कह सके जो न वो कहने को ग़ज़ल लाया हूँ.
चाँदनी रोती रही बढ़ते रहे अँधियारे,
चाँद चमकाने को चंद्रकिरण लाया हूँ.
वो चुराते हैं नज़र मेरी नज़र से देखो,
मिलके जो झुक न सके ऐसी नज़र लाया हूँ.
ख़्वाब में मिलते हैं और चले हैं जाते,
जाने की ज़िद न करें वो दीवनापन लाया हूँ.
आँख में उनकी छवि इसलिए लाए न नमी,
अश्कों को दिल में छिपाने का हुनर लाया हूँ.
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कुमारेन्द्र किशोरीमहेन्द्र
28-01-2018
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इस ब्लॉग की 1150वीं पोस्ट
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