भारतीय समाज में शिगूफों का कोई अंत
नहीं है
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किसी समय समाचार पत्रों के पत्र कॉलम में, पाठकों की प्रतिक्रियाओं आदि में खूब लिखा था. उसी समय अमर उजाला समाचार पत्र ने अपने पत्र कॉलम में 'खास ख़त' नाम से प्रतिदिन एक पत्र का प्रकाशन करना आरम्भ किया था. हमारे पत्र भी 'खास ख़त' में खूब प्रकाशित हुए.
ये सारे 'खास ख़त' पुस्तक रूप में प्रकाशित भी करवाए थे. अब इन्हें ब्लॉग के माध्यम से आप सबके सामने पुनः प्रकाशित किया जा रहा है. ये 'खास ख़त' यहाँ क्लिक करके पढ़े जा सकते हैं.
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भारतीय समाज में शिगूफों का कोई अंत
नहीं है। कब, कौन, कहाँ पर शिगूफा खड़ा कर दे कहा नहीं जा सकता है। इस मामले में
हमारे देश के विशिष्टजन, फ़िल्मी हस्तियाँ और नेतागण काफी उन्नति पर हैं। राजनैतिक
पटल पर भी कभी-कभार नए-नए शोशे देखने को मिलते हैं। आजकल तो जैसे इन्हीं का ज़माना
आ गया है। हर पल यही अंदेशा लगा रहता है कि कब क्या हो जाये।
हमारे प्रसिद्द मौनी बाबा उर्फ़ पूर्व
प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने भी अँधेरे में तीर मारा था या कहें कि एक ऐसा
शिगूफा छोड़ा था जो कि यदि सत्य हो जाता तो संभव था कि बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं की एक
अच्छी खासी जमात तिहाड़ जेल में मौजूद मिलती। अपने आपको स्वच्छ, निर्भीक, निष्पक्ष
छवि का कहलाने के प्रयास में राव साहब ने हवाला कांड के हवाले एक से एक महान
नेताओं को कर दिया था। सीबीआई जाँच हुई, समितियां बनी, गवाह व सबूत तैयार किये गए
और फिर हुई अदालती कार्यवाही। लगा कि चलो इस बार तो सफ़ेद लकदक कुर्तों के भीतर झांकती
कालिख को अदालत जनता के सामने लाएगी। बहुत लम्बे अरसे से देश और जनता का लहू चूसते
नेताओं को भी जेल की राह देखनी पड़ेगी, पर क्या हुआ।
अदालत लगी, समस्त कार्यवाही की गई।
दोषी, आरोपी सभी बुलाये गए पर नतीजा गुब्बारे की निकली हवा सा फिस्स। एक-एक करके
सभी बरी होने लगे, बाइज्जत बरी। समझ न आया इसे क्या कहा जाये। सीबीआई ने अवश्य
अपनी कार्यप्रणाली पर प्रश्नसूचक चिन्ह लगवा लिया। आख़िरकार क्या आवश्यकता आन पड़ी
थी अदालत की शरण में जाने की वो भी बिना किसी पर्याप्त सबूत के। यह सही भी है कि
बिना किसी सबूत के हमारा कानून सजा नहीं देता और किसी भी डायरी में लिखी दो लाइनें
भी किसी के खिलाफ सबूत नहीं बन सकती हैं। खैर जो शिगूफा राव साहब ने छोड़ा वो तो
बिना किसी भी आवाज़ के गीले पटाखे सा चल गया। एक-एक करके सारे नेता छूट रहे हैं और
छूटेंगे भी पर क्या इससे सीबीआई या स्वयं अदालत संदेह के घेरे में नहीं आई है? या
फिर वह पुनः किसी शिगूफे के चलते सबूतों को जुटाने चल पड़ेगी?
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13 जून 1997 – अमर उजाला समाचार पत्र
किसी समय समाचार पत्रों के पत्र कॉलम में, पाठकों की प्रतिक्रियाओं आदि में खूब लिखा था. उसी समय अमर उजाला समाचार पत्र ने अपने पत्र कॉलम में 'खास ख़त' नाम से प्रतिदिन एक पत्र का प्रकाशन करना आरम्भ किया था. हमारे पत्र भी 'खास ख़त' में खूब प्रकाशित हुए.
ये सारे 'खास ख़त' पुस्तक रूप में प्रकाशित भी करवाए थे. अब इन्हें ब्लॉग के माध्यम से आप सबके सामने पुनः प्रकाशित किया जा रहा है. ये 'खास ख़त' यहाँ क्लिक करके पढ़े जा सकते हैं.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ललिता पवार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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