01 जुलाई 2014

अच्छे दिन लाने के लिए अर्थव्यवस्था सुधारनी होगी




नव-निर्वाचित केंद्र सरकार के कार्यकाल को एक माह पूरा हो चुका है और इस एक माह में गैर-भाजपा दलों और गैर-भाजपाई समर्थक नागरिकों को अच्छे दिनों की आहट नहीं सुनाई पड़ी और न ही उसकी छवि दिखाई दी। इसके उलट भाजपा समर्थक दलों और समर्थक नागरिकों को केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली में अच्छे दिन आते दिख रहे हैं। अच्छे दिनों की वास्तविकता क्या है, ये कैसे हैं, इनका आकलन कैसे किया जायेगा ये एक अलग विषय है किन्तु ये तय है कि जिस तरह का वातावरण, व्यवस्था वर्तमान केंद्र सरकार को मिली है उसको सुधारने में समय अवश्य लगेगा। ये कहना या फिर आशा लगा बैठना कि महज एक माह में ही सारी विसंगतियाँ दूर कर ली जाएँगी या हो जाएँगी, लोगों की ज्यादती होगी।
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देखा जाये तो केंद्र सरकार के सत्तासीन होते ही इराक संकट सामने आ गया, जिसके चलते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढ़ने की आशंका लगा ली गई थी, और ऐसा हुआ भी। सरकार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि करनी ही पड़ी. इसके पूर्व रेल किराये में, माल भाड़े में वृद्धि का निर्णय भी केंद्र सरकार को लेना पड़ा। हालाँकि रेल किराये से सम्बंधित निर्णय पूर्व केंद्र सरकार द्वारा चुनाव पूर्व ले लिए गए थे तथापि उन्हें चुनाव में नकारात्मक असर से बचने के लिए रोक रखा गया था। रसोई गैस कीमतों में वृद्धि को अवश्य ही केंद्र सरकार अगले तीन माह तक टालने में सफल हो सकी है। ये फौरी कदम हैं जो सरकार की परीक्षा लेने के लिए, उसके एक माह के कार्यों के आकलन हेतु उपयुक्त नहीं कहे जा सकते हैं। केंद्र सरकार की वास्तविक परीक्षा इस माह आने वाले आम बजट और रेल बजट के माध्यम से होनी है। इन दो बजटों के प्रस्तुत करने से समझ आएगा कि सरकार अर्थव्यवस्था के सुधार हेतु किस तरह के और कितने कारगर उपाय लागू करने की मंशा बनाये है। इसी से समझ आएगा कि अपने बजट के द्वारा आम आदमी, गरीब आदमी के लिए किस तरह के प्रावधान किये गए हैं या कि सिर्फ उद्योगपतियों को, कारोबारियों को ही लाभान्वित किये जाने की योजना अमल में लाई गई है।
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केंद्र सरकार को बजट में आयकर सम्बन्धी कुछ ठोस कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। आयकर छूट सीमा को भले ही न बढ़ाया जाए किन्तु बचत सीमा को थोडा अवश्य बढ़ाया जाना चाहिए, भले ही इसके लिए अप्ल बचत योजनाओं को प्रोत्साहित किया जाये। इससे एक तरफ वेतनभोगी बचत की तरफ अग्रसर होगा और दूसरी तरफ अल्प बचत योजनाओं का भी विकास होगा। बजट में सरकार द्वारा विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं पर अधिक से अधिक कर लगाये जाने की आवश्यकता है साथ ही दैनिक जीवन में आने वाली वस्तुओं पर, स्वास्थ्य सम्बन्धी वस्तुओं पर, शिक्षा सम्बन्धी वस्तुओं पर कम से कम कर लगाये जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा सरकार को डीजल की सब्सिडी सम्बन्धी कोई योजना बनाये जाने की भी जरूरत है। ये सहज रूप में देखने में आ रहा है कि आज डीजल का सर्वाधिक उपयोग मंहगी-मंहगी गाड़ियों में किया जा रहा है और सरकार की सब्सिडी योजना को अमीरों द्वारा जमकर लूटा जा रहा है। इस सम्बन्ध में इस तरह की योजना बनाये जाने की जरूरत है कि मंहगी कार वालों को बिना सब्सिडी वाले मूल्य पर डीजल दिया जाये। सब्सिडी का डीजल विशेष रूप से किसानों और लघु उद्यमियों के लिए विक्रय हेतु उपलब्ध होना चाहिए।
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रेलवे के लिए भी कुछ ठोस योजनायें बनाये जाने की जरूरत है, महज किराया बढ़ा देने भर से ही भारतीय रेल को विश्व स्तरीय नहीं बनाया जा सकता है। सर्वप्रथम तो प्रयास ये हो कि आम आदमी को, गरीब आदमी को किराये का कम बोझ सहना पड़े और इसके लिए पैसेंजर ट्रेनों के फेरे बढ़ाये जाएँ और इन ट्रेनों के किराये को और कम किया जाये। इससे जो आम आदमी, गरीब आदमी बढ़े हुए किराये के साथ यात्रा नहीं कर सकता है वो इन ट्रेनों का उपयोग कर सके। इसके साथ-साथ लघुतम दूरी के लिए भी ट्रेनों की संख्या-फेरे बढ़ाये जाएँ, जिससे रेलवे को अधिक से अधिक आमदनी हो और बढ़े हुए किराये का बोझ भी आम आदमी पर न पड़े। हो सकता है कि देखने-सुनने में अजीब सा लगे किन्तु बिना टिकट पकड़ने पर टीसी को प्रति व्यक्ति के हिसाब से पारितोषिक दिया जाये और इसकी धनराशि इतनी हो कि बिना टिकट चलने वाला कभी उतनी रकम  रिश्वत में न दे सके। इससे टीसी स्वयं भी जागरूक होकर टिकट जांचने निकला करेंगे।
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अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने के उपाय खोजे बिना अच्छे दिन लाना मुश्किल है क्योंकि मतदाताओं ने इसी कारण भाजपा को-मोदी को सत्ता प्रदान की है कि वे कांग्रेसी सरकार के अव्यवस्थित ढांचे से देश को मुक्ति दिलाएंगे। यदि ऐसा नहीं होता है तो वर्तमान केंद्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड नकारात्मक दिखने लगेगा।
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