व्यक्ति के स्वभाव में ही घुमंतु प्रवृत्ति रही है। इसके लिए कभी उसने पिकनिक को
बहाना बनाया तो कभी परिवार सहित सुरम्य स्थल की सैर के आनन्द लेने का उपाय खोजा
है। कभी रिश्तेदारों से मिलने के नाम पर तो कभी शादी-समारोहों के नाम पर अपनी
घुमंतु प्रवृत्ति को शान्त किया है। यात्रा के विविध संसाधनों के मध्य आज भले ही अतिविकसित
हवाई-यात्रा का प्रादुर्भाव हो गया हो किन्तु रेल में सफर का अपना ही आनन्द है।
विभिन्न स्थलों की सैर करवाती हुई, विविध संस्कृतियों के दर्शन करवाती हुई, विभिन्न व्यक्तियों से सम्पर्क करवाती हुई रेल हमें अपने गन्तव्य तक ले जाती
है। वैसे भी हवाई-यात्रा भले ही सुखद अनुभति, आसान यात्रा और समय की बचत करवाती हो किन्तु है अत्यधिक खर्चीली। इस कारण हवाई
यात्रा करना प्रत्येक व्यक्ति के वश की बात नहीं है। ऐसे में व्यक्ति अल्पव्ययी
संसाधन रेल का चयन करता है।
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वर्तमान
में रेल के साथ तमाम सारी ऐसी विसंगतियाँ जुड़ गईं हैं जो किसी न किसी रूप में सभी
व्यक्तियों को प्रभावित करने लगी हैं। रेल विसंगतियों की जब भी चर्चा होती है तो
जेहन में तुरन्त स्टेशन,
प्लेटफार्म पर बढ़ती भीड़, रेल के भीतर यात्रियों की आपाधापी, टिकट,
आरक्षण आदि समय से न मिलने की समस्या, रेलवे के तमाम सारे कर्मचारियों का समय से उपस्थित न होना, रेलों के आवागमन में भयंकर तरीके से होने वाली लेटलतीफी, रेलों के रखरखाव में लापरवाही आदि की छवि उभर कर आती है।
यदि इसे अन्यथा के रूप में न लिया जाये तो ये सारी स्थितियाँ वर्तमान में रेल की विसंगतियाँ
नहीं वरन् उसकी पहचान बन गईं हैं। रेल यात्रियों ने भी इन स्थितियों को आत्मसात्
कर लिया है और स्वीकार कर लिया है कि रेल यात्रा में इस तरह की स्थितियाँ तो सामने
आयेंगी ही। इन तमाम सारी घटनाओं के अतिरिक्त यात्रियों को रेलवे स्टाफ के द्वारा
परेशान करना,
प्लेटफार्म पर रेलवे पुलिस की ज्यादतियाँ, चलती ट्रेन में अपराधियों को संरक्षण आदि स्थितियाँ इस तरह
से निर्मित हो रहीं हैं कि इनसे निपटना आसानी से सम्भव नहीं लगता है।
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स्वयं रेलवे की तरफ से भी सामान्य श्रेणी के यात्रियों के प्रति सुविधाओं का
टोटा कर दिया जाना भी एक प्रकार की विसंगति है। किसी भी ट्रेन में कम से कम
सामान्य श्रेणी के डिब्बे और उनमें चढ़ती भयंकर भीड़ अब रेलवे को दिखाई देनी बन्द हो
गई है। देखा जाये तो ये विसंगतियाँ नहीं बल्कि रेलवे की लापरवाहियाँ हैं। रेल में जब
एक व्यक्ति अपने गन्तव्य तक पहुँचने के लिए बैठा है और उसके साथ पुलिसिया बदसलूकी
हो,
चलते गैंग के द्वारा मारपीट आम घटनायें बन जायें तो रेलवे को
इस प्रकार की विसंगति को प्राथमिकता में रखकर उसका निदान करना अनिवार्य प्रतीत होना
चाहिए। रेलवे की कार्यप्रणाली की लचरता का प्रमाण है कि पार्सलघर से सामान की चोरी
का पता न लगना,
स्टेशन से, ट्रेन से हुई
चोरी का पता न चल पाना,
चलती ट्रेन में जेबकतरों, जहरखुरानियों पर अंकुश न लग पाना, रेल में अवैध रूप से कार्य कर रहे वेंडरों, सामान बेचने वालों का घुस आना बिना किसी सहयोग के सम्भव नहीं दिखता है।
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ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेल स्वयं में इस विसंगति को पाल रही है अथवा वह
इस विसंगति से निपट नहीं पा रही है? सम्भव है कि रेलवे प्रशासन इस तरह के अराजक लोगों के सामने इतना पंगु बन गया
हो कि वह चाह कर भी कुछ करन पा रहा हो अथवा यह भी सम्भव है कि स्थानीय स्तर पर
रेलवे प्रशासन को भी किसी न किसी प्रकार का लोभ-लालच दिखा कर इन अराजक
व्यक्तियों-संगठनों द्वारा अपना उल्लू सीधा किया जाता हो? बहरहाल जो भी हो, जैसी भी स्थिति हो उस स्थिति में भी रेलवे को इस तरह की विसंगतियों से निपटने
के उपाय करने चाहिए। रेल यात्रा के सुखमय होने का प्रमाण अच्छे और भव्य रेलवे
स्टेशन-प्लेटफार्म नहीं,
कम्प्यूटरीकरण नहीं, उन्नत वातानुकूलन प्रणाली नहीं, लम्बी दूरी की सुपरफास्ट ट्रेनें नहीं वरन् यात्रियों की सुरक्षा-सुविधा है।
इसमें रेल नकारात्मक दिशा में जाती दिख रही है।
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