01 मार्च 2018

इंतज़ार रहता था सबको मिलने वाले टाइटल का

हॉस्टल में हर होली पर लोगों को टाइटल देने का एक काम शुरू किया गया. इसमें साथियों को तो लपेटा ही जाता, शिक्षक भी लपेट लिए जाते. पूरे कॉलेज को मालूम रहता कि तये काम सिर्फ़ हॉस्टल वालों का है मगर आपस में कोई मनमुटाव न होता. आख़िर हम लोग भी शालीनता बनाए रखते थे. होली पर टाइटल निकालने का काम हम इंटरमीडिएट के दौरान भी करते रहे हैं. तब स्कूल में मास्टर साहब के द्वारा पिटाई का डर रहता था सो बड़े पैमाने पर वो काम न करके क्लास स्तर पर निपटा लिया जाता. आपस के कुछ मित्रों के बीच टाइटल का आदान-प्रदान हो जाता और फिर धीरे-धीरे सब उसका प्रसार पूरे स्कूल में कर देते. किसी को कोई शक भी न होता कि ये काम किसका किया है. इंटर कॉलेज से निकल कर स्नातक की पढ़ाई के दौरान जब हॉस्टल में रहना हुआ तब होली के नजदीक आने पर इस टाइटल निकालने के कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया. हॉस्टल का माहौल समझा, बड़े भाइयों की सहमति ली, साथियों का साथ लिया और बस जुट गए टाइटल बनाने में.


उस समय आज के जैसे तकनीक हम लोगों के पास नहीं थी. बाज़ार जाकर चार्ट पेपर, कई रंगों की स्केच खरीदी गईं. हॉस्टल में बहुत गुपचुप तरीके से इस काम को अंजाम दिया गया ताकि होली के ठीक पहले जब छुट्टी हो, तभी सबको सरप्राइज मिले. कॉलेज में कई सारे लड़के-लड़कियाँ ऐसे होते थे जो अपने आपको बहुत ज्यादा हीरो-हीरोइन समझते थे तो उनका टाइटल बनाया ही नहीं जाता. इसका साफ़ सा संकेत ये देना होता था कि उनको कोई जानता ही नहीं कॉलेज में तभी उनका टाइटल नहीं बना. कुछ छात्र-छात्राओं के और प्राध्यापकों के बड़े शालीन से टाइटल बनाये जाते तो कुछ के उनकी हरकतों के हिसाब से. होली पर जब पहली बार टाइटल निकाले गए तो सभी ने उनको बहुत पसंद किया था. उसके बाद होली का एक-वर्षीय इंतजार करना लोगों को रास न आया तो दीपावली पर टाइटल लगाने का काम शुरू किया गया. बिना किसी आरोप-प्रत्यारोप के सहजता से सब उनका स्वागत करते.



दो-तीन बार की मेहनत के बाद लगा कि सब सहजता से इसे ले रहे हैं तो एक साल जोड़े के साथ टाइटल बनाये गए. लड़कों और लड़कियों के जोड़े बनाये गए और प्राध्यापकों के भी जोड़े बनाये गए. कुछ प्राध्यापकों के किस्से महाविद्यालय में बड़े चर्चा में रहे, उनको भी शामिल किया गया. जोड़े से बने टाइटल ने तो जैसे एकदम से धमाल मचा दिया. लड़कों-लड़कियों में तो उसकी प्रतिक्रिया ऐसे आई जैसे उनकी शादी ही करवा दी गई हो. कुछ लड़के अपने साथियों के बीच रोब गाँठने लगे. उन बेचारों, बेचारियों को भी, बड़ी मायूसी हाथ लगी जिनका जोड़ा न बनाया गया. हँसी-मजाक के इसी क्रम में किसी ने बड़ा ज़ालिम सा बयान भी जारी किया था कि ‘फलां लड़की की तरफ कोई आँख उठाकर न देखे, अब वो तुम सबकी भाभी है. यदि किसी ने बात न मानी तो इतने कारतूस चलेंगे कि खोखे बीनने वाले लखपति हो जायेंगे.’ हम लोग बहुत लम्बे समय तक इस कथन के सहारे उन साहब की मौज लेते रहे. अब जबकि कॉलेज छोड़े दो दशक से अधिक का समय बीत गया है, कभी-कभी मन कर जाता है टाइटल बनाने का. अब तो नगर के कुछ लोगों के, राजनीति के कुछ लोगों के, अपने कॉलेज के कुछ लोगों के टाइटल खुद ही बना लिया करते हैं, खुद ही पढ़ लिया करते हैं, खुद ही मजा ले लिया करते हैं. 

आज होलिका दहन है. इसी अवसर पर कविता पढ़िए. बाक़ी कुछ समय बाद...
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चहक उठते हैं त्योहार,
जब अपने साथ होते हैं.
महक जाते हैं मौसम,
जब अपने साथ होते हैं.

देखो तो दिल की धड़कन,
साँसें भी कहाँ अपनी हैं,
मुरझाए भी खिल जाते हैं,
जब अपने साथ होते हैं.

मुस्कुराते रहो सदा खुलकर,
ये जीवन क्षणभंगुर है.
मुस्कुरा देते हैं आँसू भी,
जब अपने साथ होते हैं.

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*होली की माँगलिक शुभकामनाएँ*

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