भाई-बहिन के
प्रेम का पर्व ‘रक्षाबंधन’; बहिनों द्वारा भाइयों की कलाई में एक रेशमी धागे का
बाँधा जाना और भाइयों द्वारा उनकी रक्षा का वचन देना, परम्परा के रूप में अनवरत
जारी है. समय बदलता रहा पर इस पावन पर्व की पावनता नहीं बदली और न ही बदली इसमें
छिपी भावना, ये और बात है कि आज के दौर में इंसान ही बदल गया है. आज जिस तरह का
वातावरण समाज में चारों तरफ दिख रहा है, उसमें इस बात का प्रचार किया जाने लगा है
कि “मैं राखी नहीं बांधूंगी” जबकि जरूरत बहिनों के भाइयों के विरुद्ध नहीं वरन
अपराधियों के विरुद्ध खड़ा करने की है. ऐसा लग रहा है कि या तो राखी के कच्चे धागों
की शक्ति क्षीण पड़ी है, जिसमें भाइयों के स्वाभिमान को जगाने की सामर्थ्य नहीं रही
या फिर भाइयों के आत्मविश्वास में गिरावट आई है जो महज औपचारिकता के चलते बहिनों
की रक्षा का वचन देते हैं किन्तु वास्तविकता में आगे नहीं आ पाते हैं. अवश्य ही
कुछ ऐसा है जो समूची पावनता को नष्ट, क्षतिग्रस्त सा करता चला जा रहा है. अब
रिश्ते में दूर की बहिन, मुँहबोली बहिन को बचाना तो दूर, विकृत मानसिकता के कई
भाइयों के चलते सगी बहिन की इज्जत तक सुरक्षित नहीं रह गई है. आधुनिकता की चकाचौंध
में सामाजिक मूल्यों में गिरावट इस कदर हावी है कि रिश्तों की गरिमा, मर्यादा का
ख्याल ही नहीं किया जा रहा है.
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ये बात सभी
को याद रखनी होगी कि रक्षाबंधन महज एक पर्व नहीं है; कलाई में सजती राखी महज एक
धागा नहीं है बल्कि इसमें भावनाओं की पावनता है; विश्वास की अभिव्यक्ति है. भले ही
किसी कालखंड में बहिनों की रक्षा का वचन भाई लेते थे किन्तु वर्तमान परिदृश्य में
भाइयों को भी अपने वचन को आधुनिक बनाना होगा. अब उन्हें न केवल अपनी बहिनों की वरन
दूसरों की बहिन की रक्षा करने का भी वचन देना होगा. यदि सभी भाई अपनी बहिन के
साथ-साथ दूसरों की बहिन की रक्षा का संकल्प ले लें तो किसी भी अपराधी की हिम्मत
नहीं कि वो लड़कियों की तरफ बुरी नजर से देख सके. भाइयों को राखी बंधवाने के बाद इस
बात का भी वचन अपनी बहिन को देना होगा कि उनके द्वारा सभी महिलाओं को आदर-सम्मान
की दृष्टि से देखा जायेगा. इसी के साथ एक वचन उन्हें बहिनों को आत्मविश्वासी बनाने
के लिए, संकट के समय धैर्य न खोने, मुकाबला करने के लिए भी लेना होगा. भाइयों को न
केवल रक्षा करने का वरन अपनी बहिनों को आत्मनिर्भर बनाने, जागरूक बनाने, उन्हें
संगठित करने, हौसला देने, शक्तिशाली बनाने, अपराधियों से लड़ने की क्षमता विकसित
करने आदि का भी कार्य करना होगा.
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वर्तमान में
ये भी एक समस्या है कि समाज ने घर की महिलाओं को पुरुषों पर निर्भर बना दिया है. छोटे
से छोटे काम के लिए और बड़े से बड़े काम के लिए बहुसंख्यक महिलाएं पुरुषों का मुँह
ताकती रहती हैं. घर की बेटी के घर से लेकर बाहर तक के, कॉलेज से लेकर ऑफिस तक के
काम, बाजार-हाट से लेकर सहेलियों के यहाँ तक जाने तक का काम घर के लड़कों पर निर्भर
करता है. ऐसे में लड़कियों में, महिलाओं में खुद-ब-खुद असुरक्षा की भावना घर कर
जाती है. इस निर्भरता से बाहर निकलने का प्रयास स्वयं लड़कियों को करना होगा. रक्षाबंधन
को आज महज पर्व के रूप में नहीं वरन अपराध के विरुद्ध खड़े होने के रूप में,
अपराधियों को पस्त करने के रूप में, नैतिकता के रूप में, कर्तव्यबोध के रूप में,
आत्मनिर्भरता के रूप में, जागरूकता के रूप में मनाये जाने की आवश्यकता है. राखी न
बाँधने से यदि महिलाओं के साथ होती हिंसा, अत्याचार, अनाचार, शारीरिक शोषण,
बलात्कार, हत्या आदि बंद हो रहे हों तो आइये सभी भाई भी संकल्प लें कि वे राखी
नहीं बंधवाएँगे. रक्षाबंधन पर्व न मनाना पलायन का संकेत दे रहा है न कि सशक्तता से
खड़े होने का, अपराध से लड़ने का.
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चित्र गूगल छवियों से साभार
4 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 10/08/2014 को "घरौंदों का पता" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1701 पर.
बहुत सुंदर ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें
बढ़िया प्रस्तुति।
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अब उन्हें न केवल अपनी बहिनों की वरन दूसरों की बहिन की रक्षा करने का भी वचन देना होगा. यदि सभी भाई अपनी बहिन के साथ-साथ दूसरों की बहिन की रक्षा का संकल्प ले लें तो किसी भी अपराधी की हिम्मत नहीं कि वो लड़कियों की तरफ बुरी नजर से देख सके. भाइयों को राखी बंधवाने के बाद इस बात का भी वचन अपनी बहिन को देना होगा कि उनके द्वारा सभी महिलाओं को आदर-सम्मान की दृष्टि से देखा जायेगा. इसी के साथ एक वचन उन्हें बहिनों को आत्मविश्वासी बनाने के लिए, संकट के समय धैर्य न खोने, मुकाबला करने के लिए भी लेना होगा. भाइयों को न केवल रक्षा करने का वरन अपनी बहिनों को आत्मनिर्भर बनाने, जागरूक बनाने, उन्हें संगठित करने, हौसला देने, शक्तिशाली बनाने, अपराधियों से लड़ने की क्षमता विकसित करने आदि का भी कार्य करना होगा. -
सत्य और सामयिक भी।
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