10 फ़रवरी 2018

संस्कार हस्तांतरित हो रहे अगली पीढ़ी में


आज अम्मा जी का जन्मदिन है. जन्मदिन मनाने की परम्परा हम बच्चों की कभी नहीं रही उसी तरह की आदत सी बनी हुई है, ये और बात है कि आधुनिकता के चलते अब हम अपने बच्चों के जन्मदिन मनाने लगे हैं. हाँ, हमारे बच्चे ही हमारा जन्मदिन मनाने लगे हैं. हमारे अम्मा-पिताजी ने कभी हमारा जन्मदिन नहीं मनाया और न ही कभी हमने जिद करी अपना जन्मदिन मनाने की. जन्मदिन पर अपने अम्मा-पिताजी के पैर छूकर, उनका आशीर्वाद लेकर कब, कैसे चालीस साल पार कर गए, पता ही नहीं चला. आज की पीढ़ी की तरह न कभी कोई पार्टी, न कभी कोई जश्न, न कभी कोई केक, न कभी कोई होटल. इधर समाज की तथाकथित मान्यताओं को सिर-माथे लगाया. बच्चों का जन्मदिन मनाया. केक भी कटवाया गया, पार्टी भी की गई, लोगों को भी बुलाया गया. खैर.... आज अवसर था अम्मा के जन्मदिन का. केक तो नहीं कटा, न ही कटवाया जाना था क्योंकि हमें पता था कि अम्मा को खुद पसंद नहीं आएगा. इसके बाद भी जन्मदिन का उल्लास दिखा, हर्ष दिखा.





सुबह-सुबह बातचीत में अम्मा के जन्मदिन की यादें ताजा हुईं. शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के बाद सभी लोग अपने-अपने काम में लग गए. काम निपटते-निपटते शाम हो गई. बिटिया रानी अपनी दोस्त के घर से वापस आई. ख़ुशी उसके चेहरे पर दिख रही थी और हाथों में एक लिफाफा. उसने कान में आकर फुसफुसाया, आप अपना कैमरा सही कर लो, हम दादी के लिए गिफ्ट लाये हैं. हमने गिफ्ट की बात सोची भी नहीं थी. दिमाग में इतना था कि शाम को बाजार से वापसी करते समय मिठाई वगैरह लेते आयेंगे और अम्मा का जन्मदिन मना लिया जायेगा. उनकी ख़ुशी के लिए हमें मालूम था कि यही बहुत बड़ा कदम होगा. पिताजी के जाने के बाद हरसंभव कोशिश हम भाइयों और सभी बहुओं ने की है कि अम्मा को दुखी न होने दिया जाये, उनको ख़ुशी कितनी दे सके, इसका पता नहीं. कुछ ऐसा ही आज भी था. हमारी सोच से एक कदम आगे जाकर हमारी बिटिया रानी अपनी दादी के लिए गिफ्ट तक की व्यवस्था कर लाई. कहते हैं न कि असल से ज्यादा पसंद सूद होता है, ठीक उसी तरह सूद को भी अपना महाजन ज्यादा पसंद आया. जब बिटिया परी ने आकर कान में फुसफुसाया कि आप अपना कैमरा तैयार रखिये, हम दादी के लिए सरप्राइज गिफ्ट लाये हैं लगा कि हमारा पालन-पोषण, हमारे संस्कार, हमारी शिक्षा गलत दिशा में नहीं जा रहे. यदि नातिन को दादी के जन्मदिन की फ़िक्र है, उनका जन्मदिन मनाये जाने की आतुरता है, उल्लास है इसका अर्थ है कि उसके भीतर पारिवारिक संस्कार का बीजारोपण हो चुका है.





आनन-फानन अपना कैमरा रेडी किया, मोबाइल कैमरे को भी मोर्चे पर तैनात किया. किसी भी तरह से बिटिया की कोशिशों पर पानी नहीं फिरना चाहिए. हम ज़िन्दगी भर अपनी अम्मा का जन्मदिन किसी भी तरह से नहीं मना सके मगर यदि अगली पीढ़ी रिश्तों की अहमियत जानना, समझना चाहती है तो उसे महज एक कैमरे की कीमत पर रोका नहीं जायेगा. हम अपना कैमरा लेकर तैयार, हमारी पत्नी निशा मोबाइल पर तैयार और बिटिया अपनी दीदी चंचल के साथ गिफ्ट देने के लिए तैयार. गिफ्ट दिया गया, आँख बंद कर. गिफ्ट पैक खोला गया, छोटा सा पैकेट. दादी के साथ हम सब हैरान कि इसमें होगा क्या. और जब रैपर हटाया गया तो सबकी हँसी निकल गई. अम्मा भी खूब हँसी. परी ने उनके लिए विशेष रूप से लिया था ताश खेलने का साधन. चूँकि अम्मा खाली समय का उपयोग ताश खेल का करती हैं और उसे देखते हुए परी ने गोल्ड प्लेटेड ताश अपनी दादी के लिए गिफ्ट में लिए. दादी को मिठाई खिलाई गई, उनके साथ फोटो भी खिंचवाई गई. फोटो खींचते, खिंचवाते समय एक बात दिमाग में बार-बार क्लिक कर रही थी कि अपनी बिटिया की परवरिश में कहीं कमी नहीं हुई है. आखिर वो भी पारिवारिकता को, रिश्तों को अहमियत दे रही है.








कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें