21 जुलाई 2014

इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता और पत्रकारों को संभलने की आवश्यकता



संसाधनों के विकसित होते जाने से प्रसार माध्यमों ने भी लगातार विकास किया है. सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहजता हुई है और पल भर में सुदूर देश की खबर हमारे सामने होती है. तकनीक के इस क्रांतिकारी विकास ने समूचे विश्व को एक गाँव में बदल कर रख दिया है. आज धरातलीय दूरियों का एहसास उस समय होता है जबकि हम व्यक्तिगत रूप से प्रत्यक्ष में एक-दूसरे से मिलने की आकांक्षा रखते हैं अन्यथा की स्थिति में लाखों-लाख किमी की दूरी भी कम महसूस होने लगी है. संचार माध्यमों की विकसित अवस्था ने जहाँ हमें प्रचार-प्रसार का उन्नत साधन उपलब्ध करवाया है वहीं इसके साये में काम कर रहे कुत्सित मानसिकता वालों ने इसे नकारात्मकता के साथ प्रयोग कर इसकी उपयोगिता पर ही सवाल उठा दिया है. संचार के इन माध्यमों में आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को, इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता को प्रमुखता के साथ देखा जा सकता है.
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इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता ने पत्र माध्यम की और रेडिओ की पत्रकारिता से कई कदम आगे आकर अपने श्रोताओं को खबरों के साथ, घटनाओं के साथ साक्षात् जुड़ने का मंच प्रदान किया. पत्रकारिता के माध्यमों में एकाएक उत्कर्ष प्राप्त कर लेने से इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के लिए कार्य कर रहे चैनलों, व्यक्तियों ने मुखरता से भी एक कदम आगे जाकर स्वयंभू ठेकेदार बनने का काम करना शुरू कर दिया. अपनी अहमियत को जानकर, समझकर इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता से जुड़े लोगों ने खुद को ही अंतिम सत्य, अंतिम निष्कर्ष के रूप में पेश करना शुरू कर दिया. आज भी शायद ही कोई नागरिक होगा जो आरुषि हत्याकांड के समय इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, चैनलों, पत्रकारों द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग को भुला पाया हो. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जुड़े पत्रकार खुद को पत्रकार से ऊपर ले जाकर किसी जांच एजेंसी की तरह व्यवहार करने लगे थे. ग्राफिक्स की मदद से बनाये जाते आकलन, निकाले जाते निष्कर्ष से समूचे केस को एक झटके में ही हल कर दिया था जबकि साक्ष्यों की कहानी कुछ और कह रही है. इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का विद्रूप भरा चेहरा उस समय भी सामने आया जबकि इनके पत्रकार मुम्बई पर आतंकी हमले और किसी समय सीमा पर चल रही गोलाबारी की लाइव रिपोर्टिंग कर दुश्मनों को हमारे सैनिकों की स्थिति की पल-पल की खबर (भले ही अनजाने में ही सही) भेजते रहे.
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अब इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के ये पत्रकार, एंकर इससे भी आगे बढ़कर खुद ही अंतिम निष्कर्ष निकालने वाले बन गए हैं. किसी भी विषय पर बहस, चर्चा के दौरान; किसी घटना की लाइव कवरेज के दौरान; किसी खबर के प्रसारण के समय इनके द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग महज खबर सुनाने वाली, जानकारी देने वाली नहीं होती बल्कि सामने वाले के मुँह में अपने शब्द ठूँसने की, सिर्फ अपनी ही बात कहने की, बात-बात पर झल्लाने की होती है. संभवतः जिस तरह की पत्रकारिता के बारे में आजतक पढ़ा-सुना है, ये वैसी तो नहीं है. पत्रकारिता जगत में आते हैं एक सामान्य से व्यक्ति में एक अजब तरह का गुरूर अपने आप जन्म ले लेता है, जो इलेक्ट्रॉनिक चैनलों, माध्यमों के पत्रकारों में और भी तीव्रतम रूप से प्रकट होता है. ये समझ से परे है कि आखिर पत्रकारिता जो समाज-शासन-प्रशासन के मध्य एक तरह के पुल का काम करती है उसमें कार्य करते पत्रकारों में अहंकार का भाव किसके लिए और क्यों पैदा हो जाता है? टीवी पर दिखाई देने के कारण एक अतिरिक्त भाव से लोगों से प्रश्नों का पूछना, अपनी बात को ही अंतिम सत्य बताकर दूसरे के विचारों पर थोपना, किसी भी दल, व्यक्ति, विचार के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित होना किसी भी रूप में पत्रकारिता के अंतर्गत नहीं आता है. इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की निरंतर बढ़ती जा  ये निरंकुशता जहाँ एक तरह पत्रकारिता के मूल्यों को नुकसान पहुँचा रही है वहीं दूसरी तरफ समाज के लिए भी घातक है. संभवतः हमारे पाठक-श्रोता और खुद मीडिया से जुड़े लोग विगत दिनों एक इलेक्ट्रॉनिक चैनल के पत्रकारों की करतूत को भूले नहीं होंगे. इलेक्ट्रॉनिक चैनल को, पत्रकारों को, इनके मालिकों को संभलने की आवश्यकता है; प्रेस कौंसिल जो जागरूक होने की जरूरत है; मंत्रालय को सचेत होने की जरूरत है.  
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