28 फ़रवरी 2018

समाजोपयोगी कार्य से अपने सदा रहेंगे दिल में


किसी समय हॉस्टल में सर्वाधिक प्रिय रहे और हॉस्टल छोड़ने के बाद भी बराबर अपने साथियों, अपने बड़े-छोटे भाइयों में लोकप्रिय रहे श्री सोमेन्द्र सिंह को आज भी कोई भूल नहीं पाया है. हो सकता है कि आज उनके साथ पढ़े, साथ खेले, साथ शरारतें करने वाले उनके साथी सहजता से न पहचान पायें मगर जैसे ही जिसको भी कुक्कू शब्द सुनाई देता है उसकी स्मृति में तुरंत ही एक मनमोहक सी, सुन्दर सी, अपनी सी छवि बन जाती है. एक नजर में सबको मोहित कर लेने वाले, एक आवाज़ पर सबके लिए खड़े हो जाने वाले, एक बार खुद से जोड़कर कभी न छोड़ने वाले कुक्कू भैया अचानक ही बिना किसी से कुछ कहे-सुने वर्ष 2016 में हम सबको छोड़कर चले गए. वर्ष 2016 का फरवरी माह का अंतिम दिन. कुक्कू भैया अस्वस्थ अवश्य चल रहे थे किन्तु ये भान किसी को नहीं था कि ऐसी बुरी खबर सुनने को मिलेगी. बहरहाल, जो लिखा था वो हुआ. सबके साथ अपने आपको जोड़ लेने वाले कुक्कू भैया एकदम वर्तमान से अतीत बन गए. कुक्कू भैया को उनके हॉस्टल के साथियों ने, भाइयों ने अतीत नहीं होने दिया. कभी न कभी, कहीं न कहीं उनके साथ के भाइयों से जब भी मुलाकात होती तो कुक्कू भैया जाने कितने-कितने संस्मरणों के सहारे सबके साथ आकर खड़े हो जाते. अतीत को वर्तमान में उतार लाने की इसी एकजुटता और संवेदनशीलता ने हर बार कुक्कू भैया की अनुपस्थिति को शिद्दत से महसूस किया. भाइयों की आँखों को नम किया. आवाज़ में लरजन पैदा की. 



आज फिर वही दिन आया. फरवरी का अंतिम दिन, 28 फरवरी. पूरे दो साल होने को आये मगर ऐसा लगता जैसे कल की ही बात हो. दो साल की समयावधि बहुत लम्बी नहीं होती किसी दुःख को कम करने के लिए. कम से कम परिजनों के लिए तो बिलकुल भी नहीं होती. इसके बाद भी कुक्कू भैया के परिजनों ने आँसू बहाने के बजाय कुछ लोगों के आँसू पोंछने का विचार बनाया. 28 फरवरी यद्यपि समूचे परिवार के लिए कष्टप्रद दिन है मगर इसके बाद भी कुक्कू भैया की धर्मपत्नी शशि भाभी ने और उनके बेटे सोमेश ने अपने दुःख को अपने में समेट समाज के जरूरतमंद लोगों के दुःख को दूर करने वाला कार्य किया. सबकी सहायता के लिए दिन-रात एक कर देने वाले कुक्कू भैया की दूसरी पुण्यतिथि पर उनकी धर्मपत्नी शशि सिंह भाभी और बेटे ने रक्तदान शिविर का विचार साकार किया. जनपद जालौन में कार्य कर रही कई सामाजिक संस्थाओं से संपर्क करने के बाद उनका विचार मूर्त रूप में सामने आया.




कुक्कू भैया अपने सामने जिस स्कूल ऑक्सफोर्ड एकेडमी की स्थापना कर गए थे, उसके तत्त्वावधान में रक्तदान शिविर का आयोजन इंद्रा पैलेस नामक उस जगह हुआ जिसे कुक्कू भैया ने अपनी दादी के नाम पर सजाया-संवारा था. मेडिकल कॉलेज, झाँसी की टीम उरई उपस्थित हुई और कुक्कू भैया की पुण्यतिथि में बनाई गई पुनीत योजना में सहयोगी बनी. उरई शहर के लोग कुक्कू भैया के नाम से बहुत गहरे से परिचित रहे हैं. उनकी अनुपस्थिति के दो वर्षों ने भी उनकी छवि को धूमिल नहीं होने दिया है. यही कारण है जब नागरिकों को उनकी पुण्यतिथि पर रक्तदान शिविर आयोजन की जानकारी हुई तो न केवल कुक्कू भैया और उनके परिवार से जुड़े परिवार वहां उपस्थित हुए वरन जनपद के प्रशासनिक अधिकारी सहित अनेक वर्तमान और पूर्व प्रतिनिधि भी उपस्थित हुए. रक्तदान शिविर में कुल 95 लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया. इसमें से 47 लोगों ने रक्तदान किया. इस रक्तदान की विशेष बात यह रही कि सुबह ये खबर जब हॉस्टल से सम्बंधित अपने ग्रुप में लगाई तो छोटे भाई ललित तोमर कुक्कू भैया को समर्पित करते हुए ग्वालियर में रक्तदान किया. ये हम सभी हॉस्टल भाइयों की संवेदनशीलता और एक अदृश्य डोर से बंधे होने का परिचायक ही है.




कुक्कू भैया के स्मृति दिवस को यादगार बनाकर उनके परिवार ने समाज को एक सीख दी कि यदि हमें अपने परिजनों को बराबर अपने बीच महसूस करना है, उनकी उपस्थिति का आभास सबको करवाना है तो उनके जाने के बाद भी उनको सामाजिक रूप से याद करते रहना चाहिए. एक सार्थक कदम के साथ, समाजोपयोगी कदम के साथ अपने परिजनों को याद करना उनको अपने दिल में ही नहीं वरन सभी के दिलों में बराबर जीवित बनाये रखता है. ऐसा करके कुक्कू भैया के परिवार ने एक नई मिसाल कायम करते हुए नए मानक की स्थापना की है, जो भविष्य में बहुत से लोगों को राह दिखायेगा, समाजोपयोगी कार्य करने को प्रेरित करेगा. 

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