16 फ़रवरी 2018

बुलंद हौसलों की कहानी


जीवन सिर्फ सुविधाओं का, सहजता का, आराम का नाम नहीं है. जीवन है तो सुख के साथ दुःख भी हैं, आराम के साथ कष्ट भी है, मुस्कान के साथ आँसू भी हैं. ये और बात है कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में किस भाग को प्रमुखता देकर उसी के अनुसार अपनी जिंदगी का व्यतीत करता है. जीवन में आने वाले पल के सुखमय या दुखमय होने पर भले ही इन्सान का पूर्ण नियंत्रण न हो किन्तु इस पर अवश्य नियंत्रण है कि उन परिस्थितियों को किस तरह निकाला जाये, उन स्थितियों से कैसे निपटा जाये. ये सही है कि जीवन में आने वाले सुख के, खुशियों के पल अचानक से बहुत जल्दी समाप्त होते समझ आते हैं और कष्टों के, दुखों के दिन बहुत देर से बीतते हुए मालूम पड़ते हैं. देखा जाये तो यह भी अपनी जीवन-शैली के बिताने के तौर-तरीकों पर निर्भर करता है. यदि इन्सान अपनी धारणा बना ले कि उसका जीवन सिर्फ और सिर्फ कष्टप्रद है तो उसका एक-एक पल सिर्फ और सिर्फ कष्ट में बीतता है. इसके अलावा यदि वह मान ले कि किसी भी पल को सिर्फ हँसते-हँसते बिताना है तो उस पल में छिपे हजारों-हजार कष्ट भी एक पल में गायब हो जाते हैं. दुनिया में एक-दो नहीं वरन अनेकानेक ऐसे उदाहरण हैं जिनमें किसी भी व्यक्ति ने कष्टों को दरकिनार करते हुए अपनी जिंदगी को सुखमय ही नहीं बनाया वरन दूसरों के लिए खुद को उदाहरण भी बनाया है.


दो-चार दिन पहले समाचार-पत्र पलटते हुए दो अलग-अलग खबरों पर नजर गई. दोनों ख़बरों का मूल एक था, भले ही वे दोनों खबरें अलग-अलग देशों की क्यों न रही हों. उन दोनों खबरों ने न केवल आकर्षित किया बल्कि उन दोनों व्यक्तियों के प्रति सम्मान भी जगाया जो अपनी शारीरिक अक्षमता को कहीं दूर हाशिये पर लगाकर बराबर सफलता की कहानी लिखने में लगे हैं. ऐसा नहीं है कि ये दो व्यक्ति अपने आपमें पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को ही अपनी मजबूती बनाकर खुद के लिए नई कहानी लिखी और न ही ये दोनों अंतिम व्यक्ति होंगे जो ऐसा कर रहे हैं. बहुत से व्यक्ति ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को सक्षमता में बदल कर नए-नए मानक गढ़े. ऐसे व्यक्तियों को समाज में आदर्श के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है क्योंकि आज समाज से लगातार आदर्शों की कमी होती जा रही है. देखने में आता है कि जरा सी शारीरिक कमजोरी के आते ही बहुतेरे इन्सान खुद को इस कदर कमजोर साबित करने में लग जाते हैं जैसे संसार के सबसे ज्यादा कष्ट उसी एक के पास हैं. इस तरह के बहुतेरे लोग खुद को जीवन-यापन में भी अक्षम मानते हुए भीख मांगने का काम करते देखे जाते हैं. आज जरूरत है कि लोगों के सामने ऐसे लोगों की कहानी लाई जाये जो शारीरिक अक्षमता के बाद भी अनेकानेक कठिनाइयों को मात देते हुए अपने आपको स्थापित किये हैं. अपनी ज़िदगी को हँसते-खेलते बिता रहे हैं.


इन दो व्यक्तियों के बारे में कोई अलबेला सा ऐसा नहीं लगा जो पहली बार हुआ हो. बस कई बार होता है कि कोई जानकारी, कोई खबर मन को एकदम से छू जाती है, कुछ ऐसा ही इन दोनों खबरों के साथ हुआ और बस उन दो व्यक्तियों को आपके सामने लाने का मन भी हो आया. ज्यादा कुछ न कहते हुए उन दोनों खबरों की कतरन आपके सामने है.


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उक्त खबरें दैनिक भास्कर, ग्वालियर संस्करण में 12-13 फरवरी 2018 को प्रकाशित हुईं 

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