27 फ़रवरी 2018

विद्यालय में खुलेआम नींद लेते, धुआँ उड़ाते शिक्षक महाशय


कुछ दिनों पहले समाचार-पत्र पलटते हुए एक खबर पर निगाह ठहर गई. आमतौर पर खबरों पर सरसरी निगाह डालकर आगे बढ़ते जाते हैं. यदि कोई खबर महत्त्वपूर्ण लगी तब तो उसे पूरा पढ़ा जाता है अन्यथा शीर्षकों से परिचय करते हुए सम्पादकीय आलेखों को समाप्त कर कॉलेज के लिए निकल लेते हैं. उस दिन जिस खबर पर हमारी निगाह ठहरी उसमें किसी तरह का ग्लैमर नहीं था, किसी हीरो-हीरोइन से जुड़ी नहीं थी किन्तु वह खबर हमारे नौनिहालों के भविष्य से जुड़ी हुई थी. इस कारण उस खबर को पढ़े बिना न रहा गया. खबर के शीर्षक ‘गुरु जी नींद में हैं, उठते ही धूम्रपान’ के साथ-साथ लगी दो फोटो अपने आप ध्यान खींच रही थीं. चूँकि समाचार-पत्र का वो सम्बंधित पृष्ठ उरई-जालौन से सम्बंधित था इस कारण ये तो तय था कि खबर जनपद जालौन की है, पर कहाँ, किस क्षेत्र की है इसे जानने के लिए समाचार पढ़ा गया.


समाचार से ज्ञात हुआ कि चित्र में दिख रहे महाशय शिक्षक हैं एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय में. यह विद्यालय उरई के पास स्थित नरछा गाँव में स्थित है. समाचार पढ़ने के बाद तमाम प्रतिक्रियाएं दिमाग में उठीं. बहुत सी बातों ने अपना सिर उठाया. उन सबमें सबसे बड़ी बात जो हमें इस खबर में नजर आई वो यह कि सम्बंधित शिक्षक का नाम कहीं भी नहीं दिया गया है जबकि उसी विद्यालय की प्रधानाचार्या का नाम समाचार में दो बार प्रकाशित किया गया है. यहाँ समझने वाली बात है कि जिस प्रकार से समाचार-पत्र हिंदुस्तान की खबर में प्रकाशित है कि विद्यालय की प्रधानाचार्या ने जिलाधिकारी को सम्बंधित शिक्षक के खिलाफ शिकायती-पत्र दिया था. ऐसे में समाचार-पत्र की, सम्बंधित संवाददाता की जिम्मेवारी बनती थी कि उनके द्वारा यदि दोषी शिक्षक का नाम प्रकाशित नहीं किया गया तो प्रधानाचार्या का नाम भी प्रकाशित नहीं करना था. और यदि जब नाम प्रकाशित करके समाचार को वैधानिकता प्रदान करने की मंशा थी तो शिक्षक का भी नाम सामने आना चाहिए था, जिससे कि जनपदवासियों को उस शिक्षक का नाम भी पता चल सकता.




बहरहाल, आज के हमारे आलेख की चिंता इसके साथ-साथ ये भी है कि जब ऐसे शिक्षक हमारे विद्यालयों में मौजूद हैं तो विकास की संभावनाएं शून्य दिखाई देती हैं. समाचार पढ़ने के बाद पहला काम उस खबर को सबके बीच प्रसारित-प्रचारित करने का किया ताकि उस शिक्षक के बारे में लोग जान सकें. सोशल मीडिया के विविध मंचों पर जैसे ही खबर का प्रकाशन-प्रसारण हुआ वैसे ही कई मित्रों ने हमसे संपर्क किया. हमारे बहुत से मित्र शिक्षा विभाग से सम्बद्ध हैं जिनके कारण वहाँ की खबरें सहजता से मिलती रहती हैं. जरा सी देर में सिगरेट-बीड़ी सुलगाते शिक्षक की जन्मकुंडली पास में आ गई, साथ में कुछ फोटो भी प्राप्त हुईं. अनुरुद्ध पटेल नामक इस शिक्षक के सम्बन्ध राजनैतिक स्तर पर हैं. जनपद के एक रसूखदार नेता जी के बहुत खास लोगों के प्रिय लोगों में इस शिक्षक का नाम शामिल है, जिसके चलते विभागीय स्तर पर लोग इसके सामने आने से बचते हैं. एक मामले की जाँच में जाँच टीम को भी खाली हाथ वापस आना पड़ा क्योंकि मामला किसी छात्रा से जुड़ा होने के साथ-साथ सम्बंधित रसूखदार शिक्षक से भी जुड़ा हुआ था. इसके अलावा वर्तमान में जातिगत रूप से कुछ जनप्रतिनिधि भी इनकी जाति से निर्वाचित हुए हैं, जिसके चलते इनका अहंकार और सिर चढ़ कर बोल रहा है. विद्यालय आना, सम्बंधित कर्मचारियों, अध्यापकों से अभद्रता करना, गाली-गलौज वाली भाषा-शैली का इस्तेमाल करना, खुलेआम बच्चों के सामने धूम्रपान करना, पढ़ने-पढ़ाने वाली बेंचों पर नींद लेना इनके रोजमर्रा के कार्यों में शामिल है.




सोचा जा सकता है कि यदि ऐसे शिक्षक हमारे शिक्षा के मंदिरों में बैठे होंगे तो कैसे शिक्षा का विकास होगा? कैसे बच्चों का भविष्य सुधरेगा? शिक्षा विभाग को समय-समय पर सम्बंधित गांवों के लोगों से, बच्चों से, अभिभावकों से, तमाम विद्यालयों के शिक्षकों आदि से वहां के शिक्षकों-कर्मियों के बारे में जानकारी एकत्रित करते रहना चाहिए. किसी भी तरह से मिलती अनियमितता के बारे में विभाग को अपने स्तर से जाँच भी करते रहनी चाहिए. स्पष्ट है, जब तक ऐसे किसी भी शिक्षक, कर्मचारी पर सख्त से सख्त कार्यवाही नहीं कि जाती तब तक न केवल शिक्षा विभाग में बल्कि ऐसे किसी भी विभाग में सुधार संभव नहीं.

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में 31 वर्ष अध्यापन करने के दौरान मेरे कई साथी अपने क्लास में भी शराब के नशे में धुत होकर आते थे. एक गुरु जी तो अपने हर शोध-छात्र से गुरु दक्षिणा में बोतल ही मांगते थे. मेरे कार्यकाल में तीन गुरु जी तो शराब पी-पी कर अकाल मृत्यु को भी प्राप्त हो गए थे. और रही धूम्रपान की बात तो ऐसा न करने वाले हम जैसे लोग तो पोंगा-पंडित माने जाते थे. इस तरह के व्यसनों का चलन गुरुजन और विद्यार्थियों में समान रूप से व्याप्त है.

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  3. - यह कैसा विद्यालय है जिसमें कि फोटो में एक भी बच्चा नजर नहीं आ रहा है........लगता है कि कहानी कुछ और है

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