30 मार्च 2018

मानदेय प्रवक्ताओं के भविष्य से खिलवाड़ उचित नहीं


वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार के आने के बाद उत्तर प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों में कार्यरत सैकड़ों मानदेय शिक्षकों को अपने विनियमितीकरण को लेकर एक आशा की किरण दिखाई दी थी। इसके पीछे केंद्र सरकार का बेरोजगारी दूर करने का और युवाओं को अधिक से अधिक अवसर देने का संकल्प दिखाई दे रहा था। यद्यपि केंद्र की भाजपा सरकार के किसी भी कदम से पूर्व उत्तर प्रदेश की सपा सरकार द्वारा इन मानदेय शिक्षकों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने के उद्देश्य से समय-समय पर विनियमित करने के कदम उठाये जाते रहे तथापि वे पूर्णता की ओर कभी न जा सके। प्रदेश की सपा सरकार ने विधानसभा 2017 के चुनाव को देखते हुए एक बार फिर इन मानदेय शिक्षकों को लुभाने के लिए कागजी कार्यवाही आरम्भ की। प्रदेश के मानदेय शिक्षक एक बार पहले भी सपा सरकार के इस तरह के कदम का शिकार हो चुके थे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा वर्ष 2006 में ठीक चुनाव से पूर्व उठाया गया था। उसके बाद सपा की जगह बसपा सरकार प्रदेश में बनी और मानदेय प्रवक्ताओं के विनियमितीकरण की प्रक्रिया सार्थक रूप न ले सकी।


अबकी मानदेय प्रवक्ता किसी तरह के भुलावे का शिकार नहीं बनना चाहते थे। सपा सरकार की मंशा को भांपते हुए केंद्र की भाजपा सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आस्था व्यक्त करते हुए मानदेय प्रवक्ताओं ने एकजुट होकर भाजपा को वोट देते हुए प्रदेश में प्रचंड बहुमत से भाजपा की सरकार बनवाई। सरकार बनते ही सभी मानदेय शिक्षकों के चेहरों पर भी स्थायी होने की खुशी झलकने लगी। इस ख़ुशी का आरम्भिक चरण दिखाई भी दिया जबकि प्रदेश में पूर्व में चलती आ रही प्रक्रिया पर वर्तमान प्रदेश सरकार ने अपनी रुचि दिखाई और लगभग 150 मानदेय प्रवक्ताओं को विनियमित किया गया। सरकार के इस कदम से शेष बचे लगभग सात सौ से अधिक मानदेय शिक्षकों में अपने विनियमित किये जाने की आशा जगी। सरकार की ओर से चलने वाली प्रक्रिया को उस समय मानदेय शिक्षकों में उस समय और भी आशा का संचार कर गई जबकि गत वर्ष सितम्बर माह में शासन की तरफ से आनन-फानन समस्त अशासकीय महाविद्यालयों से समस्त मानदेय प्रवक्ताओं के सम्बन्ध में समस्त जानकारी माँगी गई।

इधर मानदेय प्रवक्ता सितम्बर 2017 से लेकर मार्च 2018 तक अपने विनियमित किये जाने सम्बन्धी पत्र का, शासनादेश का इंतजार ही करते रहे और उधर प्रदेश में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का गठन हो गया। आयोग के गठित होते ही माननीय न्यायालय के आदेश  का पालन होने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी गई। न्यायालय में लंबित पूर्व विज्ञापन संख्या 37 की नियुक्तियों की प्रक्रिया आरम्भ करते हुए आयोग ने आधा दर्जन से अधिक विषयों के अंतिम परिणाम घोषित कर दिए। आयोग का यह कदम भले ही माननीय न्यायालय के आदेश पर उठा हो मगर इसने प्रदेश भर के मानदेय प्रवक्ताओं में भय का, निराशा का माहौल बना दिया। इसका कारण यह है कि इन नियुक्तियों से मानदेय प्रवक्ता सीधे-सीधे प्रभावित हो रहे हैं।

अब इन सैकड़ों मानदेय शिक्षकों को अपना भविष्य अंधकार में दिखाई देने लगा है और ये शिक्षक केंद्र की मोदी एवं प्रदेश की योगी सरकार से अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है। उनको सरकार द्वारा अपने प्रति किसी तरह का सार्थक, सकारात्मक सहयोग मिलता नहीं दिख रहा है। मानदेय शिक्षकों के सामने जितनी बड़ी समस्या उनके बाहर निकल जाने की है उससे बड़ी समस्या उनके दोबारा किसी कार्य के आरम्भ करने की है। उत्तर प्रदेश में मानदेय प्रवक्ताओं की भर्ती वर्ष 1998-99 से होना आरम्भ हुई थी। तब से अपनी युवावस्था के लगभग डेढ़-दो दशक तक अशासकीय महाविद्यालयों में पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से अपनी सेवाएं दे चुके ये मानदेय शिक्षक उम्र के उस पड़ाव पर पहुँच चुके हैं कि इनके पास अब रोजगार का कोई दूसरा साधन भी नहीं बचा है। इसके अलावा इन मानदेय शिक्षकों में कई ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जो अपने परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र सहारा हैं। यहाँ इन मानदेय प्रवक्ताओं के भविष्य के अंधकारमय होने के साथ-साथ उनके पाल्यों के भी भविष्य का नकारात्मक रूप से प्रभावित होना दिखाई पड़ता है। मानदेय शिक्षकों की वर्तमान नौकरी चले जाने के बाद उनके बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होने का खतरा है।
ऐसे में सवाल उठता है कि कोई भी सरकार एक व्यक्ति को लाभान्वित करने के साथ-साथ किसी दूसरे व्यक्ति को नुकसान कैसे पहुँचा सकती है जबकि किसी भी सरकार का नैतिक और प्राथमिक उद्देश्य अपने नागरिकों के हितों की, भविष्य की सुरक्षा करना होता है। आयोग द्वारा घोषित किये जा रहे अंतिम परिणामों और उसके सापेक्ष होने वाली नियुक्तियों के सम्बन्ध में प्रदेश सरकार चाहे तो मानदेय शिक्षकों के भविष्य को अंधकारमय होने से रोक सकती है । विगत कई वर्षों से आयोग द्वारा प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों में नियुक्तियाँ नहीं की जा सकी हैं, इससे प्रदेश भर में सैकड़ों पद रिक्त हैं। यदि माननीय न्यायालय के आदेशानुसार पूर्व विज्ञापनों की नियुक्तियां उन्हीं मूल पदों पर करने की अनिवार्यता है तो ऐसी नियुक्तियों से प्रभावित होने वाले मानदेय शिक्षकों को अन्यत्र पड़े रिक्त पदों पर भी समायोजित किया जा सकता है। ऐसी विषम परिस्थिति में किसी भी सरकार की नैतिक जिम्मेवारी बनती है कि वह अपने मजबूर नागरिकों के साथ खड़ी हो।

ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश के मानदेय प्रवक्ता विनियमित नहीं किये गए हैं और ऐसा भी नहीं है कि शेष बचे मानदेय प्रवक्ताओं के विनियमितीकरण से सरकार पर राजस्व का बोझ बढ़ेगा। दरअसल समस्त मानदेय प्रवक्ता पूर्व निर्धारित पदों पर कार्य कर रहे हैं और वेतन संदाय से मानदेय प्राप्त कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में पूर्व में आई तमाम आपत्तियों का निस्तारण भी किया जा चुका है। चूँकि पिछले वर्ष ही एक सैकड़ा से अधिक मानदेय शिक्षकों को इसका लाभ दिया जा चुका है, ऐसे में शेष बचे मानदेय शिक्षकों को भी सहजता के साथ विनियमित कर उनके सिर पर लटकती तलवार को सदा के लिए दूर किया जा सकता है। वैसे यहाँ समझने वाली बात ये है कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा सरकार होने के बाद उनके बीच आपसी किसी तरह के विभेद की कोई सम्भावना भी नहीं है। जहाँ केंद्र और प्रदेश सरकार युवाओं के लिए लगातार नई-नई, भविष्योन्मुख योजनाओं को लाने की बात करती हैं तब इन मानदेय शिक्षकों के विनियमित किये जाने में इतनी हीला-हवाली क्यों हो रही है, ये समझ से परे है। वैसे भी जिस देश में हजारों की संख्या में अन्नदाता परेशान घूम रहा हो, आत्महत्या कर रहा हो वहाँ बच्चों का भविष्य बनाने वाले शिक्षकों के बारे में कौन सोचेगा? ये इस देश की विडम्बना है कि यहाँ अपनी इच्छा से अब मृत्यु को तो चुनना तो संभव हो गया है किन्तु अपनी इच्छानुसार जीना संभव नहीं रह गया है।  अंधकारमय भविष्य को लेकर सशंकित सैकड़ों मानदेय प्रवक्ता पूरी तरह से निराश होकर अब खुद को निकाले जाने का इंतजार कर रहे हैं क्योंकि शासन स्तर से, सरकार के स्तर से उनके विनियमितीकरण का कोई आश्वासन अभी तक नहीं मिला है ।

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