकी चापलूसी करते रहो, उसके बारे में गुणगान करते रहो. इसके बदले में मिलता ये है कि जो आयोजन करता है उसके साथ के कुछ लोगों को सम्मानित कर दिया जाता है. कुछ विशेष लोगों संग सेल्फी निकलवा ली जाती है. उन्हीं लोगों के बारे में कह-सुन लिया जाता है. उन्हीं लोगों को मंच पर बोलने बुला लिया जाता है. बहरहाल, प्रशासन के अलावा भी अन्य कई जगहों पर अपनी सक्रिय सहभागिता की. आत्मिक रूप से इसलिए प्रसन्नता हुई क्योंकि ऐसे लोग संसाधनों से विहीन हैं मगर कुछ करने की इच्छा रखते हैं. हमारे साथ भी कुछ ऐसा था. वर्ष 1997-98 में जब हमने कन्या भ्रूण हत्या निवारण कार्यक्रम जिले में शुरू किया था तो जिला प्रशासन के पास भी इससे सम्बंधित कोई सामग्री नहीं थी. चिकित्साधिकारी भी इससे शून्य थे. ऐसे में हमने अपने कुछ मित्रों संग अँधेरे में तीर मारना शुरू किया. इधर-उधर से सामग्री जुटाई और लोगों को बेटियों के बारे माँ जागरूक करना शुरू किया. तब हमारे पास भी संसाधन नहीं थे. हमने भी उसी समय परास्नातक परीक्षा पास की थी. बेरोजगार होने का बिल्ला माथे पर चिपकाये समाजसेवा में निकल पड़े थे. बेटियों को बचाने निकल पड़े थे. इसीलिए आज भी जब कोई ऐसा व्यक्ति जो संसाधन-रहित होता है बेटियों के बारे में कोई भी कार्यक्रम करता है, करना चाहता है, हम उसे पूरा सहयोग करते हैं.


इन जमीनी कार्यक्रमों के अलावा सोशल मीडिया पर भी कार्यक्रम चल रहे हैं. इधर-उधर से कॉपी-पेस्ट की हुई फोटो, विचारों आदि को दे दनादन इधर से उधर भेजा जा रहा है. इसी भेजा-भिजाई में सब अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ले रहे हैं. सामाजिक कार्यों से जिनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं, वे सम्मानित हो रहे हैं. उनकी पोस्ट पर हजारों-हजार की संख्या में लाइक, कमेन्ट मिल रहे हैं. जिनका जमीनी काम है वे संसाधनों से रहित होने के कारण कहीं कोने में कार्यक्रम करने में लगे हैं. बहरहाल, इस बीच कई-कई लोगों ने हमसे कहा कि आज भी आपने कुछ नहीं लिखा. (इधर लोगों की मानसिकता बदलने की नीयत से विगत एक माह से अधिक समय से हम सोशल मीडिया या कहें कि फेसबुक से गायब हैं) सही भी है आज हमने कुछ लिखा भी नहीं, महिला दिवस पर. आखिर समझ ही नहीं आया कि क्या लिखना? महिलाओं का झंडा उठाये लोगों को मानना नहीं है कि उनके विकास में पुरुषों का योगदान महिलाओं से ज्यादा है. जिन लोगों ने स्त्री-विमर्श का इतिहास पढ़ रखा होगा उनको भली-भांति पता होगा कि वैश्विक स्तर पर स्त्री-सशक्तिकरण सम्बन्धी घटित चार बड़ी घटनाओं में से तीन का आरम्भ पुरुषों द्वारा किया गया. आज स्थिति ये है कि स्त्री को सफलता मिलती है तो वह उसके अपने निजी प्रयास से और असफलता मिलती है तो पुरुष द्वारा अवरोध पैदा करने के कारण.

आज जिस तरह से विभेद को समाप्त करने के लिए विभेद की नीति अपनाई जा रही है वह समाज में स्त्री और पुरुष के बीच खाई पैदा ही नहीं करेगी वरन और बढ़ाएगी. बहरहाल, आज हमने इसलिए कुछ नहीं लिखा क्योंकि समझ नहीं आया कि किसके लिए लिखें? क्या उन अईया या नानी के लिए बधाई सन्देश लिखें जिन्होंने हमारे इस धरती में आने का आधार रचा? उनके द्वारा जन्मी संतति ही हमारे जन्म का आधार बनी. वे दोनों लोग उस स्थिति तक पूज्य हैं, जो स्थिति भगवान से भी ऊपर है हमारे लिए. भगवान को क्या शुभकामना, क्या बधाई. इसके बाद क्या माँ को बधाई दें? उस माँ को जो हमारी नज़रों में मात्र महिला नहीं बल्कि किसी देवी से कम नहीं. पिता के साथ उसके साहचर्य का परिणाम है कि हम इस दुनिया में हैं. इसलिए उस देवी को मात्र महिला कैसे मान लिया जाये? उस माँ के अलावा यदि किसी ने आत्मीयता से अपने गले लगाया है तो वो है हमारी बहिन. उस बहिन ने हमें सिखाया कि कैसे दुनिया की बाकी महिलाओं का सम्मान किया जा सकता है, उसकी राखी की कैसे रक्षा की जा सकती है. कैसे वह बहिन मित्र भी बन जाती है, माँ भी बन जाती है, हमराज़ भी बन जाती है. उस बहिन को मात्र महिला कैसे समझ लें, जिसने महिलाओं के विविध आयामों को समझाया? इसके बाद जीवन में आई महिला मित्र. ऐसी दोस्तों को कैसे सिर्फ महिला मान लें. उन्होंने हमारे प्रति समाज के विश्वास को सशक्त किया कि अकेले में भी हमारे साथ वे सुरक्षित हैं. ऐसी दोस्तों को कैसे सिर्फ महिलाओं के खांचे में खड़ा कर दें, जो अपने अस्तित्व से ज्यादा हमारे अस्तित्व को स्वीकारने में सक्रिय हों.


इसके अलावा जिस महिला के साथ अग्नि के सामने सात फेरे लिए, जो इन्सान अपना सबकुछ छोड़कर हमारे साथ न केवल जीवन को आगे बढ़ाने आया हो वरन हमारे परिवार का सदस्य बनकर आया हो. जिस इन्सान ने पत्नी के रूप में न केवल हमारे अस्तित्व को स्वीकार किया बल्कि हमारे अस्तित्व को अपना अस्तित्व बनाया. इसके बाद भी अपने व्यक्तित्व का विकास करने के साथ-साथ हमारे विकास में भी सहायक बनी, उसे मात्र महिला कैसे मान लें? इन सबके अलावा हमारी बेटियों ने भी हमारे गौरव को आगे बढ़ाया है. जिस कार्य के लिए हमने पूरे समाज के बीच अलख जगाने का काम किया वही बेटियों के रूप में हमारे परिवार का अंग बनी हुई हैं. उन बेटियों का प्यार, उनकी शरारतें, उनका दुलार, उनका हँसना, उनकी जिद, उनकी पल-पल की गतिविधियाँ हम सबके लिए जीवन का आधार बनी. ऐसी बेटियों को मात्र महिलाओं में कैसे शामिल कर दें?

आखिर किसे दें हम महिला दिवस की शुभकामनायें? क्योंकि सम्पूर्ण समाज की महिलाएं किसी न किसी रूप में किसी की माँ, किसी की बहिन, किसी की दोस्त, किसी की पत्नी, किसी की बेटी है. ऐसे में सभी सुखी रहें, प्रसन्न रहें, बस इतनी कामना है.


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