21 अगस्त 2014

बच्चों के साथ घुलमिल कर तो देखें



कई बार अबोल की स्थिति होती है; सब कुछ सहज होते हुए भी असहज सा लगता है; कहने की स्थिति के बाद भी कुछ न कहने का मन करता है; भीड़ में होने के बाद भी अकेलापन महसूस होता है; बहुत-बहुत व्यस्त होने के बाद भी खालीपन का एहसास बना रहता है. कुछ लोगों की नजर में ये मानसिक अवसाद की स्थिति होती है तो कुछ लोग इसे नैराश्य का भाव कहते हैं. कई लोगों के अनुसार ये विभ्रम की स्थिति है तो कुछ लोगों के मुताबिक किसी बीमारी के लक्षण. कुछ भी हो मगर ऐसा होना सही नहीं है और विडंबना देखिये कि हमारी आज के युवा, किशोरवय और बचपन की मानसिकता कुछ ऐसी ही दिखती है. सभी अलग-अलग तरह की अपेक्षाओं के बोझ से दबे अपनी उम्र से अधिक बड़े बनने-दिखने का प्रयास कर रहे हैं.
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इस स्थिति को गौर किया जाना चाहिए, आज माता-पिता और बच्चों के बीच मित्रवत व्यवहार देखने को मिल रहा है. अभिभावकों में अपने बच्चों की समस्याओं-परेशानियों को जानने-समझने की मानसिकता भी दिख रही है. इसके बाद भी बच्चों में हताशा का भाव है, परिवार से भागने का भाव है, अपने माता-पिता के प्रति उदासीनता का भाव है, उनके प्रति बेरुखी का भाव है. शायद यही कारण है कि बहुत बड़ी संख्या में ये बच्चे अपराध, आत्महत्या, नशे आदि की गिरफ्त में आते जा रहे हैं. हमें जागना होगा, माता-पिता को समझना होगा कि मंहगी-मंहगी बाइक देकर, मोटा-मोटा जेबखर्च देकर, कुछ देर बैठ कर उनसे मित्रवत बात करके बच्चों की मनोदशा को समझा नहीं जा सकता है.  बच्चों के साथ भरपूर समय गुजारने की जरूरत है, उनको ये एहसास करवाने की जरूरत है कि वे उनसे दूर नहीं हैं. हम सभी को समझना होगा कि बच्चे भविष्य की धरोहर हैं और उन्हीं के कांधों पर समाज निर्माण की जिम्मेवारी है. 
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आइये हम अपनी व्यस्तता में से कुछ समय निकालें और अपने युवाओं के, किशोरों के, बच्चों के दिल में बैठने का, उनके साथ घुलने-मिलने का कार्य करें. आप भी बच्चे बनकर देखिये, आपके बच्चे तो प्रसन्न होंगे ही आपको भी अच्छा लगेगा. करके देखिये ऐसा....

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