
सड़क किनारे कूड़ा-करकट,
खाली बोतलें, पॉलीथीन, रैपर आदि समेटते बच्चे किसी एक शहर में नहीं वरन लगभग सभी
शहरों में मिल जायेंगे. बच्चों का कूड़ा बीनने के साथ-साथ भीख माँगने में, अनेक
जगहों पर काम करने में लगा देखा जा सकता है. ये समस्या आज़ादी के बाद से ही एक
प्रमुख समस्या के रूप में सामने रही है; विभिन्न सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर
अनेक कार्य किये हैं, विभिन्न योजनायें संचालित की हैं किन्तु उनका यथोचित लाभ
बच्चों को नहीं मिल सका है. पढने-लिखने, खेलने-कूदने की उम्र में ये बच्चे इस तरह
की गतिविधियों में लिप्त रह कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने को मजबूर
रहते हैं. अच्छे कपड़े, अच्छा भोजन, अच्छे खिलौने इन बच्चों के लिए स्वप्न समान ही
रहते हैं. इन स्थितियों पर आज पुनः इस कारण विचार किये जाने, गंभीरता से विचार
किये जाने की जरूरत है क्योंकि दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित और बड़ा पुरस्कार-सम्मान ‘नोबल’
भारतीय समाजसेवी को साझा रूप में मिला है. ये साझेदारी का बँटवारा बच्चों के प्रति
जिम्मेवारी को और भी बढ़ा देता है क्योंकि भारतीय समाजसेवी की साझीदार पाकिस्तानी
बच्ची है जिसको बच्चियों की शिक्षा के लिए संघर्ष करने वाला बताया गया है. नोबल
पुरस्कार से सम्मानित होने वाले भारतीय समाजसेवी के पास तो अस्सी हजार बच्चों को
बाल मजदूरी से मुक्त करवाने का आँकड़ा है, इसके बाद भी ऐसे हालात बने हुए हैं जो
दर्शाते हैं कि बच्चे अभी भी कूड़ा-करकट में घिरे हैं, मजदूरी के शिकार हैं,
कामकाजी जाल में फँसे हैं.
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चित्रलेखक द्वारा स्वयं निकाले गए हैं... पहला चित्र उरई (जालौन) उ०प्र०, सितम्बर २०१४ माह का है तथा दूसरा (दो बच्चों वाला) चित्र छतरपुर, म०प्र०, अक्टूबर २०१४ माह का है....
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